प्रगतिशील बनने का दावा और घूंघट में पत्नी? खान सर की सोच पर सवाल!

बीते 2 मई को खान सर ने पटना में ग्रैंड रिसेप्शन दिया है, जिसमें कई दिग्गज़ों ने शिरकत की है

खान सर और उनकी पत्नी (चित्र: सोशल मीडिया)

खान सर और उनकी पत्नी (चित्र: सोशल मीडिया)

नई पीढ़ी की एक कवयित्री, वंदना की एक रचना है

घूंघट को परिभाषित, करते हुए…लज़्ज़ा, संस्कार, सभ्यता…को जोड़ दिया गया…‘घुटन’ शब्द छोड़ दिया गया

इस रचना को आज आपको बताने की वजह हैं खान सर, वहीं खान सर जो लंबे समय से महिला सशक्तीकरण की बात कर आ रहे हैं। वो खान सर अब अपनी शादी के बाद सोशल मीडिया पर लोगों के निशाने पर आ गए हैं और इसकी वजह बना है ‘घूंघट’। खान सर के नाम से मशहूर शिक्षक फैज़ल खान का कुछ दिनों पहले एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था जिसमें वह कह रहे थे कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के हालिया सैन्य संघर्ष के दौरान शादी कर ली है। खान सर ने एक सादे समारोह में शादी की जिसमें परिवार के ही गिने-चुने लोग उपस्थित थे।

इसके बाद बीते 2 मई को खान सर ने पटना में ग्रैंड रिसेप्शन दिया। इसमें बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी से लेकर बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव समेत कई खास लोग शामिल हुए। खान सर के इस ग्रैंड रिसेप्शन में शिक्षा जगत से जुड़े कई दिग्गज लोगों ने भी शिरकत की। इस रिसेप्शन के फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहे हैं। इसमें खान सर शूट पहने नज़र आ रहे हैं जबकि उनकी पत्नी ए.एस. खान ने लाल रंग का भारी कढ़ाई वाले लहंगा पहना है और घूंघट किया हुआ है

अब इस घूंघट को लेकर ही सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। खान खर की कथित प्रगतिशील सोच को लेकर वह लोगों ने निशाने पर हैं। सोशल मीडिया पर लोगों ने पत्नी को घूंघट में रखने को लेकर खान खर को खूब खरी-खरी सुनाई है। अरविंद चोटिया नामक एक पत्रकार ने लिखा है, “सशक्त महिलाएं कभी घूंघट नहीं करतीं, मैं इस विचार पर पहले भी दृढ़ था, आज भी हूं। खान सर, जिनको लाखों लोग फॉलो करते हैं, वे अपनी शादी में कुछ अच्छा उदाहरण पेश कर सकते थे लेकिन नहीं।”

अरविंद चोटिया की तरह ही सोशल मीडिया का एक बड़ा तबका खान सर के विरोध में आ गया है। शौर्य मिश्रा नामक एक यूज़र ने लिखा, “खान सर का विवाह हुआ उनको ढेर सारी शुभकामनाएं लेकिन आज सवाल तो पूछेंगे?” उन्होंने कहा, “खान सर के द्वारा घूंघट प्रथा के खिलाफ मैंने कई भाषण सुने हैं लेकिन अपनी पत्नी को घूंघट प्रथा से मुक्त नहीं कर पाए क्या कारण?” अनिल यादव नामक एक यूज़र ने लिखा, “पटना वाले खान सर खुद को उदारवादी और प्रगतिशील विचारों का व्यक्ति बताते हैं लेकिन अपनी दुल्हन को एक फ़ीट का घूंघट में रखने को लेकर इस वक़्त आलोचना के घेरे में हैं। इसे ही कहते हैं…पर उपदेश, कुशल बहुतेरे।”

जैकी यादव नामक एक यूज़र ने कहा, “अरे खान सर, आप शिक्षक हैं, कोई क्रिमिनल नहीं! फिर काहे बात का इतना डर है? इतना काहे बात का डर कि अपनी पत्नी का चेहरा किसी को नहीं देखने दिया?…आप तो ख़ुद को ही नहीं बल्कि अपनी हर पहचान को छुपाकर रखना चाहते हो और उसके बाद समाज सुधारक बनने का झूठा और बनावटी ढोंग भी करते हो।” शशांक शेखर झा नामक एक यूज़र ने लिखा, “खान सर घूंघट में अपनी पत्नी के साथ, यह प्रगतिशील तरीका नहीं है।”

सोशल मीडिया पर सैकड़ों यूज़र्स ने घूंघट पहनाने को लेकर खान सर को घेरा है तो कई यूज़र्स ने इसे उनका निजी मामला बताया है। वरिष्ठ पत्रकार हर्ष वर्धन त्रिपाठी ने लिखा, “खान सर की दुल्हन के घूंघट से किसी को क्यों आपत्ति हो सकती है? यह विशुद्ध निजी मसला है और यह उन दोनों लोगों को तय करना है।” वहीं, एक अन्य यूज़र ने लिखा, “घूंघट भारतीय संस्कृति और परंपरा में जेवर की तरह देखा जाता है, यह औरत का गहना है लेकिन अब कुछ लोग ऐसे भी है जो महिलाओं को शॉर्ट्स में देखना चाहते है, क्योंकि अगर महिला बेपर्दा नही होगी तो उन्हें ज़ूम करके तस्वीर देखने का मौक़ा नही मिल मिलेगा!”

घूंघट को एक ओर जहां सामंती, पितृसत्तात्मक परंपरा का हिस्सा माना जाता है तो दूसरी ओर कई जगहों पर इसे संस्कार, शर्म और इज़्ज़त का प्रतीक बना दिया गया है। कई परिवारों और समुदायों में घूंघट आज भी सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा हुआ है, जिसे लोग गर्व से अपनाते हैं। लेकिन यह भी सच है कि घूंघट जैसी परंपराएं इतिहास के ऐसे दौर में पनपीं, जब विदेशियों ने आक्रमण किया, समाज में असुरक्षा थी और स्त्रियों को छिपाए रखने को ही सुरक्षा समझा गया था। धीरे-धीरे घूंघट एक सामाजिक मानक बन गया और स्त्रियों की स्वतंत्रता सीमित होने लगी।

भारत की पुरानी परंपराएं हमें गार्गी, मैत्रेयी और सीता जैसी महिलाओं की याद दिलाती हैं, जिन्होंने शिक्षा, तर्क और निर्णय के क्षेत्र में अपनी जगह बनाई थी। आज के दौर में, जब महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, तो यह जरूरी है कि उन्हें यह स्वतंत्रता हो कि वे अपनी जिंदगी कैसे जीना चाहती हैं। जब किसी महिला को ज़बरदस्ती घूंघट में रहने को कहा जाए तो वह बेड़ियों के जैसा बन जाता है। हमें यह समझने की ज़रूरत है कि सच्चा सम्मान महिलाओं की पसंद, आवाज़ और आत्मसम्मान को स्वीकार करने में है, ना कि महिलाओं की किसी पुरानी परंपराओं के तयशुदा ढांचे में ढालने में।

Exit mobile version