बाइबिल का वादा पूरा करने लिए युद्ध में उलझे हैं नेतन्याहू!, जानें क्या है ग्रेटर इज़रायल?

इज़रायल के सैन्य अभियानों पर कई सवाल भी उठते हैं कि क्या यह केवल 'राष्ट्रीय सुरक्षा' का मामला है या नेतन्याहू का प्लान बड़ा है?

ग्रेटर इज़रायल को दो नदियों के बीच का क्षेत्र माना गया है (चित्र: MEPEI)

ग्रेटर इज़रायल को दो नदियों के बीच का क्षेत्र माना गया है (चित्र: MEPEI)

7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इज़रायल पर हमला किया था जिसके जवाब में इज़रायल ने बड़ी कार्रवाई शुरू कर दी जो आज तक जारी है। इस हमले के बाद इज़रायल ने ना केवल गाज़ा पर बड़ा सैन्य अभियान चलाया बल्कि उसने लेबनान में हिज़्बुल्लाह को खुली चेतावनी दी, यमन में हूती विद्रोहियों के ठिकानों को निशाना बनाया और अब उसकी निगाहें ईरान पर हैं। इज़रायल के इन सैन्य अभियानों को लेकर कई सवाल भी उठते हैं कि क्या यह केवल ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ का मामला है या इसके बहाने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू एक बड़ी और दीर्घकालिक रणनीति को हवा दे रहे हैं- ग्रेटर इज़रायल बनाने की।

क्या है ग्रेटर इज़रायल का विचार?

ग्रेटर इज़रायल को लेकर इन दिनों कई मत चलते हैं, मौजूदा वक्त में ‘ग्रेटर इज़रायल’ के जिस विचार को लेकर सबसे अधिक चर्चा होती है उसमें मौजूदा इज़रायल के साथ-साथ फिलिस्तीन के हिस्सों को भी जोड़ा जाता है। जिसमें गाज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक का इलाका शामिल है। सितंबर 2023 में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने 1948 के इज़रायल का एक नक्शा और नए मिडिल ईस्ट की परिकल्पना प्रस्तुत की थी, इसमें फिलिस्तीन को इज़रायल का ही हिस्सा दिखाया गया था। सितंबर 2024 में नेतन्याहू ने UN में फिर 2 नक्शे दिखाए इसमें एक पर कुछ देशों को काले रंग से रंगकर उनपर श्राप लिखा था और कुछ हो हरे रंग से रंगकर उनपर वरदान लिखा गया था। इसमें भी मौजूदा फिलिस्तीन के हिस्सों को इज़रायल में दिखाया गया था।

असल में, ग्रेटर इज़रायल को लेकर इज़रायल की पुरानी अवधारणा इससे कहीं बड़ी है। मीडिल ईस्ट पॉलिटिकल ऐंड इकोनॉमिक इंस्टीट्यूट के वेबसाइट पर ग्रेटर इज़रायल का एक नक्शा दिया गया है। इसमें इज़रायल के साथ-साथ पूरा लेबनान, कुवैत और जॉर्डन शामिल हैं। साथ ही, ‘ग्रेटर इज़रायल’ में मिस्र, सऊदी अरब, सीरिया, इराक और तुर्की के कुछ हिस्सों को भी शामिल किया गया है।

सीमाओं के लिहाज से देखें तो ‘ग्रेटर इज़रायल‘ की अवधारणा मिस्र की नील नदी से इराक में फरात नदी तक फैली हुई है। फिलिस्तीन मुक्ति संगठन के प्रमुख यासिर अराफ़ात ने सितंबर 1998 में प्लेबॉय मैगज़ीन को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि इज़रायल के झंडे में दो नीली पट्टियां दो नदियों को दर्शाती हैं जो नील और फरात हैं। इस अवधारणा के पीछे का तर्क हज़ारों वर्ष पुराना है और इसकी जड़े बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट (Old Testament) तक जाती है। ओल्ड टेस्टामेंट बाइबल का सबसे पुराना हिस्सा है और इसके उत्पत्ति (Genesis) भाग में 15:18 में लिखा है, “उस दिन भगवान ने अब्राहम से एक वादा की और कहा, ‘मैं तुम्हारे वंशजों को यह ज़मीन देता हूं जो मिस्र की नदी (वादियों) से लेकर महान नदी यूफ्रेटीज़ तक’ है।”

यह भी दावा किया जाता है कि इज़रायल की संसद ‘नेसेट’ के प्रवेश द्वार पर नील नदी से फरात नदी तक इज़रायल के शासन से जुड़ा एक मैप उकेरा गया है। मीडिल ईस्ट फोरम के एक लेख में कहा गया है कि सीरिया के राष्ट्रपति हाफ़िज़ अल-असद और उसके रक्षा मंत्री मुस्तफ़ा तल्लास जैसे नेताओं के साथ-साथ ईरान के राष्ट्रपति ने भी दावा किया है कि ‘फरात नदी से नील नदी तक इज़रायल की भूमि है’ को नेसेट के प्रवेश द्वार पर उकेरा गया है। यहूदी राष्ट्रवाद यानि ज़ायोनिज़्म के संस्थापक, थियोडोर हर्जल ने भी यही दावा किया है। हर्जल के मुताबिक, ‘प्रॉमिस्ड लैंड’ या ग्रेटर इज़रायल के मानचित्र में मिस्र में नील नदी से लेकर इराक में फ़रात नदी तक का क्षेत्र शामिल किया गया है। साथ ही, इज़रायल के सैनिकों के कंधे पर लगे बैज की भी कई तस्वीरें सामने आई हैं जिनमें इन दो नदियों के बीच के इलाके को इज़रायली नक्शे में दिखाया गया है

