यहां शनिदेव के आदेश से होता है हर काम, कुंडों में जमा है 27.44 लाख लीटर तेल

मेवाड़ के अली गांव में बने शनि मंदिर की अनूठी परंपरा उसे देशभर प्रसिद्धि दे रही है। यहां शनिदेव के आदेश से हर काम होता है। आइये शनि जयंती पर जानें इस स्थान की मान्यता और महिमा

Mewar Ali Village Shani Temple

Mewar Ali Village Shani Temple

शनि शिंगणापुर और वहां की महिमा के साथ ही परंपराओं के बारे में तो आपने खूब सुना होगा। लेकिन क्या कभी राजस्थान की पावन धरती पर मौजूद आस्था, अनुशासन और परंपरा का अनुपम संगम वाले शनि मंदिर के बारे में आपने सुना है? नहीं न तो हम आपको बताते हैं। मेवाड़ जिले के भादसोड़ा-कपासन मार्ग पर एक गांव है। इसका नाम अली गांव हैं। यहां का शनिधाम अपने आप में अनूठा है। यहां भक्तों द्वारा पिछले 29 वर्षों से चढ़ाये जा रहे हर कतरा तेल को सहेजा जा रहा है। इस संबंध में शनिदेव की अनुमति के बिना उस पर निर्णय तक नहीं होता। यह मंदिर अपनी व्यवस्था, भक्ति और शनिदेव से पाती लेकर किए देशभर में श्रद्धा का केंद्र बन गया है।

शनि जयंती पर हम आपके बताते हैं मेवाड़ के इस शनिदेव मंदिर की अनोखी परंपरा देखने को मिलती है। क्योंकि, यहां चढ़ाए गए तेल की एक-एक बूंद को सहेज रहा है। यहां चढ़ाए गए तेल को न तो इस्तेमाल किया जाता है और न बेचा जाता है। इसी वजह से मंदिर में अब तक तीन विशाल तेल कुंड बन चुके हैं। उनको अभी भी भरा जाता है।

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शनिदेव से ली जाती है पाती

मंदिर पदाधिकारियों का कहना है कि यहां हर काम के लिए शनिदेव से पाती ली जाती है। यानी हर काम उनसे पूछकर किया जाता है। शुरुआत में तेल एक गड्ढे में जमा होता था। जब ट्रस्ट बना तो पक्का कुंड बनाया गया। जब कुंड भर गया तो शनिदेव से पूछा गया कि तेल का क्या करें? तीन विकल्प रखे गए। पहला- तेल को नदी में बहा दिया जाए या गड्ढा खोदकर डिस्पोज कर दिया जाए। दूसरा व्यावसायिक उपयोग के लिए दे दिया जाए। तीसरा- एक अन्य कुंड बनाया जाए।

पदाधिकारियों ने बताया कि शनिदेव ने अन्य कुंड बनाने का आदेश दिया था। इस कारण मंदिर में एक के बाद एक तीन कुंड बनाए गए। इनमें तेल भरा जा रहा है। तीसरा कुंड भरने से पहले भी शनिदेव से पाती ली जाएगी। अगर वो अन्य कुंड का आदेश देते हैं तो मंदिर में चौथा कुंड बनाया जाएगा। अगर वो तेल के अन्य उपयोग का आदेश देते हैं तो उसे उसी तरीके से किया जाएगा।

अब तक बने हैं 3 कुंड

आकलन के अनुसार, इन कुंडों में अभी 27.44 लाख लीटर तेल भरा हुआ है। तीनों कुंड आपस में जुड़े हुए हैं। एक कुंड के भर जाने पर तेल स्वतः दूसरे और फिर तीसरे कुंड में चला जाता है। तीसरे कुंड की गहराई 40 फीट है। ये अभी 15 फीट तक ही भरा है। जानकार बताते हैं कि इसे पूरा भरने में कई साल लगेंगे।

इस विषय पर भी ली गई थी पाती

इस मंदिर में पहले श्रद्धालु पहले सरसों के साथ-साथ तिली और अन्य प्रकार के तेल भी चढ़ाते थे। हाल ही में कमेटी ने फैसला लिया है कि अब से केवल सरसों का तेल ही चढ़ाया जाएगा। सचिव कालू सिंह ने बताया कि इस नए नियम की शुरुआत के लिए भी शनिदेव से पाती मांगी गई। उनके आदेशानुसार, पहले कुंड की सफाई कराई जाएगी। कुंड का तेल दूसरे से तीसरे में डालकर इसे पूरी तरह खाली कर दिया जाएगा। इससे एक कुंड में केवल सरसों का तेल ही जमा होगा।

शनि शिंगणापुर की तरह ही यहां भक्त सीधे शनिदेव की प्रतिमा पर तेल नहीं चढ़ाते है। करीब 15 साल पहले मुख्य द्वार पर दोनों तरफ 10-10 फीट लंबे कीप लगाए गए हैं। श्रद्धालु इन्हीं में तेल चढ़ाते हैं जो पाइप लाइन से शनिदेव की मूर्ति तक पहुंचता है। इसके बाद तेल यहां से पहले कुंड में जाता है। इसके ओवरफ्लो पॉइंट से तेल दूसरे और फिर तीसरे कुंड में पहुंच जाता है।

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