TFIPOST English
TFIPOST Global
tfipost.in
tfipost.in
कोई परिणाम नहीं मिला
सभी परिणाम देखें
  • राजनीति
    • सभी
    • चर्चित
    • बिहार डायरी
    • मत
    • समीक्षा
    नायब सैनी ने लापरवाही के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है

    हरियाणा में खेल विभाग के सचिव-निदेशक का तबादला: लापरवाही को लेकर नायब सरकार का बड़ा एक्शन

    बिहार के बाजीगरों के जरिये पश्चिम बंगाल फतह का ताना-बाना बुन रही भाजपा

    बिहार के बाजीगरों के जरिये पश्चिम बंगाल फतह का ताना-बाना बुन रही भाजपा

    ऑपरेशन सिंदूर 2:0

    दिल्ली धमाका और PoK के नेता का कबूलनामा: क्या भारत के लिए ‘ऑपरेशन सिंदूर 2.0’ का समय आ गया है?

    शशि थरूर पीएम की तारीफ कर अपनी ही पार्टी के अंदर निशाने पर आ गए हैं

    कांग्रेस का नया नियम यही है कि चाहे कुछ भी हो जाए पीएम मोदी/बीजेपी का हर क़ीमत पर विरोध ही करना है?

    • चर्चित
    • मत
    • समीक्षा
  • अर्थव्यवस्था
    • सभी
    • वाणिज्य
    • व्यवसाय
    खनन क्षेत्र में बेहतरीन काम के लिए केंद्र सरकार ने धामी सरकार की तारीफ की

    खनन सुधारों में फिर नंबर वन बना उत्तराखंड, बेहतरीन काम के लिए धामी सरकार को केंद्र सरकार से मिली 100 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि

    तेल, हीरे और हिंदुस्तान की नई भू-राजनीति: जब अफ्रीका की धरती पर एक साथ गूंजेगी भारत की सभ्यता, रणनीति और शक्ति की आवाज

    तेल, हीरे और हिंदुस्तान की नई भू-राजनीति: जब अफ्रीका की धरती पर एक साथ गूंजेगी भारत की सभ्यता, रणनीति और शक्ति की आवाज

    80% खेती सिंधु पर, तालाब भी नहीं बचे! भारत की जल-नीति और अफगानिस्तान के फैसले ने पाकिस्तान को रेगिस्तान में धकेला, अब न पानी होगा, न रोटी, न सेना की अकड़

    80% खेती सिंधु पर, तालाब भी नहीं बचे! भारत की जल-नीति और अफगानिस्तान के फैसले ने पाकिस्तान को रेगिस्तान में धकेला, अब न पानी होगा, न रोटी, न सेना की अकड़

    हमसे दुश्मनी महंगी पड़ेगी: भारत की सतर्कता और बांग्लादेश की गलती, जानें बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पर कैसे पड़ रही चोट

    हमसे दुश्मनी महंगी पड़ेगी: भारत की सतर्कता और बांग्लादेश की गलती, जानें बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पर कैसे पड़ रही चोट

    • वाणिज्य
    • व्यवसाय
  • रक्षा
    • सभी
    • आयुध
    • रणनीति
    शिप बेस्ड ISBM लॉन्च के पाकिस्तान के दावे में कितना दम है

    पाकिस्तान जिस SMASH मिसाइल को बता रहा है ‘विक्रांत किलर’, उसकी सच्चाई क्या है ?

    ऑपरेशन सिंदूर 2:0

    दिल्ली धमाका और PoK के नेता का कबूलनामा: क्या भारत के लिए ‘ऑपरेशन सिंदूर 2.0’ का समय आ गया है?

    जैवलिन मिसाइल

    अमेरिका ने भारत को बताया “मेजर डिफेंस पार्टनर”, जैवलिन मिसाइल समेत बड़े डिफेंस पैकेज को दी मंजूरी, पटरी पर लौट रहे हैं रिश्ते ?

    बांग्लादेश और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की मुलाकात

    ‘हसीना’ संकट के बीच NSA अजित डोभाल की बांग्लादेश के NSA से मुलाकात के मायने क्या हैं?

    • आयुध
    • रणनीति
  • विश्व
    • सभी
    • AMERIKA
    • अफ्रीका
    • अमेरिकाज़
    • एशिया पैसिफिक
    • यूरोप
    • वेस्ट एशिया
    • साउथ एशिया
    दिल्ली ब्लास्ट के बाद पाकिस्तान में हड़कंप: असीम मुनीर की सेना हाई अलर्ट पर, एयर डिफेंस सक्रिय, भारत की ताकत और रणनीति ने आतंकियों और पड़ोसी को किया सतर्क

    दिल्ली ब्लास्ट के बाद पाकिस्तान में हड़कंप: असीम मुनीर की सेना हाई अलर्ट पर, एयर डिफेंस सक्रिय, भारत की ताकत और रणनीति ने आतंकियों और पड़ोसी को किया सतर्क

    राजनाथ सिंह ने दिखाया आईना, यूनुस को लगी मिर्ची: बांग्लादेश की नई दिशा, भारत की नई नीति

    राजनाथ सिंह ने दिखाया आईना, यूनुस को लगी मिर्ची: बांग्लादेश की नई दिशा, भारत की नई नीति

    आईएनएस सह्याद्री गुआम में: भारत की नौसेना का बहुपक्षीय सामरिक प्रदर्शन, एंटी-सबमरीन युद्ध क्षमता और एशिया-प्रशांत में नेतृत्व

    आईएनएस सह्याद्री गुआम में: भारत की नौसेना का बहुपक्षीय सामरिक प्रदर्शन, एंटी-सबमरीन युद्ध क्षमता और एशिया-प्रशांत में नेतृत्व

    ढाका में पाकिस्तानी सक्रियता: यूनुस सरकार, नौसेना प्रमुख की यात्रा और भारत की पूर्वोत्तर सुरक्षा पर खतरे की समीक्षा

    ढाका में पाकिस्तानी सक्रियता: यूनुस सरकार, नौसेना प्रमुख की यात्रा और भारत की पूर्वोत्तर सुरक्षा पर खतरे की समीक्षा

    • अफ्रीका
    • अमेरिकाज़
    • एशिया पैसिफिक
    • यूरोप
    • वेस्ट एशिया
    • साउथ एशिया
  • ज्ञान
    • सभी
    • इतिहास
    • संस्कृति
    भारतीय दर्शन और संविधान

    भारतीय चिंतन दृष्टि से संविधान: ज्ञान परंपरा में नागरिकता का इतिहास

    तालोम रुकबो

    अरुणाचल प्रदेश के वनवासियों को धर्मांतरण से बचाने वाले तालोम रुकबो: एक भूले-बिसरे नायक की कहानी

    राजा महेंद्र प्रताप सिंह

    राजा महेंद्र प्रताप सिंह: आजादी की लड़ाई का योद्धा, जिसने काबुल में बनाई थी स्वतंत्र भारत की पहली निर्वासित सरकार

    बी.एन राउ का संविधान निर्माण में बड़ा योगदान है

    क्या बेनेगल नरसिंह राउ थे संविधान के असली निर्माता ? इतिहास ने उनके योगदान को क्यों भुला दिया ?

