पाकिस्तान को बड़ा झटका- भारत ने सिंधु जल संधि पर लगाई रोक, सावलकोट समेत कई प्रोजेक्ट्स के लिए टेंडर जारी

जम्मू-कश्मीर में 1,856 मेगावाट सावलकोट समेत कई पनबिजली परियोजनाओं के लिए टेंडर जारी, भारत ने जल अधिकारों की रक्षा को बताया प्राथमिकता

पाकिस्तान को बड़ा झटका- भारत ने सिंधु जल संधि पर लगाई रोक, सावलकोट समेत कई प्रोजेक्ट्स के लिए टेंडर जारी

भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में चिनाब नदी पर 1,856 मेगावाट क्षमता वाली सावलकोट जलविद्युत परियोजना के लिए टेंडर मंगवाए हैं। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब भारत ने सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को निलंबित कर दिया है, जो भारत और पाकिस्तान के बीच जल संबंधों में एक बड़ा बदलाव माना जा रहा है। इस परियोजना से भारत को पश्चिमी नदियों पर अपना नियंत्रण मजबूत करने में मदद मिलेगी, जिससे पाकिस्तान के सामने रणनीतिक और संचालन से जुड़ी बड़ी समस्याएँ आ सकती हैं।

सावलकोट परियोजना की योजना सबसे पहले 1960 के दशक में बनाई गई थी और इसे जम्मू-कश्मीर के रामबन जिले के सिधु गाँव के पास बनाया जाना है। ऑनलाइन निविदा जमा करने की आखिरी तारीख 10 सितंबर तय की गई है। यह परियोजना मोदी सरकार द्वारा दोबारा शुरू की जा रही उन कई जल परियोजनाओं में से एक है, जिनका मकसद भारत के जल अधिकारों को मजबूत करना और केंद्र शासित प्रदेश में आधारभूत सुविधाओं का तेजी से विकास करना है।

जलशक्ति का संकल्प: छह बड़ी परियोजनाओं से नदियों के पानी का पूरा उपयोग

सावलकोट के लिए टेंडर जारी करना सरकार की उस बड़ी योजना का हिस्सा है, जिसमें छह बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को जल्दी शुरू किया जाना है। इन परियोजनाओं में 1,320 मेगावाट की कीर्थाई-I और II, 1,000 मेगावाट की पकल डुल परियोजना और तीन अन्य परियोजनाएँ शामिल हैं, जिससे कुल 2,224 मेगावाट की अतिरिक्त बिजली बनाने की क्षमता तैयार होगी। इन सभी परियोजनाओं के पूरे होने के बाद जम्मू-कश्मीर की बिजली उत्पादन क्षमता 10,000 मेगावाट तक पहुँच सकती है, जिससे न केवल इस क्षेत्र का विकास होगा, बल्कि भारत को नदियों के अपने हिस्से के पानी का अच्छा उपयोग करने का मौका भी मिलेगा।

राज्यसभा में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस फैसले को देश के हित में बताया। उन्होंने कहा, “सिंधु जल संधि एकतरफा थी। हमारे देश के किसानों और लोगों का उस पानी पर पूरा अधिकार है, जो भारत की जमीन से निकलता है।” उन्होंने यह भी कहा कि इस फैसले से कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली को ज़्यादा पानी मिल सकेगा।

मोदी का हमला: नेहरू की “ऐतिहासिक भूल” को सुधारने की पहल

लोकसभा में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर 19 घंटे लंबी बहस के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिंधु जल संधि को निलंबित करने के फैसले का मजबूती से बचाव किया। उन्होंने 1960 में जवाहरलाल नेहरू द्वारा किए गए इस समझौते को भारत की गरिमा और हितों के साथ “बड़ा विश्वासघात” बताया।

मोदी ने कहा, “नेहरू ने सिंधु नदी के 80% जल पाकिस्तान को सौंप दिया, जबकि भारत, जो कहीं अधिक बड़ा देश है, सिर्फ 20% जल के हिस्से पर संतुष्ट रहा। ये कैसी कूटनीति थी?” उन्होंने इस संधि को स्वतंत्र भारत के इतिहास की सबसे बड़ी रणनीतिक गलतियों में से एक बताया।

प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि कैसे करोड़ों रुपये पाकिस्तान को नहरें बनाने के लिए दिए गए, जबकि भारत अपने ही क्षेत्र की नदियों पर बने बांधों की सफाई तक नहीं कर सकता था।

“भारत को ‘सिंधु’ नदी के नाम से पहचाना जाता है, लेकिन नेहरू की सरकार ने विश्व बैंक को यह तय करने दिया कि हम अपने ही जल का कैसे उपयोग करेंगे,” मोदी ने कहा। उन्होंने हालिया फैसले को भारत के भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक “ऐतिहासिक सुधार” करार दिया।

सिंधु जल संधि क्या है और इसका भारत पर क्या असर पड़ा?

