पाकिस्तान की हानिया आमिर के साथ फिल्म रिलीज करते हुए दिलजीत को पहलगाम के पीड़ित नहीं दिखे?

सवाल यह है कि क्या दिलजीत की 'कलात्मक स्वतंत्रता' देश की पीड़ा से बढ़कर है?

सरदार जी 3 में हानिया आमिर के साथ दिलजीत (स्क्रीनग्रैब)

सरदार जी 3 में हानिया आमिर के साथ दिलजीत (स्क्रीनग्रैब)

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की वादियों में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकियों द्वारा मारे गए 26 निर्दोष लोगों का खून अभी सूखा भी नहीं है कि उससे पहले ही दिलजीत दोसांझ पाकिस्तान के कलाकारों के साथ मिलकर फिल्में बना रहे हैं, ट्रेलर रिलीज कर रहे हैं और दुनिया को दिखा रहे हैं कि उन्हें इस देश की पीड़ा से कोई मतलब नहीं है। ‘पंजाबी स्वाभिमान’ की बातें करने वाले दिलजीत स्वाभिमान यही था?

हाल ही में, बॉलीवुड के चहेते दिलजीत दोसांझ की आगामी फिल्म ‘सरदार जी 3’ का ट्रेलर रिलीज हुआ है जिसमें पाकिस्तानी अभिनेत्री हानिया आमिर के साथ-साथ अन्य पाकिस्तानी कलाकार जैसे नासिर चिन्योति, डेनियल खावर और सलीम अलबेला नज़र आएंगे। यह फिल्म भारत में नहीं बल्कि 27 जून को सिर्फ विदेशों में रिलीज़ की जा रही है, जिससे साफ है कि वे देश की जनता और कानून की नजर से बचना चाहते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या उनकी ‘कलात्मक स्वतंत्रता’ देश की पीड़ा से बढ़कर है?

‘दैनिक भास्कर’ की एक खबर के मुताबिक, पहलगाम आतंकी हमले के बाद फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लॉइज (FWICE) ने पाकिस्तानी कलाकारों के भारत में काम करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। संगठन ने चेतावनी दी है कि यदि कोई भारतीय नागरिक पाकिस्तानी कलाकारों के साथ सहयोग करता है, तो उसके खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया जाएगा।

FWICE के प्रेसिडेंट बीएन तिवारी ने भास्कर से बातचीत में कहा है कि अगर यह फिल्म विदेश में भी रिलीज़ की गई तो भी दिलजीत को भारत में बैन कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा, “मैंने सुना है कि वो फिल्म फॉरेन में या पाकिस्तान में रिलीज कर रहे हैं। यदि इस तरीके से कोई भी हरकत करते हैं तो दिलजीत दोसांझ और उनकी प्रोडक्शन कंपनी व्हाइट लेदर हाउस और जितने भी प्रोड्यूसर हैं, सबको इंडिया में बैन करेंगे। यहां उनके कोई प्रोग्राम हो पाएंगे। ऐसी फिल्म को बनाने वाले और उसके साथ काम करने वाले को कभी माफी नहीं है।”

पहले भी विवादों में रहे हैं दिलजीत

ट्रेलर के सामने आते ही सोशल मीडिया पर हंगामा मच गया है और दिलजीत की फिल्म में पाकिस्तानी कलाकारों की मौजूदगी ने लोगों का गुस्सा भड़का दिया है। दिलजीत दोसांझ पर लोग खालिस्तान का समर्थन जैसे आरोप लगा रहे हैं। यह पहली बार नहीं है जब दिलजीत दोसांझ सवालों के घेरे में आए हैं। 2020 के किसान आंदोलन के दौरान उन्होंने खुलकर उन कथित ‘किसानों’ का समर्थन किया था जिन्होंने लाल किले से तिरंगा उतार दिया था। कंगना रनौत के साथ उनकी तीखी बहस के बाद कंगना ने उन्हें ‘प्रो-खालिस्तानी’ तक कह दिया था। यही नहीं, जब अंतरराष्ट्रीय सिंगर रिहाना ने भारत के आंतरिक मामले में दखल दिया था, तो दिलजीत ने बाकायदा उसके लिए गाना तक बना डाला। सवाल यह है कि आखिर क्यों हर बार दिलजीत उन लोगों के पक्ष में खड़े होते हैं जो भारत की संप्रभुता और सम्मान को ठेस पहुंचाते हैं?

जून 2020 में तत्कालीन कांग्रेस सांसद और वर्तमान केंद्रीय मंत्री रवनीत बिट्टू ने उनके गाने रंगरूट पर आपत्ति जताते हुए इसे खालिस्तानी एजेंडे को बढ़ावा देने वाला बताया था। उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से दिलजीत पर देशद्रोह की शिकायत दर्ज कराने की अपील भी की थी। जवाब में दिलजीत ने एक वीडियो जारी कर सफाई दी कि यह गाना 2014 की फिल्म पंजाब 1984 का है, जिसे सेंसर बोर्ड से मंजूरी मिली थी। उन्होंने खुद को टैक्स देने वाला भारतीय बताया और कहा कि वे हमेशा भारत के साथ खड़े हैं।

एक अन्य विवाद में, 14 दिसंबर 2024 को चंडीगढ़ में होने वाले कॉन्सर्ट से पहले दिलजीत ने सोशल मीडिया पर Punjab की स्पेलिंग Panjab लिख दी, जिससे विवाद खड़ा हो गया। आलोचना के बाद उन्होंने सफाई दी कि “चाहे Punjab लिखो या Panjab, पंजाब तो हमेशा पंजाब ही रहेगा।” उन्होंने इसे अनावश्यक साजिश करार दिया। 28 सितंबर 2024 को मैनचेस्टर में एक कॉन्सर्ट के दौरान दिलजीत ने एक पाकिस्तानी फैन को जूते गिफ्ट करते हुए कहा, “देखो हिंदुस्तान-पाकिस्तान, हमारे लिए तो एक ही है। ये सरहदें तो नेताओं ने बनाई हैं।” उन्होंने कहा कि पंजाबियों के दिल में सबके लिए प्यार है और भारत-पाक दोनों देशों से आए फैंस का स्वागत किया।

इस ट्रेलर के सामने आने के बाद दिलजीत का दोगला चेहरा लोगों के सामने आ गया है। एक तरफ वे भारत में खुद को ‘पंजाबी गौरव’ का प्रतीक बताते हैं और दूसरी तरफ पाकिस्तान के कलाकारों और विदेशों में बैठे भारत विरोधी ताकतों के साथ मिलकर काम करते हैं। ऐसे में यह पूछना जरूरी हो जाता है कि क्या दिलजीत का असली एजेंडा सिर्फ कला है या इसके पीछे कोई और राजनीतिक और वैचारिक मंशा छिपी है?

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