    • इतिहास
    • संस्कृति
  • बैठक
    • सभी
    • खेल
    • चलचित्र
    • तकनीक
    • भोजन
    • व्यंग
    • स्वास्थ्य
    शोले फिल्म में पानी की टंकी पर चढ़े धर्मेंद्र

    बॉलीवुड का ही-मैन- जिसने रुलाया भी, हंसाया भी: धर्मेंद्र के सिने सफर की 10 नायाब फिल्में

    नीतीश कुमार

    जेडी(यू) के ख़िलाफ़ एंटी इन्कंबेसी क्यों नहीं होती? बिहार में क्यों X फैक्टर बने हुए हैं नीतीश कुमार?

    क्यों PariPesa भारत रोमांचक एविएटर क्रैश गेम्स का अनुभव लेने के लिए सबसे बेहतरीन जगह है

    क्यों PariPesa भारत रोमांचक एविएटर क्रैश गेम्स का अनुभव लेने के लिए सबसे बेहतरीन जगह है

    भारत की वैज्ञानिक विजय: ‘नैफिथ्रोमाइसिन’, कैंसर और डायबिटीज के मरीजों के उम्मीदों को मिली नई रोशनी, जानें क्यों महत्वपूर्ण है ये दवा

    आत्मनिर्भर भारत की वैज्ञानिक विजय: ‘नैफिथ्रोमाइसिन’, कैंसर और डायबिटीज के मरीजों के उम्मीदों को मिली नई रोशनी, जानें क्यों महत्वपूर्ण है ये दवा

    • खेल
    • चलचित्र
    • तकनीक
    • भोजन
    • व्यंग
    • स्वास्थ्य
  • प्रीमियम
tfipost.in
  • राजनीति
    • सभी
    • चर्चित
    • बिहार डायरी
    • मत
    • समीक्षा
    नायब सैनी ने लापरवाही के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है

    हरियाणा में खेल विभाग के सचिव-निदेशक का तबादला: लापरवाही को लेकर नायब सरकार का बड़ा एक्शन

    बिहार के बाजीगरों के जरिये पश्चिम बंगाल फतह का ताना-बाना बुन रही भाजपा

    बिहार के बाजीगरों के जरिये पश्चिम बंगाल फतह का ताना-बाना बुन रही भाजपा

    ऑपरेशन सिंदूर 2:0

    दिल्ली धमाका और PoK के नेता का कबूलनामा: क्या भारत के लिए ‘ऑपरेशन सिंदूर 2.0’ का समय आ गया है?

    शशि थरूर पीएम की तारीफ कर अपनी ही पार्टी के अंदर निशाने पर आ गए हैं

    कांग्रेस का नया नियम यही है कि चाहे कुछ भी हो जाए पीएम मोदी/बीजेपी का हर क़ीमत पर विरोध ही करना है?

    • चर्चित
    • मत
    • समीक्षा
  • अर्थव्यवस्था
    • सभी
    • वाणिज्य
    • व्यवसाय
    खनन क्षेत्र में बेहतरीन काम के लिए केंद्र सरकार ने धामी सरकार की तारीफ की

    खनन सुधारों में फिर नंबर वन बना उत्तराखंड, बेहतरीन काम के लिए धामी सरकार को केंद्र सरकार से मिली 100 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि

    तेल, हीरे और हिंदुस्तान की नई भू-राजनीति: जब अफ्रीका की धरती पर एक साथ गूंजेगी भारत की सभ्यता, रणनीति और शक्ति की आवाज

    तेल, हीरे और हिंदुस्तान की नई भू-राजनीति: जब अफ्रीका की धरती पर एक साथ गूंजेगी भारत की सभ्यता, रणनीति और शक्ति की आवाज

    80% खेती सिंधु पर, तालाब भी नहीं बचे! भारत की जल-नीति और अफगानिस्तान के फैसले ने पाकिस्तान को रेगिस्तान में धकेला, अब न पानी होगा, न रोटी, न सेना की अकड़

    80% खेती सिंधु पर, तालाब भी नहीं बचे! भारत की जल-नीति और अफगानिस्तान के फैसले ने पाकिस्तान को रेगिस्तान में धकेला, अब न पानी होगा, न रोटी, न सेना की अकड़

    हमसे दुश्मनी महंगी पड़ेगी: भारत की सतर्कता और बांग्लादेश की गलती, जानें बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पर कैसे पड़ रही चोट

    हमसे दुश्मनी महंगी पड़ेगी: भारत की सतर्कता और बांग्लादेश की गलती, जानें बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पर कैसे पड़ रही चोट

    • वाणिज्य
    • व्यवसाय
  • रक्षा
    • सभी
    • आयुध
    • रणनीति
    शिप बेस्ड ISBM लॉन्च के पाकिस्तान के दावे में कितना दम है

    पाकिस्तान जिस SMASH मिसाइल को बता रहा है ‘विक्रांत किलर’, उसकी सच्चाई क्या है ?

    ऑपरेशन सिंदूर 2:0

    दिल्ली धमाका और PoK के नेता का कबूलनामा: क्या भारत के लिए ‘ऑपरेशन सिंदूर 2.0’ का समय आ गया है?

    जैवलिन मिसाइल

    अमेरिका ने भारत को बताया “मेजर डिफेंस पार्टनर”, जैवलिन मिसाइल समेत बड़े डिफेंस पैकेज को दी मंजूरी, पटरी पर लौट रहे हैं रिश्ते ?

    बांग्लादेश और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की मुलाकात

    ‘हसीना’ संकट के बीच NSA अजित डोभाल की बांग्लादेश के NSA से मुलाकात के मायने क्या हैं?

