भारतीय जनता पार्टी झारखंड भर में एक व्यापक पदयात्रा शुरू करने की तैयारी कर रही है। यह एक ऐसा आंदोलन होगा, जो राज्य की कुछ सबसे बड़ी जनसांख्यिकीय और सांस्कृतिक चुनौतियों का समाधान करना चाहता है। इस अभियान के केंद्र में बांग्लादेशी नागरिकों की अवैध घुसपैठ, बड़े पैमाने पर धर्मांतरण और आदिवासी आबादी में खतरनाक गिरावट के बारे में चिंताएं हैं। पार्टी के रणनीतिकारों के अनुसार, यह पदयात्रा केवल एक राजनीतिक कदम नहीं, बल्कि झारखंड के स्वदेशी समुदायों की पहचान बचाने और जन चेतना को जगाने के लिए एक सामाजिक जागरूकता की पहल है।
सांस्कृतिक संरक्षण के लिए तीन साल का अभियान
झारखंड में बीजेपी की यह पदयात्रा पूरे तीन साल तक चलेगी, जो कई चरणों में होगी। इसका नेतृत्व निशिकांत दुबे, बाबूलाल मरांडी और चंपई सोरेन सहित वरिष्ठ भाजपा नेता करेंगे। खास बात यह है कि संथाल विद्रोह के नेता सिद्धो—कान्हो के वंशज और हाल ही में भाजपा में शामिल हुए मंडल मुर्मू भी इस अभियान का प्रमुख चेहरा होंगे। प्रत्येक सप्ताह पदयात्रा तीन से चार दिनों तक चलेगी। इसमें राज्य के हर तहसील और ग्रामीण क्षेत्र को कवर किया जाएगा। इसका उद्देश्य जमीनी स्तर तक पहुंचना है, उन मुद्दों पर जुड़ाव को बढ़ावा देना है, जिनके बारे में भाजपा का मानना है कि पिछले विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया था।
संथाल परगना में जनसांख्यिकीय बदलाव ने बढ़ाईं चिंताएं
इस पदयात्रा का मुख्य केंद्र संथाल परगना क्षेत्र है, जिसमें पाकुड़, साहिबगंज, गोड्डा, जामताड़ा, दुमका और देवघर जैसे जिले शामिल हैं। ऐतिहासिक रूप से संथाल जनजाति का घर, यह क्षेत्र एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय परिवर्तन देख रहा है। भाजपा नेताओं के अनुसार, यह परिवर्तन मुख्य रूप से बांग्लादेश से अवैध आव्रजन द्वारा संचालित है, जिसके बारे में उनका तर्क है कि इसे ढीली शासन व्यवस्था और वोट बैंक की राजनीति से सुगम बनाया जा रहा है।
बांग्लादेशी घुसपैठियों ने बढ़ाई परेशानी
जानकारी हो कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ 1855 के संथाल विद्रोह के दौरान अपने उग्र प्रतिरोध के लिए जाने जाने वाले संथालों ने लंबे समय से आदिवासी भूमि को बाहरी लोगों को हस्तांतरित नहीं करने का सिद्धांत बनाए रखा है। हालांकि, बांग्लादेशी घुसपैठियों की निरंतर आमद इस सामाजिक ताने-बाने को खतरे में डाल रही है। भाजपा ने इन अवैध प्रवासियों की पहचान करने और उन्हें निर्वासित करने के लिए झारखंड में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लागू करने का आह्वान किया है।
विशेष शाखा ने घुसपैठ के पैटर्न की पुष्टि की
भाजपा के अभियान को और बढ़ावा देने वाली झारखंड सरकार की विशेष शाखा का एक वर्गीकृत पत्र है, जो लगभग सभी मीडिया हाउसेज के पास है। इस रिपोर्ट में संथाल परगना और उसके बाहर बांग्लादेशी नागरिकों की व्यवस्थित घुसपैठ का विवरण दिया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रक्रिया में प्रवासियों को स्थानीय मदरसों में शुरुआती शरण देना, मतदाता सूची में नाम दर्ज कराना और आदिवासी महिलाओं से विवाह जैसे सामाजिक तंत्रों के माध्यम से अंततः आत्मसात करना शामिल है। यह एकीकरण उन्हें आदिवासी भूमि पर अप्रत्यक्ष अधिकार प्रदान करता है, जिससे संथालों के भूमि स्वामित्व अधिकारों से समझौता होता है।
