बिहार में ताजिया जुलूस में अजय यादव की लाठी-तलवार से हत्या, शहाबुद्दीन को सलाम करने वाले तेजस्वी अजय की हत्या पर खामोश क्यों?

तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) इन दिनों एक बार फिर अपने पुराने मुस्लिम-यादव यानी MY सामाजिक समीकरण को हवा देकर बिहार की सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही है। लेकिन यह कोशिश अब विवादों और कट्टरपंथ की छाया में घिरती नज़र आ रही है। कुछ ही घंटे पहले RJD के स्थापना दिवस समारोह के दौरान तेजस्वी यादव ने ना सिर्फ पार्टी के पुराने दौर की यादें ताज़ा कीं बल्कि मंच से एक ऐसे व्यक्ति का महिमामंडन किया, जो कानून और व्यवस्था के लिए वर्षों तक एक गंभीर खतरा बना रहा था। तेजस्वी ने सार्वजनिक मंच से ‘शहाबुद्दीन जी ज़िंदाबाद’ के नारे लगवाए, वही शहाबुद्दीन है जिसे अदालत ने कई संगीन मामलों में दोषी ठहराया था। एक दौर में अपराध और जातिवादी तुष्टिकरण के लिए बदनाम RJD को फिर तेजस्वी उसी दिशा में ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन विडंबना देखिए कि जब तेजस्वी यादव मंच से एक कुख्यात अपराधी के लिए जयघोष कर रहे थे, उसके कुछ ही घंटों के बाद मोतिहारी ज़िले में कट्टरपंथ की आग में एक निर्दोष अजय यादव की जान चली गई।

मुहर्रम के ताजिया जुलूस के दौरान एक सुनियोजित सांप्रदायिक हमले के तहत उन्मादी भीड़ ने हिंदुओं पर हमला बोल दिया। लाठियों, तलवारों और रॉड से लैस कट्टरपंथी भीड़ ने 32 वर्षीय अजय यादव को बेरहमी से पीट-पीटकर मार डाला। इस हमले में कई अन्य लोग भी गंभीर रूप से घायल हो गए जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा है। इस वीभत्स हत्याकांड पर राज्य सरकार की कानून-व्यवस्था की नाकामी तो स्पष्ट दिख रही है, लेकिन तेजस्वी यादव भी इस मामले पर खामोश हैं। तेजस्वी यादव, जो हर दूसरे दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर घेरते हैं इस सांप्रदायिक हत्या पर मौन साधे बैठे हैं। क्या यह चुप्पी इसलिए है क्योंकि हमलावर कथित रूप से उसी ‘MY समीकरण’ के हिस्से से आते हैं, जिसकी राजनीति पर RJD की पूरी रणनीति टिकी हुई है? तेजस्वी की चुप्पी से यह सवाल उठता है कि क्या वे सत्ता के लिए कट्टरपंथियों की तुष्टिकरण नीति को एक बार फिर दोहराने जा रहे हैं?

लालू प्रसाद यादव ने अपने 15 साल के शासनकाल में MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण को बिहार की सियासत का आधार बनाया। 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी जैसे कदमों ने मुस्लिम समुदाय को राजद का वफादार वोटर बना दिया। लेकिन आज तेजस्वी इस समीकरण को और भी खतरनाक मोड़ पर ले जा रहे हैं। वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ उनकी रैली, जिसमें उन्होंने बिल को ‘कूड़ेदान में फेंकने’ की बात कही और शरिया कानून की वकालत, यह सब मुस्लिम वोटों को लुभाने की उनकी रणनीति का हिस्सा है। लेकिन इस तुष्टिकरण की कीमत कौन चुका रहा है? अजय यादव जैसे लोग। वह यादव समाज, जिसे राजद अपना सबसे मजबूत आधार मानता है, आज खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। सोशल मीडिया पर लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब एक यादव की हत्या होती है, तो तेजस्वी की चुप्पी क्यों रहते हैं? क्या इसलिए कि हत्यारे उनके वोटबैंक का हिस्सा हैं?

बिहार में इन दिनों जो हालात बनते जा रहे हैं, वे न सिर्फ चिंताजनक हैं, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करते हैं कि आखिर राज्य की राजनीति किस दिशा में जा रही है। कट्टरपंथी ताकतें खुलेआम सड़कों पर उग्रता दिखा रही हैं। सांप्रदायिक मामलों पर सरकार व विपक्ष दोनों की चुप्पी उनके हौसले बुलंद कर रही है। मुहर्रम के जुलूसों में लगातार हिंसा की खबरें आ रही हैं। कई जगहों पर हिंदू मोहल्लों पर पत्थरबाज़ी, तलवारों से लैस जुलूसों की धमक और अब अजय यादव की दिनदहाड़े हत्या ये घटनाएं सिर्फ संयोग नहीं हैं बल्कि उस माहौल का परिणाम हैं, जो लंबे समय से तुष्टिकरण और अपराधियों के महिमामंडन के कारण बनता चला गया।

मुहर्रम के जुलूसों में बढ़ती उग्रता, हिंदू समुदाय पर हमले और अब अजय यादव की तलवारों से नृशंस हत्या, ये सब संकेत हैं कि कैसे तुष्टिकरण की राजनीति कट्टरपंथ को खुला मैदान दे रही है। तेजस्वी याद जो खुद को यादवों का नेता और मुस्लिम समुदाय का संरक्षक बताकर ‘MY समीकरण’ की नई तस्वीर गढ़ना चाहते हैं, अब उसी समीकरण की खतरनाक परछाई में खड़े हैं। जब वे पार्टी के मंच से ‘शहाबुद्दीन जी जिंदाबाद’ के नारे लगवाते हैं, तो वह केवल एक अपराधी का महिमामंडन नहीं होता बल्कि वह उन कट्टरपंथी ताक़तों को सीधा संदेश होता है कि राजनीति अब तुम्हारे साथ है। और परिणाम सामने है मुहर्रम के नाम पर निकाले गए जुलूस में एक हिंदू युवक अजय यादव को तलवारों से मार डाला गया। विडंबना देखिए कि अजय यादव उसी यादव समाज से था, जिसे RJD अपनी राजनीति की रीढ़ मानती है। लेकिन जब उसकी बेरहमी से हत्या होती है, तब तेजस्वी यादव मौन हैं। क्या इसलिए क्योंकि हत्यारों का संबंध ‘M’ से है और पीड़ित ‘Y’ से?

RJD के लिए ‘MY समीकरण’ अब सामाजिक एकता का सेतु नहीं बल्कि राजनीतिक तुष्टिकरण का औज़ार बन चुका है। जब ‘M’ के नाम पर कट्टरपंथ को छूट और ‘Y’ को केवल वोटबैंक समझा जाए, तब समाज में दरारें पड़ना तय है। तेजस्वी यादव की चुप्पी इस बात की गवाही है कि उनके लिए अजय यादव की हत्या से ज़्यादा अहम वह समीकरण है, जो सत्ता दिला सकता है। अगर यही ‘MY’ समीकरण है कि ‘M’ के नाम पर कट्टरपंथ को बढ़ावा दिया जाए और ‘Y’ के खून पर चुप्पी हो तो बिहार को अब इससे मुक्ति की ज़रूरत है।

Exit mobile version