    • आयुध
    • रणनीति
  • विश्व
    • सभी
    • AMERIKA
    • अफ्रीका
    • अमेरिकाज़
    • एशिया पैसिफिक
    • यूरोप
    • वेस्ट एशिया
    • साउथ एशिया
    दिल्ली ब्लास्ट के बाद पाकिस्तान में हड़कंप: असीम मुनीर की सेना हाई अलर्ट पर, एयर डिफेंस सक्रिय, भारत की ताकत और रणनीति ने आतंकियों और पड़ोसी को किया सतर्क

    दिल्ली ब्लास्ट के बाद पाकिस्तान में हड़कंप: असीम मुनीर की सेना हाई अलर्ट पर, एयर डिफेंस सक्रिय, भारत की ताकत और रणनीति ने आतंकियों और पड़ोसी को किया सतर्क

    राजनाथ सिंह ने दिखाया आईना, यूनुस को लगी मिर्ची: बांग्लादेश की नई दिशा, भारत की नई नीति

    राजनाथ सिंह ने दिखाया आईना, यूनुस को लगी मिर्ची: बांग्लादेश की नई दिशा, भारत की नई नीति

    आईएनएस सह्याद्री गुआम में: भारत की नौसेना का बहुपक्षीय सामरिक प्रदर्शन, एंटी-सबमरीन युद्ध क्षमता और एशिया-प्रशांत में नेतृत्व

    आईएनएस सह्याद्री गुआम में: भारत की नौसेना का बहुपक्षीय सामरिक प्रदर्शन, एंटी-सबमरीन युद्ध क्षमता और एशिया-प्रशांत में नेतृत्व

    ढाका में पाकिस्तानी सक्रियता: यूनुस सरकार, नौसेना प्रमुख की यात्रा और भारत की पूर्वोत्तर सुरक्षा पर खतरे की समीक्षा

    ढाका में पाकिस्तानी सक्रियता: यूनुस सरकार, नौसेना प्रमुख की यात्रा और भारत की पूर्वोत्तर सुरक्षा पर खतरे की समीक्षा

    • अफ्रीका
    • अमेरिकाज़
    • एशिया पैसिफिक
    • यूरोप
    • वेस्ट एशिया
    • साउथ एशिया
  • ज्ञान
    • सभी
    • इतिहास
    • संस्कृति
    भारतीय दर्शन और संविधान

    भारतीय चिंतन दृष्टि से संविधान: ज्ञान परंपरा में नागरिकता का इतिहास

    तालोम रुकबो

    अरुणाचल प्रदेश के वनवासियों को धर्मांतरण से बचाने वाले तालोम रुकबो: एक भूले-बिसरे नायक की कहानी

    राजा महेंद्र प्रताप सिंह

    राजा महेंद्र प्रताप सिंह: आजादी की लड़ाई का योद्धा, जिसने काबुल में बनाई थी स्वतंत्र भारत की पहली निर्वासित सरकार

    बी.एन राउ का संविधान निर्माण में बड़ा योगदान है

    क्या बेनेगल नरसिंह राउ थे संविधान के असली निर्माता ? इतिहास ने उनके योगदान को क्यों भुला दिया ?

    • इतिहास
    • संस्कृति
  • बैठक
    • सभी
    • खेल
    • चलचित्र
    • तकनीक
    • भोजन
    • व्यंग
    • स्वास्थ्य
    शोले फिल्म में पानी की टंकी पर चढ़े धर्मेंद्र

    बॉलीवुड का ही-मैन- जिसने रुलाया भी, हंसाया भी: धर्मेंद्र के सिने सफर की 10 नायाब फिल्में

    नीतीश कुमार

    जेडी(यू) के ख़िलाफ़ एंटी इन्कंबेसी क्यों नहीं होती? बिहार में क्यों X फैक्टर बने हुए हैं नीतीश कुमार?

    क्यों PariPesa भारत रोमांचक एविएटर क्रैश गेम्स का अनुभव लेने के लिए सबसे बेहतरीन जगह है

    क्यों PariPesa भारत रोमांचक एविएटर क्रैश गेम्स का अनुभव लेने के लिए सबसे बेहतरीन जगह है

    भारत की वैज्ञानिक विजय: ‘नैफिथ्रोमाइसिन’, कैंसर और डायबिटीज के मरीजों के उम्मीदों को मिली नई रोशनी, जानें क्यों महत्वपूर्ण है ये दवा

    आत्मनिर्भर भारत की वैज्ञानिक विजय: ‘नैफिथ्रोमाइसिन’, कैंसर और डायबिटीज के मरीजों के उम्मीदों को मिली नई रोशनी, जानें क्यों महत्वपूर्ण है ये दवा

    • खेल
    • चलचित्र
    • तकनीक
    • भोजन
    • व्यंग
    • स्वास्थ्य
  • प्रीमियम
कोई परिणाम नहीं मिला
सभी परिणाम देखें
tfipost.in
tfipost.in
कोई परिणाम नहीं मिला
सभी परिणाम देखें
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • रक्षा
  • विश्व
  • ज्ञान
  • बैठक
  • प्रीमियम

नेहरू के विरोध के बावजूद भारतीय सेना के पहले हिंदुस्तानी कमांडर-इन-चीफ कैसे बने करियप्पा? अंग्रेज अफसरों को फौज की कमान क्यों सौंपना चाहते थे नेहरू?

नेहरू का मानना था कि भारतीय सैन्य अफसरों के पास हिंदुस्तानी फौज की कमान संभालने लायक योग्यता नहीं थी, लिहाजा वो चाहते थे कि कोई अंग्रेज अफसर ही इंडियन आर्मी का कमांडर इन चीफ बना रहे

Shiv Chaudhary द्वारा Shiv Chaudhary
15 May 2025
in इतिहास, रक्षा
करियप्पा को उनके रिश्तेदार 'चिम्मा' कहकर बुलाते थे

करियप्पा को उनके रिश्तेदार 'चिम्मा' कहकर बुलाते थे

Share on FacebookShare on X

15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हो गया, भारत-पाकिस्तान दो नए देश बने और सेनाएं भी दोनों देशों के बीच बंट गईं। तब तक सेना प्रमुख अंग्रेज़ ही होते थे और आगे भी करीब 2 वर्षों तक यह सिलसिला चलता रहा। फिर एक दिन पंडित जवाहर लाल नेहरू ने नेताओं और सैन्य अधिकारियों की बैठक के दौरान कहा कि भारत को अपना सेना अध्यक्ष बनाने के लिए किसी अंग्रेज अधिकारी का ही चुनाव करना चाहिए। इसके पीछे नेहरू का तर्क था कि भारत के मौजूद सैन्य अधिकारी पूरी तरह से सक्षम नहीं थे और उनमें अनुभव की कमी थी। इस बैठक के दौरान अधिकतर लोग उनके समर्थन में आ गए लेकिन एक अधिकारी ने उनकी इस बात का खंडन कर दिया, वो अधिकारी थे- लेफ्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौर।