बीजेपी की आशंकाओं को पुष्ट करते हैं जनगणना के आँकड़े
जानकारी हो कि साल 2001 और 2011 के बीच झारखंड की मुस्लिम आबादी में 14% की वृद्धि हुई, जो संथाल समुदाय में 14.2% की वृद्धि के लगभग बराबर है। पाकुड़ में मुस्लिम आबादी में 42% की वृद्धि हुई, जबकि संथाल की वृद्धि दर केवल 19.51% थी। साहिबगंज में मुस्लिम आबादी में 37% की वृद्धि हुई, जबकि संथालों में केवल 10.8% की वृद्धि हुई। भाजपा का दावा है कि ये संख्याएं न केवल प्राकृतिक वृद्धि को दर्शाती हैं, बल्कि एक लक्षित जनसांख्यिकीय बदलाव को भी दर्शाती हैं जिसका उद्देश्य राज्य के सांस्कृतिक और राजनीतिक संतुलन को बदलना है।
घुसपैठ के रास्ते और राजनीतिक नतीजे
झारखंड की भौगोलिक स्थिति और पश्चिम बंगाल व बिहार के साथ इसकी सीमाएं इसे सीमा पार से होने वाली गतिविधियों के लिए विशेष रूप से संवेदनशील बनाती हैं। घुसपैठ के मुख्य रास्ते इस प्रकार हैं।
सड़क मार्ग से: कई अप्रवासी पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से होकर पाकुड़ में प्रवेश करते हैं।
रेल मार्ग से: पाकुड़ या साहिबगंज से वे आंतरिक जिलों में पहुंचने के लिए ट्रेन पकड़ते हैं।
नदी मार्ग से: घुसपैठिए साहिबगंज से बिहार के कटिहार जिले में गंगा के रास्ते भी प्रवेश करते हैं।
इस मुद्दे ने एक गरमागरम राजनीतिक बहस को जन्म दिया है। भाजपा नेताओं ने खुले तौर पर झामुमो-कांग्रेस गठबंधन पर राजनीतिक लाभ के लिए इन घुसपैठों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। उनका तर्क है कि अनियंत्रित प्रवास, धर्मांतरण और जनसांख्यिकीय बदलाव झारखंड की आदिवासी विरासत को कमजोर कर रहे हैं और इनका मुकाबला निर्णायक कार्रवाई से किया जाना चाहिए।
जनजातीय पहचान को दोबारा पाने के लिए लंबा खेल
भाजपा की पदयात्रा केवल राजनीतिक रैली नहीं है, इसे झारखंड की जनजातीय पहचान को पुनः प्राप्त करने के लिए सांस्कृतिक आंदोलन के रूप में देखा जा रहा है, जिसे पार्टी घुसपैठ और धर्मांतरण के माध्यम से व्यवस्थित गिरावट के रूप में देखती है। तीन साल तक चलने वाले राज्यव्यापी अभियान के ज़रिए, भाजपा इन मुद्दों के इर्द-गिर्द निरंतर जनजागरूकता पैदा करने और नैतिक व राजनीतिक तात्कालिकता स्थापित करने की कोशिश कर रही है। मज़बूत जमीनी स्तर पर फ़ोकस और मंडल मुर्मू जैसे लोगों के प्रतीकात्मक नेतृत्व के साथ पार्टी को उम्मीद है कि वह जनजातीय क्षेत्रों में अपनी प्रासंगिकता को फिर से स्थापित करेगी और अगले चुनावों से पहले पहुंच बनाएगी। यह पदयात्रा राजनीतिक तस्वीर को सफलतापूर्वक बदल पाएगी या सत्तारूढ़ दलों के प्रतिरोध का सामना करेगी, यह देखना बाकी है। लेकिन, इसने निस्संदेह झारखंड में पहचान, जनसांख्यिकी और सुरक्षा पर बहस को फिर से हवा दे दी है।