कुरान जलाने पर कोर्ट ने दी सजा, क्या यूनाइटेड किंगडम में लौट आया ईशनिंदा कानून?

लंदन के वेस्टमिंस्टर कोर्ट के एक फैसले ने एक बार फिर से ब्रिटेन में ईशनिंदा कानून पर बहस छेड़ दी है। आइये जानें क्या है पूरी घटना?

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क्या यूनाइटेड किंगडम में लौट आया ईशनिंदा कानून?

यूनाइटेड किंगडम में ईशनिंदा कानून का इतिहास काफी पुराना हो चुका है। वैज्ञानिक रूप से विकसित समाज ने इसे पीछे छोड़ दिया है। नॉर्दर्न आयरलैंड के अलावा किंगडम के सभी देशों से ईशनिंदा का कानून खत्म कर दिया गया है। हालांकि, लंदन के वेस्टमिंस्टर कोर्ट से आए एक फैसले ने इस पर बहस को ताजा कर दिया है। सवाल खड़े हो गए हैं कि क्या एक बार फिर से UK में ईशनिंदा कानून लौट आया है?

क्या है मामला?

न्यूज एजेंसी AP के मुताबिक, 50 साल के हामिद कोसकुन ने 13 फरवरी को धार्मिक किताब कुरान को आग के हवाले कर दिया था। उसने इस्लाम को आतंकवाद का धर्म बताया था। वो लंदन में तुर्की दूतावास के बाहर प्रदर्शन करने पहुंचा था। इस मामले में लंदन के वेस्टमिंस्टर कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई। मजिस्ट्रेट जॉन मैकगारवा ने कोसकुन को अव्यवस्थित व्यवहार का दोषी पाया। उन्होंने कहा कि हामिद कोसकुन का कृत्य इस्लाम के अनुयायियों के प्रति शत्रुता से प्रेरित है।

हामिद कोसकुन के मामले में सुनवाई के बाद मजिस्ट्रेट जॉन मैकगारवा 240 पाउंड यानी भारतीय रुपयों में करीब 27 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। 96 पाउंड का स्ट्रेजरी सरचार्ज शामिल हैं। AFP रिपोर्ट में बताया गया है कि कोर्ट ने कहा ‘कुरान को जहां जलाया गया वो संवेदनशील जगह है। धर्म के प्रति खराब भाषा का प्रयोग किया गया था। यह कम से कम आंशिक रूप से धर्म के अनुयायियों के प्रति घृणा को दिखाता है।’

आरोपी की सफाई

तुर्की मूल के कोसकुन लंबे समय से यूनाइटेड किंगडम में शरण मांग रहे हैं। उन्होंने अपने ऊपर लगे सभी आरोपी से इनकार कर दिया है। कोर्ट के फैसले के बाद उन्होंने सोशल मीडिया में अपनी बात पोस्ट की है। उन्होंने लिखा कि ‘मैं केवल तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन की इस्लामी सरकार के खिलाफ विरोध कर रहा था।’

ईशनिंदा के लिए मुकदमा

कोसकुन को कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए फ्री स्पीच यूनियन (FSU) और नेशनल सेक्युलर सोसाइटी ने मदद की है। इन संस्थाओं की ओर से तर्क दिया गया है कि ब्रिटेन की अभिव्यक्ति की आजादी होने के बाद भी कोसकुन पर ईशनिंदा के लिए मुकदमा चलाया जा रहा था। वहीं मुख्य विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी इसकी निंदी की है। पार्टी ने कहा कि ब्रिटेन में कोई ईशनिंदा कानून नहीं है। संसद ने कभी इसके लिए वोटिंग नहीं हुई है। यह फैसला गलत है। ब्रिटिश लोग इसे नहीं चाहते हैं।

अभियोजन और कोर्ट का उत्तर

ईशनिंदा के लिए मुकदमा चलाए जाने के सवाल पर अभियोजकों ने कहा कि कोसकुन पर कुरान जलाने के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा रहा था। वहीं क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस के फिलिप मैकघी ने दावा किया कि उस पर सार्वजनिक व्यवहार के लिए मुकदमा चलाया गया है। वहीं फैसला देने वाले जज ने कहा कि एक धार्मिक किताब को जलाना कुछ लोगों के लिए आपत्तिजनक है।

यूनाइटेड किंगडम में ईशनिंदा कानून का इतिहास

ब्रिटेन और यूनाइटेड किंगडम में ईशनिंदा कानून का इतिहास काफी लंबा और जटिल है। यहां लंबे समय से ईसाई धर्म को प्रोटेक्ट करने के लिए ईशनिंदा कानून किसी न किसी तरीके से प्रचलन में रहा है। हालांकि, इसमें समय-समय पर संशोधन किए गए हैं।

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16वीं और 17वीं सदी में इसी गंभीर अपराध माना जाता था। ऐसा करने पर मृत्युदंड तक की सजा होती थी। 1648 के Blasphemy Act के जरिए यीशु को न मानने वालों के लिए सजा का प्रावधान किया गया। हालांकि, 17वीं और 18वीं सदी में इसे चर्च अपनी मोनोपोली के लिए उपयोग में लाने लगीं। 19वीं सदी में समाज अधिक धर्मनिरपेक्ष हुआ तो ईशनिंदा कानून की प्रासंगिकता कम हो गई। 20वीं सदी में इसके खिलाफ आवाज उठाई जाने लगी। इसी कारण 21वीं सदी के शुरुआत से ही इस कानून को आधिकारिक रूप से समाप्त किया जाने लगा।

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