भारत के साथ संघर्ष के दौरान पाकिस्तान को चीनी उपग्रह से मिली खुफिया जानकारी

पाकिस्तान की स्वीकारोक्ति से भारत की सुरक्षा नीति में बड़ा बदलाव

अंतरिक्ष रक्षा

एक चौंकाने वाली स्वीकारोक्ति में, पाकिस्तान ने हाल ही में भारत के साथ हुए सैन्य तनाव के दौरान चीन से रीयल-टाइम उपग्रह खुफिया जानकारी मिलने की बात स्वीकार की है। इस घटनाक्रम ने नई दिल्ली में चिंता बढ़ा दी है और भारत को अपने सैन्य अंतरिक्ष कार्यक्रम को तेज़ी से आगे बढ़ाने की दिशा में प्रेरित किया है, ताकि चीन की अंतरिक्ष आधारित निगरानी और टोही क्षमताओं के साथ बढ़ती खाई को पाटा जा सके।

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने इस साल की शुरुआत में सार्वजनिक रूप से कहा कि इस्लामाबाद को संघर्ष के दौरान चीनी सैन्य उपग्रहों से मदद मिली। उन्होंने इसे “सामान्य अभ्यास” बताते हुए चीन–पाकिस्तान रणनीतिक साझेदारी का हिस्सा बताया। उन्होंने Arab News को बताया,  “चीन के साथ खुफिया जानकारी साझा करना स्वाभाविक है, साथ ही यह भी कहा कि पाकिस्तानी सैन्य अभियानों में चीनी सैन्यकर्मी सीधे तौर पर शामिल नहीं थे। उन्होंने कहा “हमारे सशस्त्र बलों ने खुद कार्रवाई की। लेकिन अगर किसी ने हमारे साथ जानकारी साझा की, तो इसमें कुछ असामान्य नहीं है।

भारत-पाक संघर्ष में चीन की ISR भूमिका

भारतीय रक्षा विश्लेषकों और सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि चीनी उपग्रहों से मिली जानकारी ने पाकिस्तान की युद्धक्षेत्र की जागरूकता को काफी हद तक बेहतर बनाया। रिपोर्टों के अनुसार, चीन के लगभग 44 उपग्रह विशेष रूप से Yaogan श्रृंखला के, जो उच्च-रिज़ॉल्यूशन पृथ्वी अवलोकन और इलेक्ट्रॉनिक खुफिया (ELINT) में सक्षम हैं, को भारतीय सेना और वायुसेना की गतिविधियों की निगरानी के लिए फिर से नियुक्त किया गया।

भारत के रक्षा मंत्रालय से संबद्ध Centre for Joint Warfare Studies (CENJOWS) द्वारा की गई हालिया समीक्षा में उल्लेख किया गया कि चीनी समर्थन के कारण पाकिस्तान अपने रडार पुन: तैनात कर सका, वायु रक्षा प्रणालियों को स्थानांतरित कर सका और स्थिति की समझ बढ़ा सका, खासकर संघर्ष के निर्णायक चरणों से पहले।

सूत्रों के अनुसार, इस ISR सहयोग से पाकिस्तान को “किल चेन” (Kill Chain) क्षमताएं प्राप्त हुईं, जिससे भारतीय लड़ाकू विमानों और मिसाइल तैनातियों को लक्षित करने में मदद मिल सकी।

अंतरिक्ष अंतर: एक रणनीतिक कमजोरी

यह घटनाक्रम भारत और चीन के बीच अंतरिक्ष आधारित संसाधनों में भारी अंतर को लेकर नई चिंता लेकर आया है। जहां भारत के पास लगभग 218 उपग्रह हैं, वहीं चीन के पास 5,300 से अधिक उपग्रह कक्षा में सक्रिय हैं, जिनमें से बड़ी संख्या सैन्य निगरानी के लिए हैं।

एक वरिष्ठ भारतीय रक्षा अधिकारी ने कहा, “चीन के पास इस समय 30–40 समर्पित टोही उपग्रह हैं, और संभवतः कई दोहरे उपयोग (dual-use) की आड़ में छिपाए गए हैं। उनके पास सात भूस्थैतिक निगरानी उपग्रह हैं, जो उन्हें हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर लगभग लगातार नजर रखने की क्षमता देते हैं।”

इसके मुकाबले, भारत की निगरानी क्षमताएं सीमित संख्या में पृथ्वी अवलोकन, रडार इमेजिंग और इलेक्ट्रॉनिक खुफिया उपग्रहों पर निर्भर हैं। भारत की स्वदेशी GPS प्रणाली NavIC को जनवरी 2025 में झटका लगा, जब NVS-02 उपग्रह थ्रस्टर खराबी के कारण अपनी निर्धारित कक्षा में नहीं पहुंच सका।

भारत की प्रतिक्रिया: अंतरिक्ष क्षेत्र में तेज़ी से विस्तार

तेजी से बढ़ते खतरों को देखते हुए भारत ने अंतरिक्ष रक्षा रणनीति को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया है:

आगे की राह

हालांकि हालिया प्रगति से आत्मविश्वास बढ़ा है, भारत के वरिष्ठ सैन्य योजनाकार मानते हैं कि अंतरिक्ष सैन्यकरण में वह अभी भी चीन से वर्षों पीछे है। चीन की Beidou नेविगेशन प्रणाली PLA को सटीक लक्ष्य निर्धारण और अमेरिकी GPS नेटवर्क से स्वतंत्रता देती है—जिसे भारत अभी NavIC के ज़रिए हासिल करने की कोशिश कर रहा है।

भारत की अंतरिक्ष रक्षा योजना से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा:
“उनके पास हमारे मुकाबले 4–5 गुना ज्यादा अंतरिक्ष संपत्तियां हैं। लेकिन हम तेजी से फासला कम कर रहे हैं। हमने यह सबक मुश्किल तरीके से सीखा है।”
भारत को अंतरिक्ष रणनीति का पहला बड़ा झटका 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान लगा था, जब अमेरिका ने GPS डेटा देने से इनकार कर दिया था। तब से भारत ने स्वदेशी क्षमताएं विकसित करनी शुरू कीं, लेकिन 2025 के पाकिस्तान के साथ संघर्ष ने इस प्रक्रिया को और ज्यादा जरूरी बना दिया है।

रणनीतिक निष्कर्ष

पाकिस्तान द्वारा यह स्वीकारना कि चीन ने ISR सहायता में निर्णायक भूमिका निभाई, भारतीय रक्षा नीति में एक बड़ा परिवर्तन लेकर आया है। जो कभी केवल सहायक माध्यम माना जाता था, अब वह राष्ट्र की सुरक्षा रणनीति का मुख्य स्तंभ बन चुका है।

दक्षिण एशिया में बढ़ते चीनी प्रभाव और पाकिस्तान तथा हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति को देखते हुए, भारत की अंतरिक्ष दौड़ अब सिर्फ गौरव का विषय नहीं रही। यह जीवन रक्षा, प्रतिरोध क्षमता, और आत्मनिर्भरता का विषय बन चुकी है—ताकि भविष्य में कोई युद्ध विदेशी उपग्रहों की छाया में न लड़ा जाए।

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