Rise of India: भारत का उदय केवल अप्रत्याशित नहीं है, यह पुराने वैश्विक व्यवस्था को विचलित करने वाला है। यह इसलिए नहीं कि हमारा देश शक्ति का कोई नया पैमाना लेकर आया है। बल्कि इसलिए कि इसने उन सारे सांचों को तोड़ दिया है जिनसे पश्चिम ने सदियों तक दुनिया को तौला है। कौन नेता होगा, कौन अनुयायी, कौन शासक होगा और कौन प्रतिरोध करेगा? हालांकि, भारत ने कभी इन नियमों को स्वीकारा ही नहीं किया। अब बिना किसी विजययात्रा, बिना उपनिवेश और बिना किसी की नकल के भारत न केवल उभर रहा है। बल्कि भारत पूरी कहानी फिर से लिख रहा है। यह कोई क्षणिक चढ़ाव नहीं, बल्कि एक ऐसी सभ्यता का पुनर्जागरण है जो कभी मरी नहीं सिर्फ ठहर गई थी।
पश्चिम का प्रभुत्व औचक और क्रूर तरीकों से आया था। ये उपनिवेशवाद, दासता, युद्ध और लूट के सहारे थे। इससे ठीक उलट भारत का उभार एक प्राचीन सांस्कृतिक निरंतरता है। इसमें कई वैज्ञानिक और सामाजिक उपलब्धियां शामिल हैं। इसने शून्य की खोज की, परमाणुओं का सिद्धांत दिया, प्रकाश की गति की गणना की और समय यात्रा की परिकल्पना की, विश्वविद्यालय बनाए और जटिल सर्जरी की है। जब भारत का उदय इन तमाम मानकों पर हो रहा था तब यूरोप का अधिकांश हिस्सा अभी भी अंधविश्वास से जूझ रहा था।
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आज के दौर में भी पश्चिम बोर्डरूम में सांस्कृतिक विविधता पर बहस करता है। ऐसे समय में भारत इसे 1.4 अरब लोगों के साथ उनकी मंदिरों, मस्जिदों, घरों और दिलों में जीता है। भारत ने उन पारसियों, यहूदियों और अन्य अल्पसंख्यकों को अपनाया है जिन्हें मोनोकल्चर की संस्कृति ने दुनिया से बाहर कर दिया। ये भारत के स्मृति, सह-अस्तित्व, नवाचार की गहराई है जिसे पश्चिम समझ नहीं पाता या यूं कहें कि समझ ही नहीं सकता।
भारत आज जो हासिल करता है, वह उन्हें अविश्वसनीय लगता है। क्योंकि यह उनकी मान्यताओं को धता बताता है। यह उनके पूर्वग्रहों को चुनौती देता है। चंद्रयान का चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना, AI आधारित युद्ध प्रणाली, करोड़ों लोगों को गरीबी से निकालना, सैकड़ों संस्कृतियों को एक राष्ट्र के धागे में पिरोया गया। ये लगातार पश्चिम को चुभता रहा है। क्योंकि वो भारत को ‘थर्ड वर्ल्ड’ कहकर उपहास करते थे। भारत उन अमीर देशों से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है और वह भी बेहद कम लागत पर।
कोरोना काल में भारत का प्रदर्शन अन्य देशों के मुकाबले काफी बेहतर रहा। CoWIN प्लेटफॉर्म ने 2 अरब से अधिक वैक्सीन खुराकों का डिजिटल प्रबंधन किया। इस दौर में उन्नत अर्थव्यवस्थाएं लड़खड़ा रही थीं। क्योंकि, ये उनकी सोच से बाहर था। भारत ने डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ाया। डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर देश में तेजी से विकसित हुआ। इसमें गांव का सबसे गरीब व्यक्ति भी QR कोड से भुगतान कर सकता है। वहीं अमेरिका अब भी कार्ड स्वाइप कर रहा है।
हमारा देश विरोधाभासों को दबाता नहीं है। यही कारण है कि अपनी जटिलता के बावजूद हम आगे बढ़ रहे हैं। भारत विरोधाभासों को दबाता नहीं बल्कि उन्हें आत्मसात करता है। भारत समरूपता के पीछे नहीं दौड़ता। विविधता में फलता-फूलता है। पश्चिम यह सब देखता है और घबरा जाता है। क्योंकि न तो वह इसे दोहरा सकता है और न ही नियंत्रित कर सकता है।
पश्चिम अपने साधनों से इसे नियंत्रित करने की कोशिश करेगा। इसके लिए वो प्रतिबंध, नैरेटिव, थिंक-टैंक, जलवायु अपराधबोध और कृत्रिम संकटों को सहारा लेगा। हालांकि ये सब व्यर्थ होगा। क्योंकि भारत का उदय और उत्थान किसी अस्थायी सैन्य शक्ति या नाजुक गठबंधनों पर नहीं टिका है। भारत तो हजारों वर्षों की सभ्यतागत नैतिकता पर आधारित है। बिना प्रतिशोध, बिना अहंकार के सबसे ऊपर ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के प्राचीन दर्शन के साथ बढ़ता है। यही कारण है कि अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया के राष्ट्र अब साझेदारी, विश्वास और एक साथ बनाए गए भविष्य के लिए पश्चिम की ओर नहीं, बल्कि भारत की ओर देखते हैं।
पश्चिम को सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि हमें उनकी मंजूरी की जरूरत नहीं थी। उसे उनकी पाठ्यपुस्तकों, उनके सांचे या उनकी तालियों की जरूरत नहीं थी। भारत अपनी मिट्टी से, अपने लोगों से, अपनी परंपराओं से और आत्मसात करने, विकसित होने और ऊपर उठने की अपनी अद्वितीय क्षमता से ऊपर उठा। यह कोई क्षणिक चमक नहीं है। यह एक सभ्यतागत शक्ति है जो अपनी जगह फिर से हासिल कर रही है।