‘यूपी में साथ चुनाव लड़ेगा INDI ब्लॉक’: बिखरे गठबंधन पर अखिलेश यादव का दावा, कहीं भ्रम तो नहीं?

इंडिया ब्लॉक की पार्टियों में अंदरूनी झगड़े, खराब तालमेल और नेतृत्व की कमी साफ नज़र आती है

अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी

अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा है कि सभी विपक्षी दल 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में साथ मिलकर लड़ेंगे। ये बात सुनने में तो बहुत अच्छी लगती है और लगता है कि विपक्ष एकजुट हो रहा है, लेकिन हकीकत कुछ अलग है। दरअसल, इन पार्टियों के बीच अंदरूनी झगड़े, खराब तालमेल और नेतृत्व की कमी है। जो पहले भाजपा के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा लगता था, वह अब अलग-अलग दलों का समूह बन गया है, जो अक्सर अलग-अलग दिशाओं में भागता दिखाई पड़ता है।

इंडिया ब्लॉक के दल: कितने दूर-कितने पास!

अखिलेश यादव ने हाल ही में कहा कि इंडिया ब्लॉक यूपी चुनाव मिलकर लड़ेगा ताकि वोटों का बंटवारा ना हो। उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा और राजनीतिक रूप से सबसे अहम राज्य है, इसलिए यहां का चुनाव बहुत मायने रखता है। लेकिन विपक्षी गठबंधन का हालिया प्रदर्शन बहुत खास नहीं रहा है। इंडिया ब्लॉक की शुरुआत 2023 में हुई थी, जिसमें विपक्ष के कई दल शामिल थे लेकिन कई राज्यों में साथ काम करना उनके लिए आसान नहीं रहा, खासकर उत्तर प्रदेश में।

हालांकि, इंडिया ब्लॉक में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आप, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके और वामपंथी दल जैसे दो दर्जन से ज्यादा पार्टियां हैं, लेकिन ये अक्सर एक-दूसरे से अलग काम करती हैं। कई बार ये पार्टियां एक-दूसरे के विरोध में भी काम कर रही हैं। उदाहरण के तौर पर, 2024 के लोकसभा चुनाव में यूपी में कांग्रेस और सपा ने आखिरकार सीट बंटवारे पर सहमति जताई, लेकिन यह सहमति इतनी साफ नहीं थी। कांग्रेस ने खुलकर कहा कि उन्हें सपा से सहयोग कम मिला, और सपा वालों ने भी कहा कि कांग्रेस की यूपी में पकड़ कमजोर है, लेकिन वह खुद को बड़ा दिखा रही है।

ऐसा झगड़ा सिर्फ यूपी तक सीमित नहीं है। पंजाब और दिल्ली में आप और कांग्रेस गठबंधन नहीं कर पाए और एक-दूसरे के खिलाफ ही चुनाव लड़ना पड़ा। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस को गठबंधन में नेतृत्व स्वीकार नहीं किया और अपनी शर्तों पर चुनाव लड़ा। इस वजह से जनता के बीच इंडिया ब्लॉक की छवि खराब हुई है। ये गठबंधन खुद को भाजपा के लोकतांत्रिक विरोधी के रूप में पेश करता है, लेकिन लोग उन्हें एक ऐसे समूह के रूप में देखते हैं जो उम्मीदवारों पर भी सहमत नहीं हो पा रहा। उनकी कोई ठोस योजना नहीं दिखती।

अखिलेश यादव के दावे में कितना दम?

इंडिया ब्लॉक में कोई ऐसा केंद्रीय नेता या संस्था नहीं है जो फैसले ले सके। ममता बनर्जी भी अहम बैठकों से दूर रहती हैं, नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी का गठबंधन भाजपा के साथ कर लिया है। कांग्रेस भी क्षेत्रीय सहयोगियों को लेकर अंदर से उलझी हुई है। ऐसे हालात में अखिलेश यादव का यूपी में एकजुट होकर लड़ने का दावा ज्यादा राजनीतिक दिखावा लगता है, असली तैयारी नहीं

यूपी में एक साथ लड़ने की बात तो हो रही है लेकिन इंडिया ब्लॉक के अंदर की समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। पार्टियों के बीच अविश्वास, अहंकार और स्थानीय महत्वाकांक्षाएं गठबंधन को कमजोर कर रही हैं। जब तक ये सभी अपने मतभेद खत्म नहीं करते और सच्चे साथी बनकर काम नहीं करते, तब तक भाजपा को यूपी जैसे अहम राज्य में चुनौती देना उनके लिए सिर्फ एक सपना ही रहेगा, हकीकत नहीं।

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