1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई सिंधु जल संधि एक जल बांटने का समझौता था, जिसे विश्व बैंक की मदद से तय किया गया था। इस संधि के तहत भारत को पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलज) पर अधिकार मिला, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर खास अधिकार दिए गए, जबकि ये सभी नदियाँ भारत से ही निकलती हैं।

भारत ने इस संधि का कई दशकों तक पालन किया, यहाँ तक कि युद्ध और आतंकी हमलों के समय भी इसे नहीं तोड़ा। लेकिन यह संधि भारत को पश्चिमी नदियों पर बड़े भंडारण या पानी को मोड़ने वाली परियोजनाएँ बनाने से रोकती रही। इससे भारत को रणनीति और विकास के लिहाज से नुकसान हुआ।

मोदी सरकार का लंबे समय से कहना था कि यह संधि अब भारत की बदलती सुरक्षा और विकास की ज़रूरतों को पूरा नहीं करती। आतंकवाद और पाकिस्तान की भूमिका को देखते हुए अब इस संधि को एकतरफा और पुरानी मान लिया गया है।

पहलगाम हमले के बाद भारत ने क्यों निलंबित की संधि

22 अप्रैल 2025 को हुए एक आतंकी हमले ने इस दिशा में निर्णायक बदलाव ला दिया, जिसमें पहलगाम में 26 भारतीय नागरिकों की जान गई। इस हमले के पीछे पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों का हाथ माना गया, जिसके बाद भारत सरकार ने ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाई।

विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने राज्यसभा में कहा, “जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को पूरी तरह समाप्त नहीं करता, तब तक सिंधु जल संधि निलंबित रहेगी। हमने साफ़ कहा है।  खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।”

यह भारत की उस रणनीति का प्रतीक है जो अब सिर्फ़ प्रतीकात्मक विरोध तक सीमित नहीं है, बल्कि ठोस कार्रवाई की दिशा में बढ़ रही है। अब तक भारत की प्रतिक्रिया कूटनीतिक और आर्थिक स्तर तक सीमित थी, लेकिन अब जल जैसे अहम संसाधन को भी रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।

भारत ने संधि निलंबन को अब तक वापस नहीं लिया है, बावजूद इसके कि पाकिस्तान की ओर से कई बार अपील की गई और वैश्विक संस्थानों का दबाव भी बनाया गया। सावलकोट समेत अन्य परियोजनाओं पर काम आगे बढ़ाकर भारत ने साफ़ कर दिया है कि वह अपने जल संसाधनों के उपयोग को लेकर अब पीछे नहीं हटेगा।

भारत ने reclaim किया अपना जल अधिकार और रणनीतिक नियंत्रण

1,856 मेगावाट की सावलकोट जल परियोजना के लिए टेंडर जारी करना सिर्फ एक विकास कार्य नहीं, बल्कि भारत के जल अधिकारों की पुनः प्राप्ति का प्रतीक है। सिंधु जल संधि के निलंबन और जम्मू-कश्मीर में रणनीतिक परियोजनाओं को आगे बढ़ाकर मोदी सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत अब न तो ऐतिहासिक भूलों से बंधा रहेगा और न ही असमान संधियों के आगे झुकेगा।

जल सुरक्षा अब राष्ट्रीय सुरक्षा, कृषि और ऊर्जा आत्मनिर्भरता से सीधे जुड़ी हुई है। यह साहसिक कदम भारत की संप्रभुता को मज़बूत करता है, नागरिकों की ज़रूरतों को प्राथमिकता देता है, और दुनिया को यह संदेश देता है, आतंक और संधि साथ नहीं चल सकते।

भारत की नई नीति अब आत्मनिर्भरता, स्पष्ट रणनीति और राष्ट्रहित पर आधारित है। सरकार जैसे-जैसे वर्षों से अटकी परियोजनाओं को आगे बढ़ा रही है, समझौते के युग की जगह अब रणनीतिक स्पष्टता और राष्ट्रीय गरिमा का युग ले रहा है।

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