देश में संकट, मां सोनिया बीमार फिर राहुल गांधी कहां ‘फरार’?

कांग्रेस की ओर से अब तक राहुल की विदेश यात्रा को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है

सोनिया गांधी और राहुल गांधी

सोनिया गांधी और राहुल गांधी

कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी एक बार फिर विवादों के घेरे में हैं। इस बार वजह है उनकी ऐसे वक्त में विदेश यात्रा पर होना जब देश अहमदाबाद में हुए एअर इंडिया AI-171 विमान हादसे के संकट का सामना कर रहा है। साथ ही, राहुल गांधी की मां और वरिष्ठ कांग्रेस नेता सोनिया गांधी की भी तबीयत बिगड़ने की खबर है। राहुल गांधी की इस ‘गैर-मौजूदगी’ को लेकर न सिर्फ सोशल मीडिया पर सवाल उठ रहे हैं, बल्कि राजनीतिक विरोधी भी इस पर तीखी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। कांग्रेस की ओर से अब तक राहुल की विदेश यात्रा को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, ना यह बताया गया है कि वे कहां हैं और ना यह कि कब लौटेंगे।

देश परिवार में संकट, राहुल गांधी बाहर

12 जून को एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171 अहमदाबाद में टेक-ऑफ के कुछ ही देर बाद रिहायशी इलाके पर गिर गई। हादसे में विमान के 241 यात्री और क्रू समेत कम से कम 274 लोग मारे गए। जमीन पर भी 33 से अधिक लोगों की जान गई। यह दुर्घटना पूरे देश को झकझोर देने वाली थी। इसी बीच सोनिया गांधी को दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में भर्ती किया गया। कांग्रेस ने इसे ‘सामान्य स्वास्थ्य जांच’ बताया, लेकिन उनकी उम्र और बीमारियों के पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए यह खबर चिंताजनक बनी हुई है। ऐसे वक्त में राहुल गांधी का देश से बाहर होना और एक ट्वीट के अलावा कोई सार्वजनिक बयान या सार्वजनिक सांत्वना संदेश ना देना लोगों को खल रहा है।

बीजेपी ने की राहुल गांधी की आलोचना

इस मुद्दे ने तब और तूल पकड़ा जब बीजेपी की आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने राहुल गांधी के बाहर होने को लेकर एक तल्ख ट्वीट किया। मालवीय ने लिखा, “विपक्ष के नेता राहुल गांधी एक गुप्त विदेशी स्थान पर छुट्टियां मना रहे हैं, जो भारत से बहुत दूर नहीं है जबकि देश एक बहुत बड़ी विमानन त्रासदी से जूझ रहा है। नुकसान की भयावहता और अनगिनत परिवारों के दुख के बावजूद, उन्होंने अपने आराम के प्रवास को बीच में ही छोड़कर लोगों के साथ खड़े होने के लिए घर लौटना ज़रूरी नहीं समझा।”

मालवीय ने आगे लिखा, “कोई कितना गैर-जिम्मेदार और स्वार्थी हो सकता है? यह वही राहुल गांधी हैं जो 26/11 के बाद पार्टी कर रहे थे, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान बेतुके वीडियो शूट कर रहे थे और राष्ट्रीय संकट के समय बार-बार गायब हो रहे थे। क्या यह किसी ऐसे व्यक्ति का आचरण है जो सार्वजनिक जीवन में भी भरोसा करने का हकदार है – सत्ता और जिम्मेदारी की तो बात ही छोड़िए?” इस ट्वीट ने एक ऐसे मुद्दे को छेड़ा, जिससे राष्ट्रीय संकट के समय राहुल गांधी के कथित रूप से नज़र से ओझल हो जाने की प्रवृत्ति पर फिर से बहस शुरू हो गई है। यह एक ऐसा आरोप जिसे उनके राजनीतिक विरोधी अक्सर उनके नेतृत्व की गंभीरता और जिम्मेदारी पर सवाल उठाने के लिए लगातार उठाते रहे हैं।

क्या कहती है कांग्रेस की चुप्पी?

कांग्रेस पार्टी ने अब तक इस विवाद पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। हालांकि, पार्टी से जुड़े कुछ सूत्रों का कहना है कि यह एक राजनीतिक हमला है और जानबूझकर तूल दिया जा रहा है। समर्थकों का कहना है कि राहुल गांधी पहले भी अपनी मां की तबीयत के दौरान उनके साथ रहे हैं और हर बात को सार्वजनिक करना जरूरी नहीं। एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा, “आज की राजनीति में सहानुभूति केवल कैमरे के सामने आकर जताना ही नहीं है। राहुल गांधी भले नजर न आ रहे हों, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे बेपरवाह हैं।”

नेतृत्व बनाम दृश्यता

यह मुद्दा सिर्फ एक यात्रा भर का नहीं है, बल्कि यह उस व्यापक नेतृत्व छवि से जुड़ा है जिसे राहुल गांधी गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। अब जब वह लोकसभा में विपक्ष के नेता के संवैधानिक पद पर हैं, तो जनता उनसे उम्मीद करती है कि वह राष्ट्रीय महत्व की घटनाओं के समय न केवल उपस्थित रहें बल्कि स्पष्ट रूप से अपनी भूमिका निभाएं। इस चुप्पी और गैर-मौजूदगी ने एक बार फिर उन पुराने सवालों को हवा दे दी है जो उनके बारे में पहले से उठते रहे हैं: क्या वह नेतृत्व में गंभीरता नहीं दिखाते? क्या वह वास्तविक संकटों से भावनात्मक रूप से कटे हुए हैं? और क्या वह सार्वजनिक ज़िम्मेदारियों से ज़्यादा अपनी निजी सहूलियत को प्राथमिकता देते हैं?

इस तरह के समय में विपक्ष के नेता की अनुपस्थिति न केवल प्रतीकात्मक रूप से गलत संदेश देती है, बल्कि जनता में यह धारणा भी बनती है कि राहुल गांधी आज भी नेतृत्व की उस निरंतरता और संजीदगी से दूर हैं जिसकी एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है।

दिखना भी ज़रूरी है?

राहुल गांधी विदेश क्यों गए, इसकी वजहें चाहे जितनी भी जायज़ हों लेकिन सार्वजनिक जीवन में दिखने की अहमियत को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। और यही कारण है कि इस समय उनकी अनुपस्थिति बिल्कुल भी सही नहीं लगती। जब आप एक राष्ट्रीय पार्टी के नेता हों, तो सिर्फ कामकाजी कुशलता नहीं, सार्वजनिक उपस्थिति और भावनात्मक जुड़ाव भी उतना ही जरूरी होता है। अगर वह हादसे में मारे गए लोगों के परिवारों से मिलने चले जाते, या अपनी बीमार मां सोनिया गांधी को देखने अस्पताल चले जाते, या कम से कम कोई स्पष्ट सार्वजनिक बयान ही दे देते तो आज उनकी छवि कुछ और होती।

राहुल गांधी की चुप्पी और दूरी ने उनके इरादों पर ही सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं। 2024 के चुनाव में अपेक्षा से बेहतर प्रदर्शन के बाद कांग्रेस पार्टी अपनी राष्ट्रीय छवि को फिर से मजबूत करने की कोशिश कर रही है। ऐसे में राहुल गांधी का इस तरह से चुप रहना और देश से बाहर होना, पार्टी के लिए फायदे से ज्यादा नुकसान का कारण बन सकता है, शायद उससे कहीं ज्यादा, जितना वो खुद समझ पा रहे हैं।

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