राठौर ने नेहरू की बात पर आपत्ति जताते हुए कहा कि अगर अनुभव ही मापदंड है, तो फिर देश का प्रधानमंत्री भी किसी ब्रिटिश को बनाना चाहिए था? उनकी यह बात सुनकर चारों तरफ सन्नाटा छा गया। इसके बाद जब उनसे इस पद को लेने के लिए कहा गया तो उन्होंने इसे संभालने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, “हमारे बीच सबसे योग्य व्यक्ति लेफ्टिनेंट जनरल के. एम. करियप्पा हैं और यह पद उन्हें ही मिलना चाहिए।” और इसके बाद भारत को अपना पहला भारतीय कमांडर इन-चीफ मिला- के. एम. करियप्पा। बताया जाता है कि करियप्पा इस पद के लिए नेहरू की पहली पसंद नहीं थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, नेहरू ने पहले नाथू सिहं और फिर राजेंद्र सिंहजी को इस पद की पेशकश की थी लेकिन दोनों ने ये कहते हुए इस पद को अस्वीकार कर दिया था कि वो करियप्पा से जूनियर थे।

संबंधितपोस्ट

दिल्ली ब्लास्ट के बाद पाकिस्तान में हड़कंप: असीम मुनीर की सेना हाई अलर्ट पर, एयर डिफेंस सक्रिय, भारत की ताकत और रणनीति ने आतंकियों और पड़ोसी को किया सतर्क

ट्रंप भी मानने को मजबूर: राहुल गांधी और विपक्ष की बयानबाज़ी बेअसर, भारत ने F-16 गिरा कर पाकिस्तान की नाक कटवाई

जो देश के लिए लड़ता रहा, अब देश उसके लिए खड़ा है: मेजर विक्रांत जेटली की वीरता और भारत की ताकत

और लोड करें
नाथू सिंह (बाएं) और करियप्पा (दाएं)

स्टीवन विलकिंसन ने अपनी किताब ‘आर्मी एंड द नेशन-द मिलिट्री ऐंड इंडियन डेमोक्रेसी सिंस इंडिपेंडेंस‘ में लिखा है, “जब जनरल के.एम. करिअप्पा ने जनवरी 1949 में सेना के पहले भारतीय कमांडर-इन-चीफ के रूप में पदभार संभाला, तो उन्होंने तुरंत आदेश जारी किए और राजनीति में उलझने के खिलाफ कई सार्वजनिक बयान दिए। उन्होंने अपने अधिकारियों से कहा, ‘सेना में राजनीति ज़हर है। इससे दूर रहो।’ साथ ही, उन्होंने नागरिक सरकार की सर्वोच्चता (सिविलियन सुप्रीमेसी) के महत्व को भी ज़ोर देकर बताया।”

जवाहर लाल नेहरू के साथ करियप्पा (तस्वीर- फोटो डिविजन)

करियप्पा का शुरुआती जीवन

कोडांदेरा मदप्पा करियप्पा (के.एम. करियप्पा) जन्म 28 जनवरी 1899 को कर्नाटक के कुर्ग जिले के मदिकेरी में एक किसान परिवार में हुआ था। करियप्पा को उनके रिश्तेदार ‘चिम्मा’ कहकर बुलाते थे। उनके पिता मदप्पा राजस्व विभाग में काम करते थे। 1917 में मदिकेरी के सेंट्रल हाई स्कूल से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला ले लिया। पढ़ाई के दौरान करियप्पा को पता चला कि भारतीयों को सेना में भर्ती किया जा रहा है और उन्हें भारत में ही ट्रेनिंग दी जा रही है तो उन्होंने भी इसके लिए आवेदन कर दिया। करियप्पा का चयन हो गया और वे पहले बैच के KCIOs (किंग्स कमीशंड इंडियन ऑफिसर्स) के लिए चुने गए।

करियप्पा का सैन्य सफर

1 दिसंबर 1919 को फील्ड मार्शल करिअप्पा ने अपनी ट्रेनिंग पूरी की और उन्हें अस्थायी कमीशन (टेम्पररी कमीशन) दिया गया। इसके बाद 9 सितंबर 1922 को उन्हें स्थायी कमीशन (परमानेंट कमीशन) दिया गया, जो 17 जुलाई 1920 से प्रभावी माना गया। ऐसा इसलिए किया गया ताकि उनकी रैंक उन ब्रिटिश अधिकारियों से जूनियर मानी जाए जो 16 जुलाई 1920 को सैंडहर्स्ट से पास हुए थे। इसके बाद उन्हें कार्नाटिक इन्फैंट्री में कमीशन मिला और फिर उन्हें सक्रिय सेवा के लिए 37 (प्रिंस ऑफ वेल्स) डोगरा रेजिमेंट के साथ मेसोपोटामिया (आज का इराक) भेजा गया। जब वे भारत लौट आए तो जून 1923 में उन्हें 1/7 राजपूत रेजीमेंट में ट्रांसफर किया गया। और यही बाद में उनकी स्थायी रेजिमेंट बन गई।

फील्ड मार्शल के. एम. करिअप्पा भारतीय सेना के पहले ऐसे अधिकारी थे जिन्होंने 1933 में क्वेटा स्थित स्टाफ कॉलेज में कोर्स किया। अपने सैन्य करियर में उन्होंने कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ निभाईं। 1941 से 1942 के दौरान उन्होंने इराक, सीरिया और ईरान में युद्ध में हिस्सा लिया और 1943-1944 में बर्मा (अब म्यांमार) के मोर्चे पर भी सेवा दी। वे 1942 में किसी यूनिट की कमान संभालने वाले पहले भारतीय अधिकारी बने, जो उस समय एक बड़ी उपलब्धि थी। 1946 में उन्हें फ्रंटियर ब्रिगेड ग्रुप का ब्रिगेडियर नियुक्त किया गया। उनकी नेतृत्व क्षमता और कड़ी मेहनत के कारण उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान मिले। 1947 में वे पहले भारतीय बने जिन्हें ब्रिटेन के कैम्बर्ली स्थित इम्पीरियल डिफेंस कॉलेज में विशेष सैन्य प्रशिक्षण के लिए चुना गया।

