‘दुनिया को खोखला कर रही: वामपंथी दीमक’; अभिजीत जोग की किताब से छिड़ी वैचारिक बहस

वामपंथ सिर्फ दीमक नहीं है, यह एक ऐसा नशा है जो तीन पीढ़ियों को एक झूठे भ्रम में कैद कर चुका है: सुधांशु त्रिवेदी

'दुनिया को खोखला कर रही: वामपंथी दीमक' पुस्तक का विमोचन

'दुनिया को खोखला कर रही: वामपंथी दीमक' पुस्तक का विमोचन

लेखक और विचारक अभिजीत जोग की नई किताब दुनिया को खोखला कर रही: वामपंथी दीमक ने देशभर में वामपंथ को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। इस किताब में जोग ने वामपंथी आंदोलनों, खासकर ‘वोकिज़्म’ जैसे नव-मार्क्सवादी विचारों के ज़रिये सामाजिक न्याय की अवधारणा को कैसे तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है, इस पर कड़ा हमला किया है। उनका तर्क है कि ये विचारधाराएं सांस्कृतिक संस्थाओं को अंदर से दीमक की तरह खोखला कर रही हैं। दिल्ली के महाराष्ट्र सदन में बीजेपी के राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने इस पुस्तक के हिंदी और अंग्रेज़ी संस्करण (TERMITES: How the Left is Destroying the World through Subversion) का विमोचन किया। इस कार्यक्रम में सुरुचि प्रकाशन के अध्यक्ष राजीव तुली, पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर, भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय सचिव और माय होम इंडिया के संस्थापक सुनील देवधर समेत कई महत्वपूर्ण लोग उपस्थित रहे।

पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, “वामपंथ सिर्फ दीमक नहीं है, यह एक ऐसा नशा है जो तीन पीढ़ियों को एक झूठे भ्रम में कैद कर चुका है। यह एक वैचारिक खोल में बंद रहता है और वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं रखता। हमारी लड़ाई सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सभ्यतागत है।” उन्होंने आगे कहा, “1970 के दशक से वामपंथ ने ‘आत्मघृणा’, ‘असंतोष’, और ‘विद्रोह’ के ज़रिए खुद को एक बौद्धिक मुखौटे में छिपाकर फैलाया। लेकिन अब यह भ्रम टूट रहा है- राम मंदिर और रामसेतु जैसे आंदोलन इसका प्रमाण हैं।” उन्होंने ये भी जोड़ा कि आने वाले समय में AI और उन्नत तकनीकें इस वैचारिक युद्ध में अहम भूमिका निभाएंगी

वामपंथ की जकड़ संस्थानों पर स्पष्ट: राजीव तुली

सुरुचि प्रकाशन के अध्यक्ष राजीव तुली ने इसे लेकर कहा, “वामपंथ हमेशा दावा करता है कि चाहे सत्ता में कोई भी हो, संस्थाएं उनकी ही रहेंगी। सत्ता से बाहर होकर भी वे व्यवस्था पर नियंत्रण बनाए रखते हैं।”

लोकतंत्र के नाम पर तानाशाही— हितेश शंकर

पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने कहा, “जहां भी वामपंथी विचारधारा फैली है, वहां उसने देश को दीमक की तरह खोखला किया है। यह ऐसी विचारधारा है जो लोकतंत्र की बात करती है, लेकिन असहमति को कुचलती है। यह खूनी क्रांतियों को रोमांटिक बनाकर पेश करती है, जबकि असल में यह आतंक और दमन का दूसरा नाम है।”

त्रिपुरा, बंगाल, केरल– वामपंथ के विध्वंस के उदाहरण: सुनील देवधर

पूर्व भाजपा राष्ट्रीय सचिव और माय होम इंडिया के संस्थापक सुनील देवधर ने कहा, “वामपंथी विचारधाराएं भारत में अराजकता, शोषण और दमन की विरासत छोड़ गई हैं। पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और केरल जैसे राज्य आज भी उस विनाशकारी शासन के गवाह हैं।” उन्होंने कहा, “वामपंथी शासन हमेशा समाजवाद और समानता की बातें करता है, लेकिन नतीजा होता है भ्रष्टाचार, अव्यवस्था और मानवाधिकारों का उल्लंघन। भारत की जनता इससे बेहतर की हकदार है।”

देशभर में चर्चा में जोग की किताब

इस आयोजन ने एक बात बहुत साफ कर दी है कि अब वक्त आ गया है कि वामपंथी विचारधारा पर खुलकर, ईमानदारी से और गहराई में जाकर बातचीत हो। ये सिर्फ किसी राजनीतिक सोच की बात नहीं है, बल्कि हमारे समाज, हमारी संस्कृति और देश के भविष्य से जुड़ा एक बड़ा सवाल है, जिस पर अब चुप रहना ठीक नहीं।

अभिजीत जोग की किताब इस ज़रूरी बहस को एक नई धार देती है। ये किताब सिर्फ शब्दों का पुलिंदा नहीं, बल्कि एक सच्चे मन से लिखी गई आवाज़ है, जो सोचने पर मजबूर करती है, झकझोरती है। खास बात ये है कि इसका मराठी संस्करण अब तक दस बार छप चुका है और हर बार हाथों-हाथ बिक गया। ये दिखाता है कि लोग इसे पढ़ रहे हैं, समझ रहे हैं, और इससे जुड़ रहे हैं।

ये किताब कोई डराने वाली चेतावनी नहीं है, बल्कि एक खुला न्योता है कि आइए, मिलकर सोचें कि कैसे हम अपने देश को उस वैचारिक दीमक से बचा सकते हैं, जो चुपचाप इसकी जड़ों को खोखला कर रहा है। ये एक पुकार है, उन सबके लिए जो देश से प्यार करते हैं और चाहते हैं कि उसका मनोबल, उसकी आत्मा और उसकी सोच हमेशा मजबूत बनी रहे।

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