सुल्ताना बेगम को चाहिए लाल किला, CJI ने पूछा- फतेहपुर सीकरी क्यों नहीं? याचिका खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने लालकिला में कब्जा मांगने वाली एक याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट से सुल्ताना बेगम ने कब्जे और मुआवजे की मांग की थी।

Bahadur Shah Zafar Red Fort Supreme Court

लाल किला में कब्जा मांगने वाली याचिका खारिज

सदी बीतने के बाद अब अचानक एक महिला मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर द्वितीय की परपोते की विधवा बनकर जागी है। उसे कुछ और नहीं सीधे लालकिला में कब्जा करना है। इसके लिए वो देश की सुप्रीम अदालत में पहुंच गई। उनकी इस अजीबो-गरीब फरियाद को सुप्रीम कोर्ट ने भी उसी अंदाज में सुना। सुप्रीम कोर्ट ने न केवल इस याचिका को सिरे से खारिज किया, बल्कि सवाल भी पूंछा। कोर्ट ने कहा कि अगर वाकई उनका इतना गहरा नाता था तो सिर्फ लाल किला ही क्यों? फतेहपुर सीकरी के किले क्यों छोड़ दिए गए?

दिल्ली के लाल किला पर कब्जे की मांग का दावा सुलताना बेगम ने किया है। उसने खुद को अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर की वंशज बताया है। लाल किले पर दावा ठोकने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने ‘निराधार’ और ‘हास्यास्पद’ करार देते हुए खारिज कर दिया है। आइये जानें क्या है पूरा मामला?

सुल्ताना बेगम को चाहिए लाल किला

सुलताना बेगम ने याचिका में दावा किया था कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने उनके परिवार से लाल किला जबरन छीन लिया था। उनका तर्क था कि उनके पूर्वज और अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर द्वितीय को निर्वासित कर दिया गया था। उसके बाद लाल किला अंग्रेजों के गैरकानूनी कब्जे में चला गयाा। उन्होंने खुद को बादशाह के परपोते की विधवा का वंशज बताते हुए लाल किला वापस सौंपने या 1857 से लेकर आज तक के अवैध कब्जे के लिए मुआवजा की मांग की थी। बेगम ने अपनी खराब सेहत और बेटी की मृत्यु के कारण अपील दाखिल करने में देरी का हवाला दिया था।

सुप्रीम कोर्ट का दो टूक फैसला

जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की पीठ ने याचिका को “पूरी तरह से निराधार” और “गुणहीन” करार दिया। मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि अगर इन तर्कों को माना जाता है, तो यह सवाल उठेगा कि केवल लाल किला ही क्यों, आगरा और फतेहपुर सीकरी के किले क्यों नहीं। अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील के इस अनुरोध को भी ठुकरा दिया कि कम से कम याचिका को देरी के आधार पर ही खारिज किया जाए। क्योंकि हाईकोर्ट ने तथ्यों पर विचार नहीं किया था। सुनवाई के दौरान CJI ने कहा कि…

“सिर्फ लाल किला ही क्यों? फतेहपुर सीकरी क्यों नहीं? उन्हें भी क्यों छोड़ा जाए?”

दिल्ली हाईकोर्ट ने भी दिखाया था ठेंगा

सुल्ताना बेगम ने सबसे पहले 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। यहां भी उन्होंने लाल किले पर स्वामित्व और मुआवजे की मांग की गई थी। लेकिन हाईकोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि याचिका 164 साल की देरी से दायर की गई है, जो कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं है। उस समय एकल पीठ ने कहा था कि…

“यह याचिका समय और संसाधनों का दुरुपयोग है। अगर मान भी लिया जाए कि लाल किला अवैध रूप से छीना गया था, तो भी इतने साल बाद यह दावा कैसे मान्य हो सकता है?”

हाईकोर्ट से आए फैसले के बाद सुल्ताना बेगम यहीं नहीं रुकी। उन्होंने हाईकोर्ट की खंडपीठ में अपील की लेकिन दिसंबर 2024 में जस्टिस विभू बखरू और जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने भी अपील खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी कि आप 164 साल देर से आए हैं। यह दावा अब विचारणीय नहीं है। इस फैसले के खिलाफ बेगम ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

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इतिहास तोड़-मरोड़कर नहीं कर सकते पेश

सुल्ताना बेगम की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस बात का सबूत है कि इतिहास को तोड़-मरोड़कर मौजूदा व्यवस्था को चुनौती देने की कोशिशें नाकाम रहेंगी। लाल किला भारत की शान और एकता का प्रतीक है। इसे किसी व्यक्तिगत दावे की भेंट नहीं चढ़ाया जा सकता। कोर्ट ने न केवल याचिका को खारिज किया बल्कि यह भी साफ कर दिया कि ऐसी कोशिशें समय और संसाधनों का दुरुपयोग हैं। यह फैसला उन ताकतों के लिए भी सबक है जो पुराने पन्नों को उछाल कर देश की शांति और व्यवस्था को भंग करना चाहते हैं।

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