1947 में आज़ादी के समय, करियप्पा को भारतीय सेना के बंटवारे की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई थी। नवंबर 1947 में उन्हें सेना की पूर्वी कमान का प्रमुख नियुक्त किया गया और रांची भेजा गया। इस बीच, पाकिस्तान बनने के कुछ ही महीनों बाद कश्मीर में हालात बिगड़ने लगे। ऐसी स्थिति में करियप्पा को लेफ्टिनेंट जनरल डडली रसेल की जगह दिल्ली और पूर्वी पंजाब क्षेत्र का जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ़ (GOC-in-C) नियुक्त किया गया। उन्होंने इस कमान का नाम बदलकर ‘पश्चिमी कमान’ रखा और जनरल थिमैया को कलवंत सिंह की जगह जम्मू-कश्मीर फ़ोर्स का प्रमुख नियुक्त किया।

करियप्पा ने मांगा उस्मान से तोहफा

पश्चिमी कमान का चार्ज लेने के बाद जनवरी 1948 में लेफ्टिनेंट जनरल के.एम. करियप्पा ने मेजर एस.के. सिन्हा के साथ नौशेरा का दौरा किया। उस्मान ने उनका स्वागत किया और ब्रिगेड के सैनिकों से उनको मिलवाया। जब करियप्पा वापस लौटने लगे तो वे उस्मान की तरफ मुड़े और बोले मुझे आपसे एक तोहफा चाहिए। करियप्पा, उस्मान से बोले, “मैं चाहता हूँ कि आप नौशेरा के पास के सबसे ऊंचे इलाके कोट पर कब्जा करें क्योंकि दुश्मन वहां से नौशेरा पर हमला करने की योजना बना रहा है।” उस्मान ने अगले कुछ दिनों में नौशेरा से 9 किलोमीटर उत्तर पूर्व में स्थित कोट पर कब्जा करना का वादा कर दिया। कोट दुश्मनों के लिए ट्रांजिट कैप की तरह काम काम करता क्योंकि यह उनके राजौरी से सियोट के रास्ते में पड़ता था। उस्मान ने अपने वादे के मुताबिक, कोट पर कब्जा करने के लिए ऑपरेशन शुरू कर दिया। इस ऑपरेशन का नाम ‘किपर’ रखा गया। यह नाम करियप्पा से प्रेरित था क्योंकि उन्हें सैनिक हलकों में ‘किपर’ नाम से ही जाना जाता था। बाद में भारतीय सेना ने कोट पर कब्ज़ा कर लिया था।

ब्रिगेडियर उस्मान

कमांडर इन चीफ बनने की कहानी

भारत की स्वतंत्रता के बाद तो फील्ड मार्शल क्लाउड औचिनलेक को भारतीय सेना का सुप्रीम कमांडर और जनरल सर रॉब लॉकहार्ट को कमांडर इन चीफ नियुक्त किया गया। इसके बाद 1 जनवरी 1948 को जनरल सर रॉबर्ट रॉय बुचर ने कमांडर इन चीफ बना दिया गया और वे जनवरी 1949 तक इस पद पर रहने वाले थे। उस समय तीन सबसे वरिष्ठ अधिकारी करियप्पा, राजेंद्र सिंहजी और नाथू सिंह थे। तीनों लेफ्टिनेंट जनरल और सेना कमांडर थे।

मेजर जनरल वीके सिंह ने अपनी किताब ‘Leadership in the Indian Army: Biographies of Twelve Soldiers’ में लिखा है, “1946 में अंतरिम सरकार में रक्षा मंत्री सरदार बलदेव सिंह ने नाथू सिंह को सूचित किया था कि उन्हें पहले भारतीय कमांडर इन चीफ के रूप में चुना गया है। करियप्पा और नाथू सिंह एक ही रेजिमेंट से थे। बताया जाता है कि नाथू सिंह ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था क्योंकि उन्हें लगा कि करियप्पा का इस पद पर अधिक अधिकार है। 1948 में सबसे गंभीर दावेदार राजेंद्र सिंहजी थे। उनके पास प्रभावशाली युद्ध रिकॉर्ड था।”

सिंह लिखते हैं, “कुछ लोगों द्वारा करियप्पा को इस प्रतिष्ठित नियुक्ति के लिए पसंद न करने का एक कारण यह था कि उनका ‘अंग्रेज़ीकरण’ हो गया था और उन्हें बहुत मुखर माना जाता था। पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ उनके मेलजोल की भी कुछ आलोचना हुई थी। इससे स्वाभाविक रूप से कुछ हलकों में गुस्सा भड़क गया और कुछ लोगों ने उनकी देशभक्ति पर भी संदेह किया। हालांकि, करियप्पा की योग्यता और वरिष्ठता के साथ-साथ उनके सहयोगियों के समर्थन ने जीत हासिल की। ​​राजेंद्र सिंहजी ने भी करियप्पा के सम्मान में प्रतिष्ठित नियुक्ति को अस्वीकार कर दिया और 4 दिसंबर 1948 को सरकार ने घोषणा की कि करियप्पा अगले कमांडर इन चीफ होंगे।”

तत्कालीन रक्षा मंत्री बलदेव सिंह के साथ करियप्पा (घेरे में)

15 जनवरी 1949 को, करियप्पा ने जनरल सर रॉय बुचर का स्थान लेते हुए भारतीय सेना के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (CoAS) और कमांडर-इन-चीफ का पद संभाला लिया। उस समय करियप्पा की उम्र 49 साल थी और ब्रिटिश शासन के 200 साल बाद पहली बार किसी भारतीय को भारतीय सेना की बागडोर दी गई थी। तब से लेकर आज तक 15 जनवरी को ‘आर्मी डे’ के रूप में मनाया जाता है।

युद्धबंदी बेटे को वापस लेने से कर दिया इनकार

मार्च 1937 में करियप्पा की एक वन अधिकारी की बेटी मुथु माचिया से शादी हुई। उनके एक बेटा के.सी. करियप्पा और एक बेटी नलिनी थी। के.सी. करियप्पा जिन्हें प्यार से नंदा कहा जाता था, भारतीय वायु सेना में शामिल हो गए और एयर मार्शल बने। 1965 के युद्ध के दौरान उनके बेटे जो फाइटर पायलट थे, का युद्धक विमान पाकिस्तान में मार गिराया गया और उन्हें बंदी बना लिया गया। उनके बेटे नंदू ने बीबीसी को एक इंटरव्यू में बताया था, “पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खां और मेरे पिता के बीच बहुत दोस्ती थी क्योंकि 40 के दशक में अयूब उनके अंडर में काम कर चुके थे। मेरे पकड़े जाने के बाद रेडियो पाकिस्तान से खासतौर से ऐलान करवाया गया कि मैं सुरक्षित हूं।”

