लंदन में 30 मई 2025 को हुई एक बेहद चिंताजनक घटना ने न केवल ब्रिटिश-भारतीय समुदाय को आहत किया है, बल्कि वहां की तथाकथित “बहुसांस्कृतिक” व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। हेडस्टोन पार्क में तीन हिंदू युवक, जिनमें एक ब्रिटिश-भारतीय गुजराती और दो श्रीलंकाई मूल के थे, क्रिकेट खेल रहे थे। तभी कुछ मुस्लिम युवकों ने उन्हें घेर लिया और उनकी धार्मिक पहचान, विशेष रूप से कलावा (हिंदू धर्म में पहना जाने वाला पवित्र धागा) देखकर उन पर हमला कर दिया। हमलावरों ने इतनी बेरहमी से पीटा कि एक युवक की आंख की हड्डी तक टूट गई। तीनों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
इस हमले की गूंज ब्रिटेन की संसद तक पहुंची, जहां सांसद बॉब ब्लैकमैन ने 12 जून को हाउस ऑफ कॉमन्स में इस घटना को उठाते हुए इसे साफ़ तौर पर नस्लीय और धार्मिक घृणा से प्रेरित हमला बताया। उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के कहा कि यह हमला केवल एक झगड़ा नहीं था, बल्कि यह दर्शाता है कि लंदन जैसे शहर में भी अब धार्मिक असहिष्णुता अपने पैर पसार चुकी है।
हालांकि इस घटना को दो हफ्ते से ज्यादा समय बीत चुका है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि अब तक एक भी गिरफ्तारी नहीं हुई है। और उससे भी ज़्यादा चिंताजनक है लंदन के मेयर सादिक़ ख़ान की चुप्पी। एक ऐसे शहर में जहां हर अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा और आवाज़ की बात की जाती है, वहां हिंदू युवकों के साथ हुई इस क्रूर हिंसा पर सरकार और प्रशासन की उदासीनता कई सवाल छोड़ती है। क्या अब लंदन में अपनी धार्मिक पहचान के साथ जीना भी एक जोखिम बनता जा रहा है? क्या लंदन अब जिहादी हिंसा का एक नया गढ़ बनता जा रहा है?
जानें क्या है पूरा मामला
30 मई 2025 की एक शांत शाम लंदन के हेडस्टोन पार्क में कुछ युवा क्रिकेट खेलने के लिए इकट्ठा हुए थे। यह आम दिनों जैसा ही प्रतीत हो रहा था, लेकिन कुछ ही पलों में यह दिन तीन हिंदू युवकों के लिए भय और पीड़ा का कारण बन गया। पीड़ितों में एक ब्रिटिश-भारतीय गुजराती युवक और दो श्रीलंकाई मूल के युवा शामिल थे, जिन पर महज धार्मिक पहचान के आधार पर जानलेवा हमला किया गया।
घटना की शुरुआत उस वक्त हुई जब तीनों युवक पार्क की ओर बढ़ते हुए एक कैफे के पास से गुजरे। वहां करीब आठ लोग बैठे थे, जिनमें कुछ महिलाएं हिजाब पहने हुए थीं। युवकों का ध्यान अपने मित्रों की ओर था, जो मैदान में क्रिकेट खेल रहे थे, लेकिन मुस्लिम परिवार को लगा कि उन्हें घूरा जा रहा है। एक पुरुष गुस्से में युवकों के पास आया और सवाल किया कि वे उनके परिवार को क्यों देख रहे हैं। युवकों में से एक ने शांति से जवाब दिया कि वे अपने दोस्तों को देख रहे थे। उस वक्त मामला वहीं शांत हो गया।
करीब आधे घंटे बाद जब तीनों युवक पार्क की एक बेंच पर बैठे थे, तब वही पुरुष कुछ अन्य लोगों के साथ दोबारा वहां आया। इस बार उनके चेहरे पर गुस्सा और मंशा साफ झलक रही थी। उन्होंने सवाल किया कि ये लड़के कहां से हैं। जवाब में जब उन्होंने बताया कि वे भारतीय और श्रीलंकाई मूल के हैं, तो बिना किसी चेतावनी के उन पर हमला शुरू हो गया।
