INDI ब्लॉक के इस दल ने की मुस्लिमों के लिए 10% विधानसभा सीटें आरक्षित करने की मांग

एमएमके का दावा: मुस्लिम जनसंख्या के अनुपात में मिले विधानसभा सीटें

तमिलनाडु की मुस्लिम-केंद्रित पार्टी माणिथनेया मक्कल कच्छ, जिसे एमएच जवाहिरुल्लाह द्वारा नेतृत्व किया जाता है, ने 234 विधानसभा सीटों में से 14 सीटें मुसलमानों के लिए आरक्षित करने की मांग उठाई है। पार्टी का तर्क है कि राज्य की कुल जनसंख्या में मुसलमानों की हिस्सेदारी 7.18% है और उन्हें कुल सीटों का कम से कम 10% प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। यह मांग राज्य विधानसभा के साथ-साथ संसद और स्थानीय निकायों में भी परिलक्षित होती है। इस समय यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 2026 विधानसभा चुनावों में गठबंधन राजनीति और पहचान आधारित मुद्दे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

जवाहिरुल्लाह का विवादित इतिहास

पापानसम के विधायक जवाहिरुल्लाह अल्पसंख्यक अधिकारों के मुखर समर्थक माने जाते हैं, लेकिन उनकी कुछ टिप्पणियाँ और गतिविधियाँ विवादों में रही हैं। उन पर हिंदू धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने और साम्प्रदायिक प्रकरणों को बढ़ावा देने का आरोप रहा है।

2023 में एमएमके ने मनिपुर में हिंसा के विरोध में ऐसे बैनर लगाए जिनमें नरेंद्र मोदी और अमित शाह को राम-लक्ष्मण की शक्लों में दिखाया गया था, जिसमें वे एक निर्वस्त्र महिला (सीता देवी का प्रतीक) पर धनुष-तीर लिए खड़े थे। सोशल मीडिया पर इस बैनर कैमपेन को तीखी निंदा मिली, जिसके बाद जवाहिरुल्लाह ने इस संबंध में पार्टी से माफी मांगी।

एमएमके पर यह भी आरोप है कि वह विगत में कट्टरपंथी तत्वों का समर्थन करती रही है और धार्मिक परिवर्तनों (रिलिजन कवर्ज़न) पर लगाम लगाने वाले सरकारी कदमों का विरोध किया है। आलोचकों का मानना है कि धर्म-आधारित सीट आरक्षण की यह मांग एक विभाजित रणनीति का हिस्सा है।

गठबंधन में अल्पसंख्यक आवाज़ें सशक्त

एमएमके अकेली नहीं है; डीएमके गठबंधन के अन्य सहयोगियों जैसे विधुतलाई चिरुथाईगल कच्छ (VCK), मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कच्छम (MDMK) और अन्य मुस्लिम संगठन भी अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व की मांग तेज कर रहे हैं। 2021 में 6.3 करोड़ मतदाताओं वाली इस स्थिति में, डीएमके गठबंधन को 234 सीटों में से 159 सीटें मिली थीं (डीएमके ने अकेले 133 सीटें): । 2026 जैसे निकटतम चुनाव के दृष्टिगत इस गठबंधन में दलित और मुस्लिम प्रतिनिधियों की मांग सुनी जा रही है।

भाजपा की प्रतिक्रिया-अन्नामलाई का हिंदुत्व बचाओ आह्वान

तमिलनाडु भाजपा नेता क. अन्नामलाई ने हाल ही में मुरुगन भक्त सम्मेलन में चेतावनी दी:  हिंदू पहचान की रक्षा हो। अब किसी छल-छद्म सेवा के तौर पर धर्मांतरण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। 2050 तक मुस्लिम वैश्विक बहुसंख्यक बन सकते हैं।

उनका कहना था कि यह आंकड़े पुराने नहीं बल्कि वास्तविक चिंता हैं, जो राष्ट्रवादी हिंदुओं को सतर्क करती हैं। उन्होंने जवाहिरुल्लाह की घोषणाओं को डर फैलाने वाली राजनीति बताया।

संविधान निर्माताओं की दृष्टि नहीं धर्म आधारित आरक्षण

भारतीय संविधान में धर्म-आधारित आरक्षण या सीट आवंटन का प्रावधान नहीं था। डॉ. बीआर अम्बेडकर ने इस प्रणाली का विरोध किया, क्योंकि इससे विभाजन की संभावना रहती थी और इससे धर्म के आधार पर विभाजित निर्वाचन प्रणाली की दिशा मिलती। संविधान की प्राथमिकता समाजिक और आर्थिक दृष्टियों से पिछड़े वर्गों को सशक्त बनाना थी, न कि धार्मिक विभाजन। धर्म आधारित सीट आरक्षण से संविधान की मूल भावना और धर्मनिरपेक्षता को खतरा उत्पन्न होता है।

यदि इस तर्क को स्वीकार किया गया, तो दूसरे धार्मिक या जातीय समूह भी सीटों का निर्धारण मांगने लगेंगे। जब हर समुदाय अपने प्रतिनिधित्व के लिए धर्म या जाति के आधार पर वोटिंग अधिकार का दावा करेगा, तब यह लोकतांत्रिक शासन का विभाजनकारी स्वरूप स्वीकार्य बन जाएगा। तमिलनाडु जैसी रैशनल और समावेशी राजनीति वाली राज्य को इसे बार-बार परखने की आवश्यकता होगी। 2026 जैसे समीकरण जनसंख्या-based वोट बैंक रणनीति और संविधान की एकता के बीच पहले से कहीं अधिक संघर्ष खड़ा करेंगे।

निष्कर्ष:

एमएमके की मांग अल्पसंख्यकों को समुचित प्रतिनिधित्व दिलाने की मुहिम है, लेकिन धर्म-आधारित सीट आरक्षण परम्परागत संवैधानिक मूल्यों को चुनौती देता है। चुनाव परिणाम तय करेंगे कि तमिलनाडु अपने धर्मनिरपेक्ष और समावेशी राजनीतिक मॉडल को बचाए रखता है या वोट बैंक उन्मुख साम्प्रदायिक राजनीति की ओर बढ़ता है।

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