केरल हाईकोर्ट के जस्टिस ने मांगा सोशल मीडिया पर नियंत्रण कानून

न्यायपालिका पर बढ़ते साइबर हमलों को रोकने के लिए ठोस कानून की जरूरत

केरल हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस पीबी सुरेश कुमार ने न्यायपालिका की गरिमा को नुकसान पहुंचाने वाली सोशल मीडिया टिप्पणियों को नियंत्रित करने के लिए नए कानून की मांग की है। शुक्रवार को अपने विदाई समारोह में जस्टिस कुमार ने कहा कि बिना नियंत्रण वाली ऑनलाइन आलोचना, जो अक्सर गलत जानकारी पर आधारित होती है, न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास कम कर सकती है। अगले सप्ताह पद से सेवानिवृत्त हो रहे जस्टिस कुमार, ने कहा कि दुनियाभर के न्यायाधीश इस बात से चिंतित हैं कि बिना छान-बीनी के सोशल मीडिया पर की जाने वाली टिप्पणियाँ न्यायिक संस्थानों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं। उन्होंने बताया कि कई पोस्ट कानूनी प्रक्रियाओं या तथ्यों की समझ के बिना की जाती हैं और भले ही इनका बुरा इरादा न हो, फिर भी ये न्यायपालिका की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा सकती हैं। उन्होंने कहा, “आज के डिजिटल युग में, जहां सामग्री तुरंत फैलती है और स्थायी रूप से ऑनलाइन रहती है, ऐसी आलोचना कानून के शासन में विश्वास को कमजोर कर सकती है।”

आलोचना और गरिमा के बीच संतुलन जरूरी

हालांकि, जस्टिस कुमार ने यह भी स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य वैध आलोचना को दबाना नहीं है। उन्होंने कहा, “यह सही आलोचना को रोकने के लिए नहीं, बल्कि बिना आधार और द्वेषपूर्ण हमलों को रोकने के लिए है जो न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं।” उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा के बीच संतुलन बनाए रखने वाला संवैधानिक कानून बनाने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) और 50 का हवाला देते हुए कहा कि ऐसा कानून यह सुनिश्चित करेगा कि सोशल मीडिया पर सार्वजनिक संवाद सूचित और सम्मानजनक बना रहे।

तकनीक ने न्याय व्यवस्था को किया अधिक प्रभावी

टेक्नोलॉजी के न्यायिक उपयोग के समर्थक के रूप में जाने जाने वाले जस्टिस कुमार ने डिजिटल टूल्स के लाभों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि वर्चुअल सुनवाई के दौरान स्क्रीन शेयरिंग के लिए गूगल मीट का उपयोग, ऑटो-ट्रांसक्रिप्शन और केस रिकॉर्ड्स का डिजिटलीकरण अदालत की कार्यप्रणाली को अधिक सुगम और प्रभावी बनाता है। उन्होंने कहा, “टेक्नोलॉजी ने हमें हमारे समय का बेहतर उपयोग करने में मदद की, खासकर रिजर्व्ड जजमेंट्स के मामलों में। डिजिटल ट्रायल कोर्ट रिकॉर्ड्स ने जटिल मामलों को संभालना आसान बना दिया है।”

फिर भी, जस्टिस कुमार ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर अधिक निर्भरता से सावधानी बरतने की बात कही। उनका कहना था कि न्याय प्रणाली में मानव निर्णय की भूमिका हमेशा केंद्र में रहनी चाहिए।   हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि तकनीक मानव स्पर्श को प्रतिस्थापित न करे, बल्कि उसे बढ़ावा दे ।

इमरान मोहम्मद के मामले ने छोड़ा गहरा प्रभाव

अपने विदाई भाषण में जस्टिस कुमार ने एक भावुक किस्सा भी साझा किया। उन्होंने बताया कि एक दुर्लभ बीमारी स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी से पीड़ित बच्चे इमरान मोहम्मद के मामले ने  उन्हें बहुत प्रभावित किया। 2021 में बच्चे के परिवार ने ₹16 करोड़ से अधिक की लागत वाली जीवनरक्षक दवा के लिए सरकार से मदद मांगी थी। हालांकि जनता ने दान करके फंड इकट्ठा किया, लेकिन इमरान इलाज शुरू होने से पहले ही चल बसा। इसके बाद जस्टिस कुमार ने आदेश दिया कि जमा किए गए फंड को एक समर्पित कोष के रूप में रखा जाए ताकि इसी बीमारी से पीड़ित अन्य बच्चों की मदद की जा सके। 2022 से अब तक इस पहल के तहत 12 वर्ष से कम उम्र के 50 से अधिक बच्चों को मुफ्त इलाज मिला है।

उन्होंने कहा, “हालांकि इमरान हमसे जल्दी चला गया, लेकिन उसका मामला कई अन्य बच्चों के लिए उम्मीद की किरण बन गया। यह याद दिलाता है कि न्याय केवल फैसलों तक सीमित नहीं है, बल्कि उन जीवनों के बारे में है जिनपर हम असर डालते हैं और जो विरासत हम छोड़ते हैं।”

सम्मान और भविष्य की उम्मीदें

मुख्य न्यायाधीश नितिन जमदार ने जस्टिस कुमार की ईमानदारी, कानूनी दृष्टिकोण और सेवा के प्रति समर्पण की प्रशंसा की। केरल के एडवोकेट जनरल के. गोपालकृष्ण कुरुप और हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष येषवंत शेनॉय ने भी उनकी सराहना की, खासकर न्यायपीठ पर पदोन्नति के बाद भी उनके कानूनी समुदाय के साथ गहरे संबंधों को लेकर।

अंत में, जस्टिस कुमार ने भविष्य के प्रति आशावाद व्यक्त करते हुए कहा, “मैं समाज की सेवा के लिए नए और सार्थक तरीकों को खोजने के लिए उत्सुक हूँ।”

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