उन्होंने बताया, “एक घंटे के अंदर दिल्ली में पाकिस्तान के उच्चायुक्त ने मेरे पिता से टेलिफोन पर बात की और कहा अयूब खां ने उन्हें संदेश भिजवाया है कि अगर आप चाहें तो वो आपके बेटे को तुरंत भारत वापस भेज सकते हैं। तब मेरे पिता ने जवाब दिया था, “सभी भारतीय युद्धबंदी मेरे बेटे हैं, आप मेरे बेटे को उनके साथ ही छोड़िए।”

करियप्पा का भारतीय जवानों के प्रति प्यार और अपनापन बहुत प्रसिद्ध था। वीके सिंह ने लिखा है, “वे अक्सर कहते थे, ‘हमारे जवान हीरे जैसे हैं।’ रिटायरमेंट के बाद जब वे मर्करा में अपने घर ‘रोशनारा’ में रहने लगे, तो उन्होंने अपने कमरे में एक जवान की मूर्ति रखी, जिसे उन्होंने अपने पिता की तस्वीर के पास रखा था। करियप्पा हर दिन इन दोनों को प्रणाम करके दिन की शुरुआत करते थे। उन्हें भारतीय सेना या जवानों की कोई भी आलोचना बिलकुल बर्दाश्त नहीं थी। वे तुरंत उनके पक्ष में खड़े हो जाते थे। एक बार एक अखबार ने भारतीय सेना के खिलाफ अपमानजनक बातें छाप दीं, तो करियप्पा ने उस पर मानहानि का मुकदमा कर दिया। जब अखबार के संपादक ने माफी मांगी और अपनी बात वापस ली, तो करियप्पा ने मुकदमा वापस ले लिया।”

जब पाकिस्तानी सैनिकों ने किया सैल्यूट

भारत-पाकिस्तान युद्ध समाप्त होने के बाद भारतीय जवानों का मनोबल बढ़ाने के उद्देश्य से जनरल करियप्पा सीमा पर पहुंचे। इस दौरान उन्होंने ‘नो मैन्स लैंड’ में प्रवेश कर लिया, जिसे लेकर पाकिस्तानी पक्ष सतर्क हो गया। जनरल करियप्पा की जीवनी में उनके पुत्र नंदू करियप्पा लिखते हैं कि जैसे ही उन्होंने सीमा पार की, पाकिस्तानी कमांडर ने उन्हें वहीं रुकने की चेतावनी दी और कहा कि यदि आगे बढ़े तो गोली चला दी जाएगी। तभी भारतीय सीमा से किसी ने ऊंची आवाज़ में कहा, “ये जनरल करियप्पा हैं।” यह सुनते ही पाकिस्तानी सैनिकों ने अपने हथियार नीचे रख दिए। इसके बाद एक पाकिस्तानी अफ़सर ने आगे आकर जनरल करियप्पा को सलामी दी। करियप्पा ने भी सौहार्दपूर्ण व्यवहार दिखाते हुए पाकिस्तानी सैनिकों से उनका हालचाल पूछा और यह भी जानना चाहा कि क्या उन्हें घर से चिट्ठियाँ मिल रही हैं।

बेंगलुरु में राष्ट्रीय सैन्य स्मारक में करियप्पा की प्रतिमा (चित्र: Wikimedia Commons)

नेहरू और करियप्पा के संबंध?

करियप्पा कमांडर इन-चीफ के लिए नेहरू की पसंद नहीं थे और उन दोनों के रिश्ते भी बहुत मधुर नहीं रहे। करियप्पा को चीन से तरफ आने वाले खतरे का अंदाजा हो गया था और इसी को भांपते हुए वह सीमा की प्रभावी तरीके से रक्षा करना चाहते थे। वीके सिंह लिखते हैं, “मई 1951 में उन्होंने नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (NEFA) की रक्षा के लिए एक रूपरेखा योजना प्रस्तुत की। नेहरू ने उनकी योजना को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि प्रधानमंत्री को यह बताना कि देश की रक्षा कैसे करनी है यह कमांडर इन चीफ का काम नहीं है। उन्होंने करियप्पा को केवल पाकिस्तान और कश्मीर की चिंता करने की सलाह दी। करिअप्पा बहुत आहत हुए, लेकिन एक अच्छे सैनिक की तरह उन्होंने प्रधानमंत्री की झिड़की को स्वीकार कर लिया। बाद के वर्षों में उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। अगर उन्होंने नेहरू की कल्पनाओं का मजबूती से तर्कों और तथ्यों के साथ विरोध किया होता, तो शायद 1962 की हार नहीं होती।”

करियप्पा के रिटायर होने के तुरंत बाद नेहरू ने उन्हें भारतीय उच्चायुक्त के रूप में ऑस्ट्रेलिया भेजने की पेशकश की। कुछ विचार-विमर्श के बाद, उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया और जुलाई 1953 में सिडनी के लिए रवाना हो गए। इसके पीछे एक तर्क यह भी दिया जाता है कि नेहरू नहीं चाहते थे कि इतने ताकतवर शख्स भारत में रहें तो उन्हें उच्चायुक्त के रूप में देश से बाहर भेज दिया गया। ऑस्ट्रेलिया के अलावा करियप्पा न्यूज़ीलैंड में भी उच्चायुक्त रहे और 1956 तक वे इस पद पर काम करते रहे।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नेहरू, करियप्पा के पत्रों का जवाब नहीं दे रहे थे जिसके चलते वह नेहरू से बहुत नाराज़ थे। 14 अप्रैल 1960 को करियप्पा ने प्रधानमंत्री नेहरू को एक चिट्ठी में लिखा, “हमारी पिछली मुलाकात 16 जनवरी को बेंगलुरु में हुई थी। उसके बाद मैंने आपको दो पत्र लिखे, जिनमें मैंने कुछ ऐसे मुद्दे उठाए जो मुझे तब भी और अब भी बहुत ज़रूरी लगते हैं। मैंने हमेशा आपकी कही बातों के हिसाब से आपको बिना घुमाए-फिराए बात कही है, बिना किसी स्वार्थ या राजनीतिक मकसद के। मुझे पता है कि आप बहुत व्यस्त रहते हैं, लेकिन मुझे उम्मीद थी कि आप कम से कम दो-चार पंक्तियों का जवाब जरूर देंगे। क्या मैंने ऐसा कुछ कहा है जो देशद्रोह या देशविरोधी हो? ऐसा क्या कहा है कि आप मेरी बातों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दें? पंडितजी, मुझे आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। यह मेरे लिए बहुत दुखद और निराशाजनक अनुभव है। शायद मेरी आदर्शवादी सोच ही मुझे दुख देती है।”

