युद्ध के साये में जागी देशभक्ति: इजरायल के हमलों से कैसे मजबूत हुए ईरानियों के इरादे?

इजरायल और ईरान के बीच इन दिनों जंग चल रही है। बेंजामिन नेतन्याहू का सीधा निशाना अयातुल्ला अली खामेनेई की सरकार पर है। इसबीच ईरानियों के मन में राष्ट्रीय एकता का ज्वार फूट पड़ा है।

Israel Iran War Benjamin Netanyahu And Ayatollah Ali Khamenei

Israel Iran War Benjamin Netanyahu And Ayatollah Ali Khamenei

जब इजरायली हवाई हमले ईरान के रणनीतिक ठिकानों पर हो रहे हैं और बेंजामिन नेतन्याहू सीधे ईरानी जनता से ‘शासन परिवर्तन’ की बात कर रहे हैं। ऐसे समय में ईरान के भीतर एक अप्रत्याशित तस्वीर उभर रही है। जिस जंग की चिंगारी से अक्सर देश की दीवारें दरक जाती हैं वही कभी-कभी देश के एक धागे में बांधने के भी काम आती है। कुछ ऐसा ही इन दिनों ईरान में देखने को मिल रहा है। विदेशी खतरा ईरानी समाज को तोड़ने या सरकार को कमजोर करने की बजाय साथ ला रहा है। भले ही वहां की जनता सरकार के तानाशाही और देश में भ्रष्टाचार से परेशान है लेकिन वो अपनी देशभक्ति और संप्रभुता से कोई समझौता करने के लिए तैयार नहीं है।

जंग हथियारों के साथ-साथ विचारों और भावनाओं से भी लड़ी जाती है। इसी कारण जब दो देश जंग में होते हैं तो एक-दूसरे के निजी मामलों को भी जमकर उछालते हैं। सरकारों के खिलाफ प्रोपेगेंडा किया जाता है। जनता को भड़काने की कोशिश की जाती है। हालांकि, इसका असर कई बार उल्टा हो जाता है। देश के नाम पर जनता तमाम खामियों के बाद भी सरकार के साथ खड़ी हो जाती है।

बेंजामिन नेतन्याहू का दावा

ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को हटाने के बारे में इजरायल के पीएम नेतन्याहू की टिप्पणियों ने ईरानी समाज के हर वर्ग को झकझोर दिया है। फॉक्स न्यूज के साथ एक साक्षात्कार में नेतन्याहू ने दावा किया कि ईरान में सत्ता परिवर्तन होगा। उन्होंने दावा किया कि इंटरव्यू में दावा किया कि ईरानी जनता का 80% हिस्सा मौजूदा शासन को हटाना चाहता है। ऐसे बयानों ने ईरानियों को 1953 के अमेरिकी-सीआईए समर्थित तख्तापलट और ईरान-इराक युद्ध जैसी विदेशी साजिशों की याद दिला दी है।

सड़कों पर दिखी एकजुटता

खामेनेई ने देश को संबोधित करते हुए कहा कि दुश्मन सिर्फ सरकार को गिराना नहीं चाहता। वह ईरान को मिटाना चाहता है। इसके बाद से ही तेहरान से लेकर शीराज तक कई शहरों में प्रदर्शन हो रहे हैं। बिना किसी सरकारी आदेश के आम लोग हाथों में राष्ट्रीय झंडा लिए देश की संप्रभुता के समर्थन में नारेबाजी कर रहे हैं। एक छात्र ने टेलीग्राम पोस्ट में लिखा कि हमें शासन से मतभेद हो सकता है लेकिन यह देश हमारा है। हमारी किस्मत कोई बाहरी तय नहीं करेगा। अब यह भावना पूरे देश में गूंज रही है जो विदेशी खतरे के बीच एकता का प्रतीक बन रही है।

इजरायल की रणनीति का उल्टा असर

इजरायल का इरादा ईरानी शासन को सैन्य और मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर करने का है। हालांकि, इसके उलट यह हमले ईरान में राजनीतिक एकता को मजबूत कर रहे हैं। ईरान की धरती पर हमले और शासन परिवर्तन की वकालत ने तेहरान एकजुट होने का मौका दिया है। इस बीच खामेनेई ने सोशल मीडिया पर चेतावनी दी कि हम इजरायल को कोई दया नहीं दिखाएंगे। उनके इस बयान के बाद लोगों में देशभक्ति का ज्वार फूट पड़ा है। चाहे जनता सरकार से सहमत हो या न हो लेकिन इस समय वो किसी दुश्मन को अपने देश की किस्मत लिखने की इजाजत देने को तैयार नहीं।

दबाव लेकिन झुका नहीं ईरान

गाजा युद्ध शुरू होने के बाद से ईरान को कई मोर्चों पर झटके लगे हैं। सीरिया में कमांडरों की हत्या, देश के अंदर परमाणु केंद्रों पर हमले और अब सीधे इजरायली मिसाइल हमले। इसमें कई वरिष्ठ सैन्य अफसर और वैज्ञानिक मारे गए। इन हमलों ने ईरान की अब तक की रणनीति को हिला जरूर दिया। हालांकि, देश कमजोर होने के स्थान पर नई राष्ट्रीय चेतना के साथ खड़ा हो गया है। अब यही ईरान की सबसे बड़ी ताकत बन रहा है।

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इस क्रांति के दौरान विभिन्न वर्गों और विचारधाराओं के लाखों लोग स्वतंत्रता और आत्म निर्माण के लिए एकजुट हुए थे। उस समय शाह के पश्चिमी गठजोड़ से उपजी निराशा और राष्ट्रीय सम्मान को पुनर्स्थापित करने की इच्छा ने आंदोलन को बल दिया था। आज वही भावना फिर से उभर रही है। लोग देश के पक्ष में एकजुट हो रहे हैं और सांस्कृतिक गौरव, राजनीतिक और सामाजिक तनावों के बावजूद, एकता का एक मजबूत आधार बना हुआ है।

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