असम की बेदखली के बाद सख्त हुए पड़ोसी राज्य, अवैध प्रवासियों पर कसा शिकंजा

असम की कार्रवाई के असर से सतर्क हुए पड़ोसी राज्य, सीमावर्ती इलाकों में कड़ी चौकसी

असम की बेदखली के बाद तीन पूर्वोत्तर राज्य- मणिपुर, मेघालय और नागालैंड ने जारी किया अलर्ट

असम के धुबरी और गोलपाड़ा जिलों में चल रहे बेदखली अभियान ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में हलचल मचा दी है। मणिपुर, मेघालय और नागालैंड जैसे पड़ोसी राज्यों ने अवैध प्रवासियों की संभावित आमद को रोकने के लिए संयुक्त रूप से सतर्कता बढ़ा दी है। असम सरकार, मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व में, दावा कर रही है कि उसने सरकारी भूमि पर बड़े पैमाने पर अवैध अतिक्रमण का पता लगाया है, जो कथित तौर पर सीमा पार से आए प्रवासियों द्वारा किया गया है। इसी के तहत राज्य सरकार ने इसे ‘कानूनी रूप से भूमि की पुनर्प्राप्ति’ की कार्रवाई बताया है।

मणिपुर ने उठाया पहला कदम

मणिपुर सरकार के गृह विभाग ने सभी जिलाधिकारियों को सतर्क रहने के लिए कहा है। अब हर जिले में एक विशेष टीम (टास्क फोर्स) बनाई जाएगी जो जिले के अंदर, राज्य की सीमा पर और देश की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर लोगों की आवाजाही पर नजर रखेगी। अगर कोई संदिग्ध प्रवासी मिलता है, तो उसकी बायोमेट्रिक जानकारी (जैसे फिंगरप्रिंट) और व्यक्तिगत जानकारी ली जाएगी और किसी भी अजीब गतिविधि की तुरंत रिपोर्ट दी जाएगी।

सरकार ने यह भी कहा है कि असम की सीमा से जुड़े इलाकों में आने-जाने वाले रास्तों पर कड़ी निगरानी रखी जाए। ये निगरानी पहले से चल रही बॉर्डर पास सिस्टम के तहत होगी। जिला पुलिस को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वो उन लोगों की पहचान करे जो बिना वैध कागज़ात के रह रहे हैं या जिनका रहने का समय खत्म हो गया है।

मेघालय और नागालैंड भी सतर्क

मणिपुर की तरह, मेघालय और नागालैंड की सरकारों ने भी अपने सीमावर्ती जिलों में निगरानी तेज कर दी है। दोनों राज्यों के जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को सख्त चेकप्वाइंट बनाए रखने और संदिग्ध इलाकों की जांच करने का निर्देश दिया गया है, ताकि अवैध प्रवासियों की बस्तियों की पहचान की जा सके। जिला-स्तरीय समितियों को नियमित निरीक्षण करने और गृह विभाग को रिपोर्ट देने को कहा गया है।

अवैध प्रवासियों के लिए निर्वासन तय

तीनों राज्यों के परामर्श में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि किसी भी अवैध प्रवासी की पहचान होने पर, कानूनी जांच और प्रक्रिया के बाद उसे निर्वासित किया जाएगा। प्रशासन को बिना किसी कोताही के सभी बिना दस्तावेज वाले व्यक्तियों का पता लगाने के निर्देश दिए गए हैं। सरकारों का संदेश साफ है: असम की बेदखली का बोझ वे नहीं उठाएंगे।

सामाजिक तनाव और जनसांख्यिकीय चिंता

यह तेजी से उठाए गए कदम पूर्वोत्तर राज्यों में लंबे समय से पल रहे जनसांख्यिकीय असंतुलन के डर को दर्शाते हैं। वर्षों से यह आशंका रही है कि अनियंत्रित प्रवासन से सामाजिक-सांस्कृतिक ढांचे में बदलाव आ रहा है और संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है। अब जब असम आक्रामक तरीके से जमीन खाली करा रहा है, तो पड़ोसी राज्यों को डर है कि बेदखल किए गए लोग उनकी सीमाओं में आकर बस सकते हैं।

मानवाधिकार संगठनों की चिंता

मानवाधिकार संगठनों ने असम में चल रही इस बड़ी कार्रवाई को लेकर चिंता जताई है। उनका कहना है कि कई जगह बिना ठीक से जांच किए पूरे गांवों को ‘अवैध’ मान लिया जा रहा है। इससे बड़ी संख्या में लोग बिना कोई दूसरा ठिकाना दिए बेघर हो सकते हैं। कुछ मामलों में बेदखली की प्रक्रिया में पारदर्शिता और ज़िम्मेदारी की कमी भी देखी गई है, जिस पर सवाल उठ रहे हैं।

असम की यह नीति अब केवल उसके राज्य तक सीमित नहीं रही, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में असर दिखा रही है। मणिपुर, मेघालय और नागालैंड ने साफ कर दिया है कि वे अपने राज्यों में असम की इन कार्रवाइयों का बोझ नहीं उठाएंगे। अब पूर्वोत्तर भारत एक नए दौर में जा रहा है, जहाँ राजनीति और जनसंख्या से जुड़े बदलाव तेज़ी से हो रहे हैं।

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