जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए पाकिस्तान प्रायोजित आतंकियों के हमले के बाद भारत ने आतंकवाद पर कड़ी चोट करते हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की शुरुआत की थी। इसके तहत भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में 9 आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया और उन्हें ध्वस्त कर दिया। इससे बौखलाए पाकिस्तान ने भारत पर ड्रोन्स और मिसाइलों से हमले करने शुरू कर दिए लेकिन उसकी एक ना चली और भारत के ‘अभेद्य’ एयर डिफेंस सिस्टम ने इन्हें नष्ट कर दिया। पाकिस्तान ने जिन हथियारों से भारत पर उनमें तुर्की के ड्रोन्स और चीन की मिसाइलें शामिल थीं। पाकिस्तान की जिस मिसाइल की इस समय सबसे ज़्यादा चर्चा हो रही है वो है चीन में निर्मित- PL-15E।
पाकिस्तान द्वारा भारत पर दागी गई इस एयर-टू-एयर मिसाइल का मलबा पंजाब के होशियारपुर में मिला था। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि संभव है कि इसे पाकिस्तान द्वारा JF-17 जेट से मारा गया हो। लेकिन चीन अपनी जिस PL-15E मिसाइल की दुनिया भर में तारीफ करता था वो फुस्स हो गई। अब फाइव आइज़ देशों के अलावा फ्रांस और जापान ने भी इस मिसाइल के मलबे में दिलचस्पी दिखाई है। सवाल ये उठता है कि जिस मिसाइल को चीन ने दुनिया की सबसे आधुनिक एयर-टू-एयर मिसाइल बताया था, वह भारत में आखिर कैसे नाकाम साबित हुई? और उससे भी अहम सवाल यह है कि अब जापान और फ्रांस जैसे देश उसके मलबे में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहे हैं?

चीन की PL-15 मिसाइल की क्या हैं खासियत?
इस मिसाइल को पहले PL-15 के नाम से ही जाना जाता था और इसका एक्सपोर्ट वैरिएंट का नाम PL-15E कर दिया गया है। एक्सपोर्ट की जाने वाले मिसाइल की क्षमताओं को PL-15 से कुछ कम कर दिया गया है। Bulgarian Military की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल दक्षिणी चीन के गुआंगडोंग प्रांत में आयोजित झुहाई एयरशो के दौरान चीन ने अपनी PL-15 एयर-टू-एयर मिसाइल के एक्सपोर्ट वर्जन को पेश किया था। रिपोर्ट में दावा किया गया कि जहां असली PL-15 मिसाइल की मारक क्षमता करीब 300 किलोमीटर तक है, वहीं PL-15E को खासतौर पर कम दूरी के लक्ष्यों को भेदने के लिए तैयार किया गया है और PL-15E की अधिकतम रेंज लगभग 145 किलोमीटर तक हो सकती है।
PL-15 चीन की सबसे आधुनिक और ताक़तवर BVR (Beyond Visual Range) मिसाइल है। इसे चीन की सरकारी रक्षा कंपनी AVIC की एक शाखा China Airborne Missile Academy (CAMA) ने विकसित किया है।
लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइल: PL-15 की मारक क्षमता 200 से 300 किलोमीटर तक बताई जाती है, यानी यह दुश्मन के लड़ाकू विमान को बहुत दूर से निशाना बना सकती है।
स्पीड: यह मिसाइल Mach 5 (यानी आवाज की गति से 5 गुना तेज) की रफ्तार तक पहुंच सकती है।
इंजन: इसमें dual-pulse solid-propellant रॉकेट मोटर है, जो उसे ज्यादा दूर और तेज जाने में मदद करता है।
AESA रडार: यह मिसाइल Active Electronically Scanned Array (AESA) रडार का इस्तेमाल करती है, जिससे यह अपने टारगेट को बेहद सटीकता से पकड़ती है। साथ ही इसमें two-way datalink भी है, जिससे इसे उड़ान के दौरान रास्ते में निर्देश दिए जा सकते हैं।
पहले ही टेस्ट में फेल हुई PL-15E
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट (SCMP) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत और पाकिस्तान के बीच हुई एक झड़प के दौरान PL-15E मिसाइल को पहली बार किसी लड़ाई में इस्तेमाल किया गया था। हालांकि, भारत के खिलाफ लड़ाई में चीन का यह मिसाइल फिसड्डी ही साबित हुई है। भारत को मिले इस मिसाइल के अवशेषों से पता चलता है कि यह अपने लक्ष्यों को पूरा करने में पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। SCMP के मुताबिक, PLA की इस मिसाइल PL-15 (जिसे 2010 के दशक के मध्य से चीन में ही इस्तेमाल किया जा रहा है) की तैनाती सिर्फ एशिया-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि ताइवान को लेकर भविष्य में अगर कोई सैन्य टकराव होता है, तो उसमें भी बड़ी भूमिका निभा सकती है।

क्यों देश मांग रहे हैं मिसाइल का मलबा?
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान ने भारत के एक फॉरवर्ड एयरबेस को निशाना बनाते हुए PL-15E से हमला किया था लेकिन भारतीय रडार सिस्टम और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर यूनिट ने इसे ग्रामीण इलाके में ही गिरा दिया। जांच टीम को इस मिसाइल का एक बड़ा हिस्सा सलामत मिला था और इसी की मांग अब दुनिया भर के देश कर रहे हैं। इसकी मांग कर रहे देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, कनाडा, जापान और फ्रांस जैसे देश शामिल हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि चीन में बनी इस मिसाइल का मलबा मिलना भारत के लिए एक बहुत बड़ा फायदा है क्योंकि इससे इस मिसाइल की ताकत और कमज़ोरियों के बारे में अहम जानकारी मिल सकती है। इस जानकारी का इस्तेमाल नई रणनीति, तकनीक और हथियारों के बचाव (countermeasures) के विकास में किया जा सकता है।
PL-15 एक बहुत ही गुप्त तकनीक वाली मिसाइल मानी जाती है। अब जब फ्रांस और जापान जैसे देश, जिन्होंने खुद की एडवांस एयर-टू-एयर मिसाइलों में भारी निवेश किया है, इस मिसाइल का मलबा देखेंगे, तो उन्हें भी इसके रडार सिस्टम, इंजन, गाइडेंस टेक्नोलॉजी और AESA रडार की बनावट जैसी चीज़ों को समझने में मदद मिलेगी।