‘ऑपरेशन सिंदूर’ के ट्रेडमार्क को लेकर क्या है विवाद?

ऑपरेशन सिंदूर के ट्रेडमार्क को लेकर कई आवेदन पहुंचे हैं। हालांकि, इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की गई है। आइये जानें पूरा विवाद क्या है?

operation sindoor trademark

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शेक्सपियर ने कहा था ‘नाम में क्या रखा है?’ यह सवाल भले ही कालजयी हो मगर जब बात पहचान और कारोबार की आती है तो एक नाम भी सोने की खान बन जाता है। आजकल कुछ ऐसा ही हाल ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के ट्रेडमार्क को लेकर देखने को मिल रहा है। मानो ‘एक अनार सौ बीमार’, हर कोई इस नाम पर अपना हक जताना चाहता है। भारत के सैन्य इतिहास में एक नया अध्याय लिखने वाला ऑपरेशन सिंदूर न केवल आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई का पर्याय बना है। बल्कि इसके नाम को ट्रेडमार्क करने की कोशिश ने भी सुर्खियां बटोरी हैं। यह विवाद न सिर्फ कानूनी दांवपेचों का मसला है बल्कि भावनाओं, संस्कृति और राष्ट्रीय अस्मिता से भी गहराई से जुड़ा है।

22 अप्रैल को हुए पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान में आतंकियों के सफाए के लिए ऑपरेशन सिंदूर चलाया। इसमें PoK और पाकिस्तान के 9 आतंकी ठिकानों को तबाह कर दिया गया। बस फिर क्या..? इसके बाद दोनों देशों में तनाव गहरा हो गया। मामला शांत होता इससे पहले ऑपरेशन की ट्रेडमार्क की मांग उठने लगी। अब इसपर भी विवाद गहरा रहा है।

साहस का दूसरा नाम ऑपरेशन सिंदूर

ऑपरेशन सिंदूर केवल एक सैन्य अभियान नहीं बल्कि भारत की आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति का प्रतीक है। 6-7 मई 2025 को शुरू हुए इस अभियान ने पाकिस्तान और पीओके में नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। ये 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम हमले का जवाब था। इस हमले में 26 नागरिकों की जान गई थी। मरने वालों में नवविवाहित पुरुष शामिल थे। आतंकियों ने इस हमले में निशाना बनाकर पुरुषों को मारा और महिलाओं को ये कहकर छोड़ दिया की मोदी को बता देना। इसके बाद ऑपरेशन सिंदूर सामने आया।

ऑपरेशन का नाम भी सिंदूर इसलिए चुना गया क्योंकि आतंकियों ने हिंदू पुरुषों को निशाना बनाया था। उनकी पत्नियों को बख्श दिया था। इससे नई नवेली दुल्हनों की मांग सूनी हो गई। इसी का बदला लेने के लिए भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना के समन्वय से 25 मिनट में 24 सटीक मिसाइल हमलों ने जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों के ठिकानों को तबाह किया।

ट्रेडमार्क की कोशिश ने की आग में घी का काम

एक तरफ देश ऑपरेशन सिंदूर की सफलता की चर्चा कर रहा था। लोग पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की जा रही थी। ऑपरेशन के बाद ड्रोन से लेकर मिसाइलों से पाकिस्तान हमला करने लगा। दूसरी तरफ एक अप्रत्याशित घटना ने माहौल को गरमा दिया। रिलायंस इंडस्ट्रीज की सहायक कंपनी जियो स्टूडियोज ने ऑपरेशन सिंदूर को ट्रेडमार्क कराने के लिए आवेदन दायर कर दिया।

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जियो स्टूडियो ऑपरेशन सिंदूर को ट्रेडमार्क करना चाहता है यह खबर जंगल की आग की तरह फैली और सोशल मीडिया में चर्चा का विषय बन गई। देखते-देखते इस लिस्ट में करीब 15 लोगों के नाम आ गए जो इस नाम को अपना बनाना चाहते थे। लोगों ने सवाल उठाया कि क्या राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बन चुका नाम किसी निजी कंपनी का ब्रांड बन सकता है? जब बात इतनी हुई तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।

