अमेरिका ने ईरान में परमाणु ठिकानों को निशाना बनाते हुए हवाई हमले किए हैं। ये हमले ‘ऑपरेशन मिडनाइट हैमर’ के तहत किया गया था, जिसमें अमेरिका के 120 से अधिक विमान शामिल थे, जिनमें सात B-2 स्टील्थ बॉम्बर भी थे। ये हमले ईरान के फोर्दो, नातांज़ और इस्फ़हान जैसे अहम परमाणु ठिकानों पर किए गए। क्षेत्रीय खुफिया एजेंसियों और कूटनीतिक सूत्रों के अनुसार, अमेरिका ने हाल ही में ईरान के परमाणु ठिकानों पर किए गए हवाई हमले के दौरान पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल किया। यह दावा सामने आते ही इस्लामी दुनिया में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है और पाकिस्तान की ‘उम्मा’ (मुस्लिम समुदाय) के प्रति निष्ठा पर सवाल उठने लगे हैं।
पाकिस्तान की भूमिका पर सवाल
हालांकि पाकिस्तान सरकार ने अभी तक इस दावे की पुष्टि या खंडन नहीं किया है, लेकिन मिलिट्री फ्लाइट ट्रैकिंग और सुरक्षा सूत्रों के अनुसार अमेरिकी बमवर्षक विमानों ने पाकिस्तान के नियंत्रण वाले हवाई गलियारे से होकर उड़ान भरी थी।
पाकिस्तान पर मुस्लिम देशों से बार-बार ग़द्दारी के आरोप
पाकिस्तान की विदेश नीति को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे हैं कि वह पश्चिमी देशों का समर्थन करता है जबकि मुस्लिम देशों की समस्याओं पर चुप्पी साधे रहता है। चाहे वह फिलिस्तीन हो, यमन हो या अब ईरान, पाकिस्तान की चुप्पी और रणनीतिक सहयोग को कई लोग ‘उम्मा’ के साथ धोखा मानते हैं।
पाकिस्तान की भू-राजनीतिक नीति: इस्लाम बनाम रणनीति
विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान एक तरफ मुस्लिम देशों के साथ एकता की बात करता है, वहीं दूसरी ओर वह अमेरिका और पश्चिमी देशों से सैन्य और आर्थिक साझेदारी भी बनाए रखता है। अतीत में भी पाकिस्तान ने अफगानिस्तान युद्ध के दौरान अमेरिकी ड्रोन हमलों की अनुमति दी, नाटो लॉजिस्टिक्स का समर्थन किया और यमन व बहरीन में सऊदी अरब की सैन्य कार्रवाइयों पर चुप रहा।
तेहरान की प्रतिक्रिया: संबंधों पर असर पड़ सकता है
हालांकि ईरानी अधिकारियों ने पाकिस्तान का नाम सार्वजनिक रूप से नहीं लिया है, लेकिन ईरान के सरकारी मीडिया और सैन्य विशेषज्ञ इस हमले में बाहरी सहयोगियों की भूमिका पर इशारा कर रहे हैं। ईरान और पाकिस्तान के संबंध पहले से ही संवेदनशील रहे हैं खासकर सीमा सुरक्षा और सांप्रदायिक गुटों के कारण।
पाकिस्तान में गुस्सा: धार्मिक संगठनों और जनता की नाराजगी
इस खबर ने पाकिस्तान के भीतर भी तीखी प्रतिक्रियाएं पैदा की हैं। जमात-ए-इस्लामी और तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) जैसे धार्मिक संगठनों ने इस मुद्दे पर सरकार की आलोचना की है और इसे मुस्लिम एकता के खिलाफ कदम बताया है।
‘उम्मा’ की धारणा और आज की वैश्विक चुनौतियां
‘उम्मा’ का मतलब है दुनिया भर के मुसलमानों का साझा समुदाय, जिसे इस्लाम एकता, सहयोग और समानता के सूत्र में जोड़ता है। कुरान में यह शब्द कम से कम 64 बार आया है, और यह एक ऐसी धार्मिक और नैतिक पहचान को दर्शाता है जो जाति, नस्ल और राष्ट्र की सीमाओं से ऊपर है।
निष्कर्ष
इस्लामिक एकता की भावना आज भी मुसलमानों की चेतना में जीवित है। मगर व्यवहार में यह एकता राजनीतिक, भौगोलिक और रणनीतिक हितों के आगे कमजोर साबित होती है। अगर पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र के इस्तेमाल की पुष्टि होती है, तो यह ना सिर्फ ईरान के साथ उसके संबंधों को प्रभावित करेगा, बल्कि इस्लामी दुनिया में उसकी छवि पर भी सवाल खड़े करेगा।