थरूर ने कांग्रेस से मतभेदों को स्वीकारा, गांधी परिवार से वैचारिक दूरी के दिए संकेत

कांग्रेस नेतृत्व से दूरी और 'ऑपरेशन सिंदूर' पर विवाद के बीच शशि थरूर बोले—'मतभेद पार्टी के भीतर ही रखूंगा'।

'ऑपरेशन सिंदूर' को लेकर बढ़ा विवाद; थरूर बोले-'मतभेद पार्टी के भीतर ही उठाऊंगा'

पार्टी नेतृत्व के फैसलों से दूरी, चुनाव प्रचार से अनुपस्थिति और 'ऑपरेशन सिंदूर' को लेकर बढ़ा विवाद; थरूर बोले-'मतभेद पार्टी के भीतर ही उठाऊंगा'

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने पार्टी नेतृत्व के कुछ वर्गों के साथ लंबे समय से चले आ रहे मतभेदों को खुले रूप में स्वीकार किया है। भले ही उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन उनके बयान गांधी परिवार से विचारधारात्मक असहमति की ओर इशारा करते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान और पार्टी में उनके बढ़ते कद के बावजूद, थरूर को कई अहम फैसलों से दूर रखा गया है। फिर भी, वह कांग्रेस के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताते हुए कहते हैं कि किसी भी असहमति को वह पार्टी के भीतर उठाएंगे, न कि सार्वजनिक रूप से।

पार्टी के भीतर मतभेदों को लेकर बयान

थरूर का यह बयान ऐसे समय आया है जब कांग्रेस के भीतर असंतोष बढ़ रहा है, खासकर उन नेताओं को लेकर जिनकी स्वतंत्र छवि और अलग जनाधार है।
उन्होंने कहा, “मैं पिछले 16 वर्षों से कांग्रेस में काम कर रहा हूं। कांग्रेस, उसके मूल्य और कार्यकर्ता मेरे लिए बहुत अहम हैं। मुझे कुछ मतभेद हैं, लेकिन मैं उन्हें पार्टी के भीतर उठाऊंगा।”

निलम्बूर उपचुनाव से दूरी पर स्पष्टीकरण

निलम्बूर सीट पर चल रहे उपचुनाव के बीच जब उनसे इस विषय पर विस्तार से बोलने को कहा गया तो उन्होंने इनकार कर दिया। थरूर ने कहा, “आज मैं इस पर बात नहीं करना चाहता। जब समय होगा तब में इस पर चर्चा करूंगा ।
जब उनसे निलम्बूर उपचुनाव प्रचार से अनुपस्थिति को लेकर पूछा गया तो उन्होंने बताया कि उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया, जैसा कि पिछले वायनाड उपचुनाव में भी हुआ था। “मैं वहां नहीं जाता जहां मुझे बुलाया नहीं जाता,” उन्होंने कहा, लेकिन यह भी जोड़ा कि वह चाहते हैं कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं का परिश्रम सफल हो और युडीएफ उम्मीदवार की जीत हो।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर पार्टी में विवाद

थरूर की सरकार के अंतरराष्ट्रीय अभियान ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में भागीदारी ने पार्टी में विवाद को और ज्यादा बढ़ा दिया । इस अभियान के तहत उन्होंने अमेरिका, पनामा, गुयाना, ब्राज़ील और कोलंबिया की यात्रा की और वहां भारत सरकार की कार्रवाई पर अपना  पक्ष रखा। वह इस यात्रा में संसद की विदेश मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष के तौर पर गए थे।

पार्टी के कुछ नेताओं को इस पर आपत्ति हुई, खासकर इसलिए क्योंकि थरूर उन चार नामों में शामिल नहीं थे जिन्हें कांग्रेस ने केंद्र को आधिकारिक रूप से प्रस्तावित किया था।

बीजेपी ने ठहराया ‘सुपर स्पोक्सपर्सन’, थरूर ने नहीं दी प्रतिक्रिया

बीजेपी के एक सदस्य ने थरूर को ‘कांग्रेस का सुपर प्रवक्ता’ कह कर तंज कसा, जिससे उनके राजनीतिक रुख को लेकर अटकलें और तेज हो गये । लेकिन थरूर ने इस पर कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी और स्पष्ट किया कि वह संसद में अपनी भूमिका निभा रहे हैं और कांग्रेस के प्रति वफादार हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में पहुंचा टकराव चरम पर

गांधी परिवार से थरूर के मतभेद 2022 के कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में स्पष्ट रूप से सामने आए जब उन्होंने गांधी परिवार समर्थित उम्मीदवार मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ चुनाव लड़ा। जहां थरूर की उम्मीदवारी को पार्टी नेतृत्व के एकाधिकार को चुनौती देने के रूप में देखा गया।
उन्होंने अपने अभियान में पार्टी में सुधार, आंतरिक लोकतंत्र और आधुनिकता की वकालत की, जो कि खड़गे के पारंपरिक रवैये से अलग था। हालांकि वह चुनाव हार गए, लेकिन उनका अभियान युवाओं को प्रेरित करने में सफल रहा और कांग्रेस में बदलाव की जरूरत को उजागर किया। इसने गांधी परिवार के साथ उनके संबंधों की खटास को सार्वजनिक कर दिया और उन्हें पार्टी के भीतर एक स्वतंत्र आवाज़ के रूप में स्थापित किया।

कांग्रेस में जारी खींचतान के बीच थरूर की भूमिका पर नज़र

जैसे-जैसे कांग्रेस में अंदरूनी मतभेद सामने आ रहे हैं और बयानबाज़ी तेज़ हो रही है, शशि थरूर की भूमिका पर सभी की नज़रें टिकी हैं। उनकी स्वतंत्र सोच, सार्वजनिक लोकप्रियता और कभी-कभी पार्टी लाइन से भिन्न रुख यह सवाल खड़ा करता है कि कांग्रेस वरिष्ठ नेताओं की अलग आवाज़ों को कैसे स्थान देती है।
थरूर का पार्टी नेतृत्व के साथ बदलता रिश्ता न केवल उनके राजनीतिक भविष्य को बल्कि कांग्रेस की आंतरिक राजनीति की दिशा को भी तय कर सकता है।

 

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