ट्रेडमार्क अधिनियम के तहत रोक की मांग

दिल्ली निवासी देव आशीष दुबे ने अधिवक्ता ओम प्रकाश परिहार के माध्यम से ट्रेडमार्क को लेकर आपत्ति जताई और सुप्रीम कोर्ट में PIL लगा दी। याचिका में कहा गया कि ऑपरेशन सिंदूर शहीद सैनिकों के परिवारों के लिए भावनात्मक महत्व रखता है। यह नाम विधवाओं के बलिदान का प्रतीक है। इसके ट्रेडमार्क प्राप्त करने की कोशिश असंवेदनशील है। इतना ही नहीं ये ट्रेडमार्क अधिनियम-1999 की धारा 9 का सीधा उल्लंघन है। धारा 9 सीधे तौर पर सार्वजनिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले या वाणिज्यिक संदर्भ में विशिष्टता का अभाव रखने वाले शब्दों के पंजीकरण पर रोक लगाती है।

किस-किस ने मांगे ड्रेटमार्क

10 मई तक करीब 15 आवेदन ऑपरेशन सिंदूर के ट्रेडमार्क के लिए दायर किए गए हैं। इसमें से सबसे ज्यादा क्लास 41 के तहत आए हैं। इसका अर्थ है कि ट्रेडमार्क लेने वाला व्यक्ति इसका उपयोग मनोरंजन के लिए करेगा। 8 मई के बाद भी सिंदूर टीवी, ऑप्स-सिंदूर, ऑपरेशन सिंदूर-1, सिंदूर, सिंदूर द रिवेंज, और ऑपरेशन सिंदूर- एलिमिनेशन ऑफ टेररिज्म जैसे वर्डमार्क के लिए आवेदन आए हैं। कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार हैं।

क्लास 41 के तहत आए अधिक आवेदन

अधिकांश आवेदन क्लास 41 के तहत आए हैं। इसके जरिए मनोरंजन, शिक्षा, और सांस्कृतिक सेवाओं के लिए अधिकार दिए जाते हैं। साफ है आवेदनकर्ता इस नाम का उपयोग फिल्मों, वेब सीरीज, या अन्य मीडिया परियोजनाओं के लिए करना चाहते थे।

जियो ने वापस लिया नाम

लोगों की नाराजगी और बढ़ते दबाव के बीच रिलायंस इंडस्ट्रीज ने 8 मई 2025 को अपना आवेदन वापस ले लिया। कंपनी ने बयान जारी कर कहा, ऑपरेशन सिंदूर अब भारतीय वीरता और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। इसे ट्रेडमार्क करने का हमारा कोई इरादा नहीं है। कंपनी ने स्पष्ट किया कि आवेदन गलतफहमी का नतीजा था और उनका मकसद सैन्य बलिदान का सम्मान करना था, न कि उसका व्यावसायीकरण।

क्या कहता है कानून?

भारतीय ट्रेडमार्क कानून पहले आवेदक को स्वतः अधिकार नहीं देता। रजिस्ट्रार ऐसी ट्रेडमार्क को खारिज कर सकता है जो भ्रामक हों, सरकारी संबद्धता का गलत संकेत दें या सार्वजनिक नीति के खिलाफ हों। ऑपरेशन सिंदूर जैसे नाम राष्ट्रीय महत्व के हैं। इन्हें विशेष रूप से जांचा जा सकता है। वहीं सैन्य अभियान के नाम को व्यावसायिक उपयोग के लिए ट्रेडमार्क करने की कोशिश असंवेदनशील और अवसरवादी मानी जा रही है। ऐसे में संभव है कि ज्यादातर लो अपने आवेदन वापस ले लें।

अब देखना होगा कि सुप्रीम कोई जनहित याचिका में क्या फैसला देता है। इससे पहले ऑपरेशन सिंदूर का ट्रेडमार्क विवाद ने कई सवाल छोड़ दिए हैं। यह सिर्फ एक नाम का मसला नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गौरव, सांस्कृतिक संवेदनाओं और कॉर्पोरेट नैतिकता पर सवाल है। ऐसे में  गर्व के इन प्रतीकों को संभालने में सावधानी बरतनी होगी। जरूरत है कि देश की रक्षा से जुड़े प्रतीकों और नामों को केवल श्रद्धा और सेवा के भाव से ही देखा जाए न कि ब्रांड वैल्यू बनाई जाए।

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