पर्यावरण दिवस विशेष: वर्तमान की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक जलवायु परिवर्तन की समस्या है। इस संदर्भ में तुहिन ए. सिन्हा और डॉ. कविराज सिंह द्वारा लिखित क्लाइमेट एक्शन इंडिया (Climate Action India) पुस्तक एक सामयिक विमर्श का प्रकटन है जिसके माध्यम से यह प्रदर्शित करने का प्रयास किया गया है कि भारत इस संकट का सामना कैसे कर रहा है? यह पुस्तक केवल तथ्यों का प्रकटन नहीं बल्कि एक गहरा विश्लेषण प्रस्तुत करती है जो पर्यावरणीय क्षरण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता और इसके सजगता को भी विश्लेषित करती है। अपने निष्कर्ष और क्षोद आधारित यह पुस्तक ऐसे मानदंडों को भी प्रकट करती है जिसके आधार पर भारत सहित सम्पूर्ण विश्व सतत विकास और आर्थिक प्रगति को एक साथ लेकर आगे बढ़ सकते हैं।
8 जुलाई 2024 को अपने संबोधन में भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने इस बात पर बल दिया कि बढ़ते तापमान और समुद्र स्तर हमारे समुद्र तटीय समुदायों और जैव विविधता के लिए गंभीर खतरा बनते जा रहे हैं। उनका यह संदेश पुस्तक के मूल विचार को रेखांकित करता है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए केवल सरकारों और अंतरराष्ट्रीय समझौतों की नहीं, बल्कि स्थानीय समुदायों और आम नागरिकों की सक्रिय भागीदारी की भी आवश्यकता है। यह समस्या केवल नीति निर्धारण या वैश्विक मंचों तक की बात नहीं, बल्कि यह हर व्यक्ति और समुदाय को साथ मिलकर इसके समाधान का प्रयास करना होगा। इस पुस्तक में भारत की जलवायु संरक्षण की यात्रा उस वैश्विक संघर्ष का अभिन्न हिस्सा है— जो बढ़ते तापमान, वनों की कटाई, वायु और जल प्रदूषण, और अस्थायी औद्योगिक नीतियों के परिणामस्वरूप हमारे समक्ष उपस्थित हुई है। लेखकों का तर्क है कि भले ही भारत एक विकासशील राष्ट्र के रूप में ऊर्जा की भारी मांगों और इससे संबन्धित प्राथमिकताओं का सामना कर रहा है, फिर भी उसने जलवायु एवं पर्यावरण के संरक्षण में नेतृत्व की भूमिका निभाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में किए गए ठोस संकल्पों और पहलों के माध्यम से यह प्रतिबद्धता स्पष्ट रूप से सामने आती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व मे भारत की जलवायु प्रतिबद्धता
Climate Action India पुस्तक के मूल में एक सशक्त और आशावादी संदेश है कि भारत विकास की चुनौतियों से जूझते हुए भी केवल वैश्विक जलवायु और पर्यावरण के संबंध में वैश्विक संवाद में भागीदार नहीं है, बल्कि वह उसे दिशा भी दे रहा है। लेखक ने भारत की ऐतिहासिक जलवायु प्रतिबद्धताओं को, खासकर COP26 सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रस्तुत पंचामृत रणनीति को विस्तार से रेखांकित किया है। यह महत्वाकांक्षी योजना 500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता प्राप्त करने और अनुमानित उत्सर्जन को एक अरब टन तक कम करने जैसे लक्ष्यों को प्रपट करने का एक प्रयास है जिससे भारत 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन की ओर अग्रसर होता दिखाई देता है। ये संकल्प केवल एक राजनीतिक घोषणा नहीं हैं, बल्कि प्रदर्शित करता है कि भारत अब जलवायु उत्तरदायित्व और सतत विकास की दिशा में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। भारत की जलवायु परिवर्तन से लड़ाई केवल उत्सर्जन कम करने की बात नहीं है बल्कि यह जीवन को बेहतर बनाने की भी एक यात्रा भी है। यह दिखाती है कि जलवायु एवं पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक विकास एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं और साथ मिलकर एक अधिक संपोष्य और समान भविष्य की नींव रखते हैं।