अपने पत्र में करियप्पा ने तीन अहम मुद्दे उठाए जिनका ज़िक्र वो पहले भी कर चुके थे। उन्होंने सेना के अधिकारियों के मनोबल की गिरती स्थिति पर चिंता जताई और राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज (National Defence College) खोलने का विरोध किया, क्योंकि इससे भारी खर्च और प्रशासनिक समस्याएं जुड़ी थीं। साथ ही, उन्होंने कश्मीर मुद्दे को सुलझाने का भी आग्रह किया था।

करियप्पा ने अपने पत्र में लिखा, “पंडितजी, कृपया इसे अपने जीवनकाल में ही (कश्मीर का मामला) सुलझा लें। हम हमेशा जीवित नहीं रह सकते और न ही हमेशा पद पर बने रह सकते हैं। अगर आप इस मुद्दे को सुलझाने की इच्छा दिखाएं तो अयूब ख़ान आपसे बात करने को तैयार हो जाएंगे। कृपया भारत और पाकिस्तान को यह 12 साल पुराना मसला आपस में मिलकर हल करने दीजिए। अगर हम इसे खुद सुलझाते हैं, तो दोनों देशों के बीच लंबे समय तक goodwill यानी अच्छे संबंध बने रहेंगे, बजाय इसके कि कोई तीसरा देश हमारे लिए इसे सुलझाए।” अंत में उन्होंने लिखा, “कृपया मेरे सुझावों को यह कहकर नजरअंदाज मत कीजिए कि यह किसी ‘मानसिक रूप से अस्थिर व्यक्ति की एक और गैरजिम्मेदार बात’ है।”

1959 में नेहरू ने भी करियप्पा को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने करियप्पा से माफी मांगी थी क्योंकि उन्होंने सार्वजनिक रूप से कठोर शब्दों में आलोचना की थी। यह पत्र उस समय के सेना प्रमुख जनरल के. एस. थिमैया द्वारा इस्तीफे और संसद सत्र के दौरान नेहरू द्वारा की गई आलोचनाओं से जुड़ा था। करियप्पा ने नेहरू से कहा कि उन्होंने सेना प्रमुख का अपमान किया है। इसके अलावा, करियप्पा ने सीमा पर भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव के बारे में भी चेतावनी दी थी और सुझाव दिया था कि तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।

एक इंटरव्यू में करियप्पा ने यह चेतावनी दी थी कि अगर लद्दाख और उत्तर-पूर्व सीमा एजेंसी (NEFA) से चीनियों को तुरंत नहीं हटाया गया, तो भविष्य में यह कार्य “सौ गुना ज़्यादा मुश्किल और खर्चीला” हो जाएगा। उन्होंने कहा कि भारत की तरफ से किसी भी तरह की देरी या हिचकिचाहट चीन को और अधिक छूट देगी, जिससे वह हमारे क्षेत्र पर नए दावे करेगा और सीमाओं पर और ज्यादा सैनिक भेजेगा।

करियप्पा ने पाकिस्तान के साथ रक्षा सहयोग समझौते का सुझाव भी रखा। नवंबर 1959 में लिखे अपने एक लेख में उन्होंने कहा कि अगर कश्मीर विवाद सुलझा लिया जाए, तो दोनों देशों के काफी सैनिक बाहरी सीमाओं की रक्षा के लिए तैनात किए जा सकते हैं। इससे भारत को भूटान, सिक्किम और नेपाल की सुरक्षा के अपने वादों को निभाने में मदद मिलेगी। इस विचार पर जनसंघ के नेताओं ने करियप्पा का समर्थन भी किया। करियप्पा के बयान के तुरंत बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में नेहरू ने कहा कि ‘इसमें इतनी असाधारण कम समझ है कि मुझे हैरानी हो रही है। मुझे लगता है कि जनरल करियप्पा मानसिक और अन्य रूप से पूरी तरह से रास्ते से भटके हुए हैं।’ इन टिप्पणियों का विरोध करते हुए करियप्पा ने 7 नवंबर को नेहरू को एक पत्र लिखा, जिसका प्रधानमंत्री ने 19 नवंबर 1959 को जवाब दिया।

अपने जवाब में, नेहरू ने करियप्पा के थिमैया से संबंधित टिप्पणियों और प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके बारे में की गई बातों का जिक्र किया। नेहरू ने थिमैया को लेकर अपनी टिप्पणियों पर अपनी राय रखी। नेहरू ने कहा कि उनका मानना था कि जब देश अपनी सीमाओं पर मुश्किल स्थिति का सामना कर रहा था, तब थिमैया का इस्तीफा देना ठीक नहीं था। नेहरू ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में करियप्पा के बारे में की गई टिप्पणियों के लिए बिना शर्त माफी मांगी। उन्होंने कहा, “जहां तक मेरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में की गई बातों का सवाल है, मुझे खेद है कि मैंने ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। लेकिन त्वरित सवाल-जवाब में, हमेशा शब्दों का सही तरीके से चुनाव करना थोड़ा मुश्किल होता है। मुझे विशेष रूप से खेद है कि मैंने आपको दुख पहुंचाया है।”

बाद में नेहरू ने करियप्पा को उनकी हालिया सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए खरी-खोटी भी सुनाई। नेहरू ने लिखा, “मुझे लगता है कि आपने जो कुछ भी कहा है, वह बहुत गैर-जिम्मेदाराना था और कुछ हद तक हानिकारक भी था। सीमा की स्थिति के बारे में आपका बयान, निश्चित रूप से अच्छे इरादों से दिया गया था लेकिन आपकी कही गई बातों का समग्र रुझान मुझे गलत लगा और इससे भ्रामक धारणाएं बन गईं, जिससे जनता में डर पैदा हो गया है। आपने पाकिस्तान के साथ संयुक्त रक्षा का जिक्र किया है और इस विषय पर हमारे विचारों में काफी अंतर है।”

नेहरु ने करियप्पा पर जनसंघ के समर्थन जैसे भी आरोप लगाए। नेहरू ने लिखा, “आपको अपने विचार व्यक्त करने या जो चाहे करने की पूरी स्वतंत्रता है। हालांकि, मुझे यह कहना होगा कि कभी-कभी आपके विचारों की अभिव्यक्ति मुझे सराहनीय नहीं लगी। न ही आपकी कुछ सार्वजनिक गतिविधियाँ, जो जनसंघ जैसे सांप्रदायिक संगठनों का समर्थन करती दिखती हैं।”

