फतेहाबाद हुआ सिंदूरपुरम तो बादशाही बाग हुआ ब्रह्मापुरम: भारतीय विरासत की ओर लौटता आगरा

फतेहाबाद बनेगा सिंदूरपुरम, बादशाही बाग का नया नाम होगा ब्रह्मपुरम : आगरा में सांस्कृतिक पहचान की ओर बड़ा कदम

ताज महल

मुग़लकालीन नामों से विराम, सांस्कृतिक पुनर्जागरण की ओर आगरा का नया अध्याय

आगरा ज़िला पंचायत ने हाल ही में एक सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए फतेहाबाद नगर और उसकी एक प्रमुख बस्ती बादशाही बाग के नाम बदलने का प्रस्ताव पारित किया है। यह प्रस्ताव ज़िला पंचायत की अध्यक्ष मंजू भदोरिया द्वारा प्रस्तुत किया गया था और सोमवार को हुई बोर्ड बैठक में सर्वसम्मति से पारित हुआ। प्रस्ताव के अनुसार, फतेहाबाद का नया नाम ‘सिंदूरपुरम’ और बादशाही बाग का नया नाम ‘ब्रह्मपुरम’ रखा जाएगा। इस निर्णय के पीछे ज़िला पंचायत का तर्क है कि मौजूदा नाम विदेशी शासन और ऐतिहासिक आक्रमणों की “प्रतीकात्मक गुलामी” से जुड़े हुए हैं। अध्यक्ष भदोरिया ने कहा कि ऐसे नाम अतीत के दमन और उपनिवेशवाद की याद दिलाते हैं, और इन्हें बदलना सांस्कृतिक सम्मान, आत्म-सम्मान और स्थानीय पहचान की पुनर्प्राप्ति के लिए आवश्यक है।

इतिहास के हवाले से, प्रस्ताव में बताया गया है कि फतेहाबाद नगर का मूल नाम ‘समुगढ़’ था। यह वही स्थान है जहां 1658 में औरंगज़ेब और दारा शिकोह के बीच निर्णायक युद्ध हुआ था। युद्ध में औरंगज़ेब की जीत के बाद, इस क्षेत्र का नाम ‘फतेहाबाद’ रखा गया, जिसमें ‘फतेह’ शब्द फारसी भाषा से लिया गया है और इसका अर्थ होता है ‘विजय’। प्रस्ताव के अनुसार, यह नाम उस विजय की याद दिलाता है जो एक विदेशी शासक द्वारा एक निर्णायक युद्ध में हासिल की गई थी, इसलिए इसे मिटाकर एक ऐसा नाम दिया जाना चाहिए जो स्थानीय संस्कृति, आस्था और परंपराओं का प्रतिनिधित्व करता हो। ‘सिंदूरपुरम’ नाम भारतीय संस्कृति में विवाहित महिलाओं द्वारा लगाए जाने वाले ‘सिंदूर’ से प्रेरित है, जो नारी शक्ति, सामाजिक मूल्यों और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।

इसी तरह, बादशाही बाग, जिसका नाम सीधे तौर पर मुग़ल साम्राज्य की शाही विरासत से जुड़ा है, को ब्रह्मपुरम नाम दिए जाने का प्रस्ताव रखा गया है। इस नाम में दो गहरे सांस्कृतिक और राष्ट्रीय प्रतीक समाहित हैं- पहला है ‘ब्रह्मा’, जो हिन्दू धर्म के सृजनकर्ता देवता माने जाते हैं, और दूसरा है ‘ब्रह्मोस’, जो भारत की एक आधुनिक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। प्रस्ताव के अनुसार, ब्रह्मपुरम नाम न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक जुड़ाव को दर्शाता है, बल्कि यह भारत की वैज्ञानिक और सैन्य उपलब्धियों का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह नाम एक साथ परंपरा और आधुनिकता का मेल है- एक ऐसा संदेश जो सांस्कृतिक गर्व और राष्ट्रवादी भावना को मज़बूत करता है।

अब यह प्रस्ताव उत्तर प्रदेश राज्य सरकार को समीक्षा और अंतिम स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा। यदि राज्य सरकार इस पर मुहर लगा देती है, तो नामों में यह बदलाव आधिकारिक रूप से लागू हो जाएगा, और यह सभी सरकारी अभिलेखों, संकेत पट्टों, नक्शों और प्रशासनिक दस्तावेजों में परिलक्षित किया जाएगा। यह पहल उस व्यापक रुझान का हिस्सा है, जो हाल के वर्षों में भारत के विभिन्न हिस्सों में देखा गया है, जहां कई स्थानों के नाम बदले गए हैं ताकि वे अधिक स्थानीय, सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को प्रतिबिंबित कर सकें। हालांकि यह कदम स्थानीय प्रशासन और कुछ समुदायों से समर्थन पा रहा है, लेकिन यह इतिहासकारों, शिक्षाविदों और नागरिक समाज के बीच एक नई बहस को जन्म दे सकता है, कि क्या नामों का यह बदलाव इतिहास के साथ एक सार्थक संवाद है या फिर अतीत से जुड़े तथ्यों को मिटाने की कोशिश। ऐसे में यह निर्णय केवल प्रशासनिक परिवर्तन नहीं बल्कि सांस्कृतिक विमर्श का भी हिस्सा बन चुका है, जिसका प्रभाव आने वाले वर्षों तक सामाजिक और बौद्धिक क्षेत्र में महसूस किया जाएगा।

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