इसके अलावा बीती 6 जनवरी को इज़रायल के X हैंडल पर ‘ग्रेटर इज़रायल’ का एक अलग नक्शा पोस्ट किया गया था। इसमें फिलिस्तीन के साथ-साथ सीरिया, लेबनान और जॉर्डन के हिस्सों को पुराने इज़रायल का पार्ट बताया गया था जिसे लेकर कई देशों ने इज़रायल की आलोचना की थी। दशकों के ब्रिटिश शासन के बाद 1948 में इज़रायल की स्थापना हुई थी और तभी से इज़रायल ज़मीन को लेकर लड़ाई में उलझा है।

इज़रायल द्वारा पोस्ट किया गया नक्शा

अब दावा किया जाता है कि इज़रायल अपने पड़ोस के देशों को इस वजह से ही न्यूक्लियर हथियार नहीं बनाने देना चाहती क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो उसके ‘ग्रेटर इज़रायल’ के प्लान को झटका लग सकता है। इज़रायल ने ईरान पर हमलों को वजह न्यूक्लियर हथियारों को बताया है और इससे पहले भी वो सीरिया में हमले कर चुका है, तब इज़रायल ने कहा था कि उसने संदिग्ध रासायनिक हथियार स्थलों और लंबी दूरी के रॉकेट स्थलों को निशाना बनाया है। इज़रायल का अपने पड़ोसी देशों पर किए जाने वाले हमलों के पीछे का तर्क है कि वो उन समूहों को रोकना चाहता है जो इज़रायल के क्षेत्रों पर कब्ज़ा करना चाहते हैं।

भू-रणनीतिज्ञ ज़ाकिर हुसैन का कहना है कि इज़राइल की एक स्पष्ट और निश्चित रणनीति है कि इस क्षेत्र (मध्य पूर्व) में कोई भी देश सामूहिक विनाश के हथियार (Weapons of Mass Destruction) खासकर, परमाणु हथियार हासिल न कर सके। हुसैन ने कहा, “इज़रायल ने एक-एक करके उन सभी देशों की परमाणु क्षमता को नष्ट कर दिया जो परमाणु क्षमता हासिल करने की कोशिश कर रहे थे, इसकी शुरुआत मिस्र से हुई। इज़राइल ने कई परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या भी की है।”

हुसैन ने कहा, “इज़रायल ने सीरिया पर हमला किया। उसने सद्दाम हुसैन पर भी हमला किया, क्योंकि वह परमाणु हथियार विकसित करने की कोशिश कर रहा था। सीरिया भी यही कर रहा था। और अब बारी ईरान की है। इज़राइल को लगता है कि अगर क्षेत्र में कोई भी शक्तिशाली देश मौजूद रहा, तो वह ‘ग्रेटर इज़रायल’ योजना को लागू नहीं कर पाएगा। इसी कारण वह एक-एक करके उन देशों को खत्म करता जा रहा है।” उनका कहना है, “इज़राइल 2,500 साल पुराने नक्शे को फिर से ज़मीन पर लाना चाहता है। यह वही ज़मीन है जिसे यहूदी मान्यता के अनुसार भगवान ने उन्हें वादा किया था। जिसे वे 2,500 साल पहले छोड़कर दुनिया भर में बिखर गए थे। अब वे फिर लौट आए हैं और उस ज़मीन को वापस लेने के मिशन पर हैं। इस योजना में आख़िरी बाधा ईरान है”

ओबामा प्रशासन ने 2016 में यह मांग की थी कि इज़रायल यहूदी बस्तियों के विस्तार पर रोक लगाए लेकिन प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे सिरे से खारिज कर दिया और नई बस्तियां बसाने का काम जारी रखा। मई 2025 में इज़रायल के कब्ज़े वाले वेस्ट बैंक में 22 नई यहूदी बस्तियों को मंज़ूरी दी गई, यह हाल के दशकों में सबसे बड़ा विस्तार है। अब कुछ विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक और मध्य-पूर्व युद्ध में सेना भेजने की धमकी दे रहे हैं, तो नेतन्याहू इसे ‘ग्रेटर इज़राइल’ के सपने को पूरा करने का मौका मान रहे हैं। दशकों से ग्रेटर इज़रायल की कल्पना मौजूदा है और अब प्रधानमंत्री नेतन्याहू की सैन्य कार्रवाइयां और कूटनीतिक चालें को विश्लेषकों इसी दिशा में उठे कदमों के रूप में देख रहे हैं।

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