उदाहरण के लिए, 2014 में शुरू किया गया स्वच्छ भारत मिशन केवल साफ़ सड़कों और शौचालयों का अभियान नहीं था। यह एक परिवर्तनकारी पहल थी, जिसने करोड़ों लोगों के जीवन में परिवर्तन लाया। इस पुस्तक में यूनिसेफ और पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय द्वारा किए गए अध्ययन को प्रस्तुत किया गया है, जिनसे यह स्पष्ट होता है कि जिन गांवों को खुले में शौच से मुक्त (ODF) घोषित किया गया, वहां जल और मृदा प्रदूषण में उल्लेखनीय गिरावट आई। यह सिद्ध करता है कि बेहतर स्वच्छता व्यवस्था केवल मानव स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि पर्यावरण के लिए भी अत्यंत लाभकारी है।
इसी तरह प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) ने केवल 10 करोड़ से अधिक मुफ्त एलपीजी कनेक्शन वितरित करने का कार्य ही नहीं किया, बल्कि इसने ग्रामीण महिलाओं को वास्तविकता में राहत की सांस लेने का अवसर दिया। धुएं वाले चूल्हों की जगह स्वच्छ रसोई ईंधन के उपयोग से घरों के अंदर प्रदूषण कम हुआ, महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार आया और लकड़ी के ईंधन पर निर्भरता घटाकर वनों की कटाई को भी धीमा किया गया।
भारतीय रेलवे मे भी उल्लेखनीय परिवर्तन देखा गया है। 2014 से अब तक लगभग 40,000 किलोमीटर रेल पटरियों का विद्युतीकरण हो चुका है। जनवरी 2024 तक नेटवर्क का 94% हिस्सा बिजली से संचालित हो रहा था, जिससे भारत पूरी तरह से विद्युतचालित रेलवे प्रणाली की ओर तेजी से बढ़ रहा है। यह बदलाव केवल कार्बन उत्सर्जन घटाने का मामला नहीं है—यह एक स्वच्छ, तेज़ और अधिक कुशल भविष्य की दिशा में ठोस कदम है। इस पुस्तक की सबसे खास बात यह है कि यह सरकारी नीति को लोगों के सामान्य जीवन से जोड़ती है। इसमे केवल सरकारी पहलों जैसे राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन, स्वच्छ भारत अभियान, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना और रेलवे विद्युतीकरण का ब्यौरा ही नहीं दिया गया है, बल्कि यह भी प्रदर्शित किया गया है कि ये कार्यक्रम पर्यावरणीय लक्ष्यों और सामाजिक कल्याण दोनों के साथ कितनी गहराई से जुड़े हैं।
सामाजिक भूमिका
यह पुस्तक व्यक्तिगत और सामुदायिक प्रयासों पर विशेष ध्यान केंद्रित करती है। लेखक मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई केवल सरकारों या कंपनियों की जिम्मेदारी नहीं है— यह एक साझा मिशन है। घरों में सोलर पैनल लगाने से लेकर इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर बढ़ने और जंगलों की पुनःरोपण की दिशा में कदम उठाने तक, यह पुस्तक मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता को रेखांकित करती है। जलवायु योद्धाओं की वास्तविक कहानियों— जैसे उद्यमियों, छात्रों और समुदाय आधारित परिवर्तनों को सम्मिलित करके Climate Action India स्थिरता के अमूर्त विचार को व्यावहारिक एवं मानवीय धरातल पर प्रस्तुत करती है और यह दर्शाने का प्रयास करती है कि हर प्रयास महत्वपूर्ण है। जलवायु सम्बंधी समस्याओं को, जलवायु संबंधी संवाद को लोकतांत्रिक बना कर ही हल किया जा सकता है। वैज्ञानिक और नीति-आधारित विश्लेषण को आसान किए बिना, लेखकों ने एक ऐसा प्रयास किया है जो न केवल सूचनाप्रद है बल्कि आकर्षक भी दिखाई पड़ता है। डर की बजाय यह पुस्तक भविष्य की एक आशा पैदा करती है।
