सालों से सैलरीमैन का देश कहे जाने वाले जपान में अब लोग नौकरी से भाग रहे हैं। साल 2022 में अमेरिका से शुरू हुआ क्वायट क्विटिंग का ने जापान के युवा वर्ग में पैठ बना ली है। यहां लोग समय पर दफ्तर आते हैं, समय पर निकलते हैं। इनकी कोई कोशिश नहीं होती की वो ज्यादा काम करें जिससे उन्हें प्रमोशन मिल पाए। इसमें सबसे ज्यादा जापान का जेन-जी वर्ग शामिल है। अब सवाल उठता है कि जिस उम्र में लोग करियर को बूम देने के लिए दिन रात एक कर देते हैं ऐसे समय में जापान का युवा काम की बस मिनिमम जरूर पर ही क्यों काम कर रहा है?
‘क्वाइट क्विटिंग’ शब्द मूल रूप से 2022 में संयुक्त राज्य अमेरिका से आया है। इसे उन लोगों के लिए गढ़ा जो काम से नाखुश थे। वो केवल न्यूनतम काम करते थे। हालांकि, जापान में इसका अर्थ थोड़ा अलग हो गया है।
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केवल काम से काम
जापान में नौकरीपेशा लोगों की बड़ी संख्या अब ऑफिस समय से पहुंचकर काम करने आप शिफ्ट पूरी कर ठीक समय से निकलने लगी है। उन्हें सीनियर से प्रशंसा या पदोन्नति की तलाश नहीं हैं। अधिक से उन्हें बेहतर वेतन भी मिल रहा है तो भी उनको कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। कंपनियों ने इस प्रवृति को रोकने के लिए बोनस आदि का विकल्प दिया लेकिन इसका भी कोई असर नहीं हुआ। टोक्यो की एजेंसी ने 20 से 59 वर्ष की आयु के 3,000 लोगों पर अध्ययन किया है। इसमें सामने आया कि 45% लोग ‘क्वाइट क्विटर्स’ अपनाते हुए नौकरियों को केवल नौकरी की तरह कर रहे हैं।
परिवार और दोस्त जरूरी
26 साल के इसेई ने कहा कि वह उन चीजों में अधिक समय देना चाहता है जो उसे मजा देता है। उसने कहा कि मुझे अपनी नौकरी से नफरत नहीं है। मुझे पता है कि अपने खर्चों के लिए मुझे नौकरी करनी होगी। लेकिन, मैं अपना समय बचाकर अपने दोस्तों से मिलना, घूमना, परिवार के साथ रहना पसंद करता हूं। इस कारण अपना सारा समय मैं कंपनी को नहीं देना चाहता।
कंपनियों का बदला रुख भी कारण
यामानाशी गाकुइन विश्वविद्यालय के सुमी कावाकामी ने बताया कि बहुत से युवा अपने माता-पिता को एक कंपनी के लिए अपना जीवन देते देखा है। कई-कई घंटे ओवरटाइम करने के लिए लोग अपने निजी जीवन को छोड़ देते थे। आज का युवा ऐसा नहीं चाहता है। पहले कंपनियां उचित मजदूरी और लाभ देता था। इस कारण लोग सेवानिवृत्ति तक एक ही कंपनी में रहते थे। अब वो दौर बीत गया है। कंपनियां लागत में कटौती करने की कोशिश कर रही हैं। कर्मचारियों को उचित लाभ नहीं मिल रहा है।
चूओ विश्वविद्यालय की प्रोफेसर इज़ुमी त्सुजी ने कहा कि युवाओं की इन हालातों में उनके अनुभवों पहुंचाया है। उन्होंने देखा है कि 50 के दशक में कर्मचारी अपने नियोक्ता के प्रति वफादार थे। इसके बदले में कंपनियां उन्हें और उनके परिवारों को सेवानिवृत्ति तक सहारा देती थी। अब कंपनियों ने अपनी जिम्मेदारियों को कम कर लिया है। इस कारण काम करने वालों ने भी अपने शौक पर ध्यान केंद्रित कर वर्क लाइफ बैलेंस पर काम कर रहे हैं। लोगों के पास समय है तो भी वो कंपनी को स्थान देने की जगह दोस्तों और परिवार को अपना समय दे रहे हैं।
रिसर्च में सामने आई बात
अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला कि अधिकांश लोगों के लिए का मानना है कि जितना काम कर रहे हैं उन्हें उतना वेतन नहीं मिल रहा है। कुछ अन्य लोगों ने कहा कि वे केवल काम चलाऊ न्यूनतम काम कर रहे हैं। क्योंकि कंपनी में उनके योगदान की सराहना नहीं की और न ही उन्हें इसका कोई लाभ मिला। वहीं कई लोगों को अपने करियर को आगे बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। क्योंकि, काम के बोझ में उनका निजी जीवन प्रभावित हो रहा है।
- 1998 में जापान में 32,863 आत्महत्याएं हुईं। इसमें से कई लोगों ने काम के दबाव के कारण मौत को गले लगाया।
- अगले 14 साल में आत्महत्याओं की कुल संख्या 30,000 की से ऊपर पहुंच गई।
- 2024 में लगभग 20,320 लोगों ने अपनी जान ली। ये 1978 के बाद सबसे बड़ा आंकड़ा था।
जापान का बड़ा वर्ग ‘क्वाइट क्विटिंग‘ लाखों जापानी कर्मचारियों के लिए बेहतर बदलाव मान रहा है। युवा अब यह इस बात पर जोर नहीं देते हैं कि उनके पास कैसी नौकरी है। उन्होंने अपना ध्यान पसंद की नौकरी करने पर लगाया है। या फिर वो ऑफिस को उतना ही समय दे रहे हैं जितने का उनको मूल्य मिल रहा है। जिन लोगों के पास जीविका चलाने का कोई और साधन है वो नौकरी के पीछे नहीं भाग रहा है। कुल मिलाकर अब जापान के जेन जी क्वाइट क्विटिंग के जरिए अपने जीवन को बेहतर बना रहे हैं।