87 वर्ष में बने फ़ील्ड मार्शल

15 जनवरी 1986 को दिल्ली में आयोजित सेना दिवस परेड के बाद, तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल के. सुंदरजी ने घोषणा की कि सरकार ने जनरल के.एम. करियप्पा को फील्ड मार्शल बनाने का निर्णय लिया है। 28 अप्रैल 1986 को राष्ट्रपति भवन में एक विशेष समारोह के दौरान उन्हें राष्ट्रपति जैल सिंह द्वारा फील्ड मार्शल की बैटन दी गई। उनके बेटे, एयर मार्शल नंदा ने इस अवसर की यादें साझा कीं। उन्होंने बताया कि उस दिन उनके पिता के दाहिने पैर की छोटी अंगुली में अत्यधिक दर्द था। घर पर वे बाएं पैर में जूता और दाहिने पैर में चप्पल पहनते थे। हालांकि, राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में उन्होंने अपनी आदत के अनुसार नोकदार जूते पहने और वॉकिंग स्टिक का उपयोग नहीं किया। उनकी उम्र उस समय 87 वर्ष थी और समारोह लगभग 10 मिनट चला, जिसमें उन्होंने खड़े रहकर सम्मान ग्रहण किया जबकि उनके पैर में बहुत दर्द हो रहा था।

राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह करियप्पा को फील्ड मार्शल की बैटन प्रदान करते हुए (चित्र: Wikimedia Commons)

करियप्पा के आखिरी दिन

1991 के बाद फील्ड मार्शल करियप्पा की सेहत लगातार बिगड़ने लगी थी। वे आर्थ्राइटिस से जूझ रहे थे और कमजोर दिल के चलते उन्हें निरंतर चिकित्सा की आवश्यकता थी। जिसके चलते उन्हें बेंगलुरू के कमांड अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया था। 15 मई 1994 को नींद में सोते समय उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली। दो दिन बाद, मडिकेरी स्थित उनके पैतृक घर में उनका अंतिम संस्कार पूरे सैन्य सम्मान के साथ हुआ। इस अवसर पर तीनों सेवा प्रमुखों और फील्ड मार्शल सम मानेकशॉ ने भी उपस्थित थे। उनके बेटे नंदा करियप्पा ने चिता को अग्नि दी और बिगुल से निकली ‘लास्ट पोस्ट’ की आवाज़ के बीच वो ईश्वर में विलीन हो गए थे।

Tags: Indian ArmyJawaharlal NehruKM CariappaNathu Singh Rathoreकेएम करियप्पाजवाहरलाल नेहरूनाथू सिंह राठौरभारतीय सेना
शेयरट्वीटभेजिए
पिछली पोस्ट

परमाणु लीक की चर्चाओं के बीच पाकिस्तानी न्यूक्स को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दिया बड़ा बयान, बोले- पाकिस्तान के एटमी हथियारों को….

अगली पोस्ट

हर जरूरतमंद तक राशन पहुंचाने को योगी सरकार का बड़ा कदम, एनएफएसए वितरण प्रणाली के लिए 179 करोड़ की मंजूरी

संबंधित पोस्ट

भारतीय दर्शन और संविधान
इतिहास

भारतीय चिंतन दृष्टि से संविधान: ज्ञान परंपरा में नागरिकता का इतिहास

2 December 2025

भारतीय ज्ञान परंपरा में नागरिकता (Citizenship) का विचार आधुनिक “राज्य–नागरिक” (State–Citizen) ढाँचे से भले अलग रहा हो, पर इसका इतिहास अत्यंत प्राचीन, समृद्ध और बहुआयामी...

तालोम रुकबो
इतिहास

अरुणाचल प्रदेश के वनवासियों को धर्मांतरण से बचाने वाले तालोम रुकबो: एक भूले-बिसरे नायक की कहानी

1 December 2025

कुछ ऐसे राष्ट्रनायक हुए हैं, जिनके योगदान को सामने लाने में इतिहास ने हमेशा कोताही बरती है। अरुणाचल प्रदेश के तालोम रुकबो भी उन्ही में...

राजा महेंद्र प्रताप सिंह
इतिहास

राजा महेंद्र प्रताप सिंह: आजादी की लड़ाई का योद्धा, जिसने काबुल में बनाई थी स्वतंत्र भारत की पहली निर्वासित सरकार

1 December 2025

"हमारी आज़ादी के आंदोलन में कई महान व्यक्तित्वों ने अपना सबकुछ खपा दिया. लेकिन यह देश का दुर्भाग्य रहा है कि आज़ादी के बाद ऐसे...

और लोड करें

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

I agree to the Terms of use and Privacy Policy.
This site is protected by reCAPTCHA and the Google Privacy Policy and Terms of Service apply.

इस समय चल रहा है

A War Won From Above: The Air Campaign That Changed South Asia Forever

A War Won From Above: The Air Campaign That Changed South Asia Forever

00:07:37

‘Mad Dog’ The EX CIA Who Took Down Pakistan’s A.Q. Khan Nuclear Mafia Reveals Shocking Details

00:06:59

Dhurandar: When a Film’s Reality Shakes the Left’s Comfortable Myths

00:06:56

Tejas Under Fire — The Truth Behind the Crash, the Propaganda, and the Facts

00:07:45

Why Rahul Gandhi’s US Outreach Directs to a Web of Shadow Controversial Islamist Networks?

00:08:04
फेसबुक एक्स (ट्विटर) इन्स्टाग्राम यूट्यूब
टीऍफ़आईपोस्टtfipost.in
हिंदी खबर - आज के मुख्य समाचार - Hindi Khabar News - Aaj ke Mukhya Samachar
  • About us
  • Careers
  • Brand Partnerships
  • उपयोग की शर्तें
  • निजता नीति
  • साइटमैप

©2025 TFI Media Private Limited

कोई परिणाम नहीं मिला
सभी परिणाम देखें
  • राजनीति
    • चर्चित
    • मत
    • समीक्षा
  • अर्थव्यवस्था
    • वाणिज्य
    • व्यवसाय
  • रक्षा
    • आयुध
    • रणनीति
  • विश्व
    • अफ्रीका
    • अमेरिकाज़
    • एशिया पैसिफिक
    • यूरोप
    • वेस्ट एशिया
    • साउथ एशिया
  • ज्ञान
    • इतिहास
    • संस्कृति
  • बैठक
    • खेल
    • चलचित्र
    • तकनीक
    • भोजन
    • व्यंग
    • स्वास्थ्य
  • प्रीमियम
TFIPOST English
TFIPOST Global

©2025 TFI Media Private Limited