आर्थिक अवसर
यह सर्वविदित है कि जलवायु परिवर्तन से निपटना केवल एक पर्यावरणीय आवश्यकता नहीं है बल्कि यह एक आर्थिक अवसर भीं है। वित्तीय बोझ बनने के बजाय, जलवायु और पर्यावरण संबंधी प्रयास भारत में नवाचार, निवेश और समावेशी विकास के लिए नए रास्ते खोल रही है। यह पुस्तक दर्शाती है कि स्वच्छ ऊर्जा, टिकाऊ बुनियादी ढांचा और हरित प्रौद्योगिकियाँ केवल उत्सर्जन को कम करने के उपकरण नहीं हैं, बल्कि ये रोजगार सृजन और आर्थिक नवीकरण के इंजन हैं। सौर ऊर्जा, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और ऊर्जा दक्ष निर्माण जैसे क्षेत्र तेजी से विस्तार कर रहे हैं, जो शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में कुशल और अकुशल श्रमिकों को रोजगार प्रदान कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, सौर उद्योग का विकास न केवल भारत की जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम कर रहा है, बल्कि यह पैनल निर्माण से लेकर उन्हें दूरदराज के गांवों में स्थापित और बनाए रखने तक हजारों नौकरियाँ भी उत्पन्न कर रहा है। 2035 तक 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में योगदान करने की संभावना के साथ, भारत का नवीकरणीय ऊर्जा, हरित हाइड्रोजन और कार्बन ट्रेडिंग में निवेश नौकरियाँ सृजित करने, विदेशी निवेश आकर्षित करने और देश को स्थायी नवाचार के वैश्विक हब के रूप में स्थापित करने की दिशा में अग्रसर है। यह पुस्तक स्थिरता को केवल एक आवश्यकता के रूप में नहीं बल्कि एक रणनीतिक लाभ के रूप में भी परिभाषित करती है।
निष्कर्ष –
तुहिन ए. सिन्हा और डॉ. कवीराज सिंह जलवायु परिवर्तन के विषय को अत्यंत रोचक रूप में प्रस्तुत की है। इनकी लेखन शैली आकर्षक और प्रभावशाली है। एक जटिल और तकनीकी विषय को अत्यंत सुलभ रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक यह दिखाती है कि स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाते हुए, जिसमें नीति-निर्माण, व्यावहारिक उदाहरण और भविष्य के उदाहरण भी शामिल हैं, के आधार पर भारत जलवायु संकट से कैसे निपट रहा है? क्लाइमेट एक्शन इंडिया केवल एक पुस्तक नहीं है बल्कि संपोष्य भविष्य के लिए एक मार्गदर्शन है। यह सभी (नीतिगत निर्णयकर्ता, व्यापारिक नेता, शिक्षक, और सामान्य नागरिक) से आग्रह करती है कि जलवायु संबंधी प्रयास केवल एक आवश्यकता नहीं है, बल्कि एक अवसर भी है। लेखक पाठकों से आग्रह करते हैं कि वे जलवायु परिवर्तन के बारे में जानने से आगे बढ़कर इसके लिए सार्थक कदम उठाना शुरू करें। इस दिशा में नवीकरणीय ऊर्जा अपनान, हरित नीतियों का समर्थन करना, या छोटे, पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली परिवर्तनों को लागू करना इत्यादि सम्यक प्रयास हो सकते हैं जिससे संपोष्यता को प्रपट किया जा सकता है।
जैसे-जैसे दुनिया जलवायु परिवर्तन की बढ़ती चुनौती का सामना कर रही है, भारत के प्रयास एक आशा और मार्गदर्शक की तरह दिखाई पड़ रहे हैं। लेखक यह दर्शाते हैं कि भारत का नेट-जीरो तक पहुँचने का सफर केवल एक घरेलू लक्ष्य नहीं है बल्कि यह वैश्विक प्रयास में एक मूल्यवान योगदान है। भारत का यह लचीलापन, नवाचार और प्रतिबद्धता एक वैश्विक उदाहरण है जो अन्य देशों के लिए एक सीख है।