संविधान की प्रस्तावना में कैसे आए ‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द?

आपातकाल के दौरान 42वें संविधान संशोधन के ज़रिए संविधान की प्रस्तावना में ये दोनों शब्द जोड़े गए थे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले के बयानों के बाद ‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ ये दोनों शब्द चर्चा में हैं। देशभर में इस पर बहस छिड़ी है। वार-पलटवार भी जारी हैं। उन्होंने कहा कि ये दोनों शब्द संविधान की मूल प्रस्तावना के शब्द नहीं थे। अब लोग भी जानना चाहते हैं कि आखिर ये दोनों शब्द संविधान की मूल प्रस्तावना कहां से आ गए।

42वां संविधान संशोधन से जोड़े गए शब्द

दरअसल, आपातकाल (1975-1977) के दौरान 42वें संविधान संशोधन के ज़रिए संविधान की प्रस्तावना में ये दोनों शब्द जोड़े गए थे। यह संविधान संशोधन 3 जनवरी 1977 से लागू हुआ था।  इसके साथ ही एक शब्द और जोड़ा गया था- अखंडता। हालांकि, अखंडता को लेकर कोई बहस नहीं चल रही है। पहले प्रस्तावना में ‘राष्ट्र की एकता’ लिखा गया था जिसे बाद में बदलकर ‘राष्ट्र की एकता और अखंडता’ कर दिया गया था। हालांकि, समाजवादी और पंथनिरपेक्ष को लेकर पहले भी बहस चलती रही है।

क्या है 42वां संविधान संशोधन?

दरअसल, आपातकाल के दौरान संविधान का 42वां संशोधन किया गया। इस दौरान संविधान के 40 अनुच्छेद और 7वीं अनुसूची में संशोधन किया गया। संविधान में 14 नए अनुच्छेद और दो नए भाग जोड़े गए। प्रस्तावना में बदलाव के अलावा इस अनुच्छेद 352 में संशोधन करके राष्ट्रपति को न केवल पूरे देश में बल्कि, देश के किसी भी हिस्से में आपातकाल घोषित करने का अधिकार दे दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका

हाल ही में, डॉ. बलराम सिंह बनाम भारत संघ (2024) में सुप्रीम कोर्ट ने 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से प्रस्तावना में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्दों को शामिल करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि इन शब्दों को आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया था। उनका कहना था कि ये शब्द लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। याचिकाओं में यह भी कहा गया कि चूंकि संविधान सभा ने इसे अपनाने की तिथि (26 नवंबर, 1949) का उल्लेख प्रस्तावना में किया था। इसलिए बाद में इसमें कोई अतिरिक्त शब्द नहीं जोड़ा जा सकता।

समाजवाद और पंथनिरपेक्षता की परिभाषा

सुप्रीम कोर्ट ने दोनों शब्दों को परिभाषित भी किया है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार पंथनिरपेक्षता समानता के अधिकार के पहलुओं में से एक है। क्योंकि न तो राज्य अपना स्वयं का धर्म रखता है और न ही नागरिकों को धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता और अधिकार पर प्रतिबंध लगाता है। केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य और एसआर बोम्मई बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता संविधान की बुनियादी विशेषता है। वहीं कोर्ट ने कहा कि समाजवाद कल्याणकारी राज्य के प्रति राज्य की प्रतिबद्धता और अवसरों की समानता की प्रतिबद्धता को दर्शाता है ।

कहां से आया समाजवाद

दरअसल, समाजवाद का विचार बड़े पैमाने पर कार्ल मार्क्स के साथ लोकप्रिय हुआ। कार्ल मार्क्स ने वैज्ञानिक समाजवाद का विचार दिया था। उनका मानना था कि मजदूर वर्ग की हिंसक क्रांति शोषक पूंजीपति वर्ग को उखाड़ फेंक सकती है। इतना ही नहीं, क्यूबा, चीन और उत्तर कोरिया जैसे साम्यवादी देशों में समाजवाद सरकार द्वारा उद्योगों पर सख्त नियंत्रण और एक केंद्रीय रूप से नियोजित अर्थव्यवस्था का प्रावधान करता है। समाजवाद के कई प्रकार हैं जैसे लोकतांत्रिक समाजवाद, विकासवादी समाजवाद, फेबियन समाजवाद, गिल्ड समाजवाद आदि।

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