हमलावरों ने लात-घूंसे बरसाने शुरू कर दिए। हमले की तीव्रता इतनी अधिक थी कि दो युवक वहीं बेहोश हो गए। उनके सिर और चेहरे पर गंभीर चोटें आईं, एक युवक की आंख की हड्डी तक टूट गई। तीनों को तुरंत नॉर्थविक पार्क अस्पताल ले जाया गया, जहां शरीर पर कई जगह कट और खरोंच के निशान और चेहरे की हड्डियों में फ्रैक्चर पाया गया। पीड़ितों में से एक की बहन ने मीडिया से बातचीत के दौरान बताया कि उसके भाई ने हाथ पर मंदिर का कलावा बांधा हुआ था। उन्हें आशंका है कि वही धार्मिक चिन्ह उन्हें निशाना बनाए जाने का कारण बना। यह हिंसा केवल एक बहस या गलतफहमी नहीं थी, बल्कि एक स्पष्ट धार्मिक घृणा का प्रतिबिंब थी।
इस मामले को 12 जून को सांसद बॉब ब्लैकमैन ने ब्रिटिश संसद में उठाया। उन्होंने इस घटना को नस्लीय और धार्मिक घृणा से प्रेरित बताते हुए कड़ी निंदा की। घटना को दो सप्ताह से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन अब तक एक भी गिरफ्तारी नहीं हुई है। लंदन के मेयर सादिक़ ख़ान की ओर से भी इस विषय पर कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। एक ऐसे शहर में, जो खुद को विविधता और सहिष्णुता का गढ़ मानता है, वहां इस तरह की चुप्पी और कार्रवाई की कमी कई गंभीर सवाल खड़े करती है।
ब्रिटेन में यह पहली बार नहीं है जब हिंदू समुदाय को उनकी आस्था के आधार पर निशाना बनाया गया हो। अतीत में भी ऐसी घटनाएं सामने आती रही हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से उन्हें अक्सर नजरअंदाज किया गया है। जिस तरह से ‘ग्रूमिंग गैंग्स’ और ‘जिहाद-प्रेरित अपराधों’ को वर्षों तक नकारा गया, ठीक उसी तरह इस हिंसा को भी गंभीरता से न लिया जाना चिंताजनक है।
यह पहली घटना नहीं
यह कोई नई बात नहीं है कि ब्रिटेन में हिंदू समुदाय को उनकी धार्मिक पहचान के कारण निशाना बनाया गया हो। ऐसी घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं और हर बार एक गहरी चुप्पी उन्हें ढक लेती है। साल 2022 में लीसेस्टर में जो कुछ हुआ, वह आज भी कई परिवारों के ज़हन में ताजा है। भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच के बाद वहां सांप्रदायिक तनाव भड़का और देखते ही देखते हिंदू मोहल्लों में हिंसा फैल गई। पाकिस्तानी मूल के युवाओं ने सड़कों पर मार्च करते हुए मंदिरों के सामने प्रदर्शन किया, झंडे फाड़े गए और धार्मिक प्रतीकों को अपमानित किया गया। उस समय पुलिस ने 27 लोगों को हिरासत में जरूर लिया था, लेकिन उस भय और असुरक्षा की भावना को कम नहीं किया जा सका जो वहां के हिंदू समुदाय के बीच घर कर गई थी।
इन घटनाओं में तकलीफदेह बात यह थी कि केवल व्यक्ति नहीं, धर्म और आस्था खुद हिंसा के निशाने पर थी। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में देखा गया कि किस तरह हिंदू धार्मिक प्रतीकों को जानबूझकर अपमानित किया गया। यह हिंसा सिर्फ शारीरिक नहीं थी, यह मानसिक और सांस्कृतिक हमले की एक श्रृंखला थी, जिसने कई लोगों के मन में सवाल खड़ा कर दिया कि क्या ब्रिटेन अब भी उन मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है जिन पर उसने गर्व किया है।
ब्रिटिश-भारतीय नागरिक दृष्टि माई ने एक इंटरव्यू में बताया कि किस तरह हिंदू समुदाय को डराया जा रहा है और उनके विश्वास पर सीधा वार किया जा रहा है। उनकी बातों में वह दर्द था जो केवल पीड़ा से नहीं, उपेक्षा से उपजा है। इस सबके बीच भारतीय उच्चायोग ने भी लीसेस्टर की घटनाओं की कड़ी निंदा करते हुए दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी, लेकिन अब जब लंदन में एक बार फिर उसी तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं, तब सवाल और भी गंभीर हो गए हैं।