चीन सरकार की तरफ से पिछले पांच वर्षों से रह-रह कर जानकारी दी जा रही थी कि वह ब्रह्मपुत्र नदी के मूल उद्यम स्त्रोत यार्लंग जांगबो के पास दुनिया की सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना लगाएगा। हालांकि, भारत आधिकारिक तौर पर इस परियोजना को लेकर अपनी चिंताएं भी चीन के समक्ष कई बार उठा चुका है। लेकिन, अब चीन ने इस परियोजना के लिए निर्माण कार्य की शुरुआत कर दी है।
भारत ने नहीं दिया आधिकारिक बयान
शनिवार को चीन के दक्षिणी पश्चिमी क्षेत्र में स्थित शहर नाइनगशी में पीएम ली शियांग ने 167.8 अरब डॉलर की इस परियोजना के निर्माण कार्य का शुभारंभ किया। चीन सरकार की तरफ से बताया गया है कि इस कार्यक्रम में निर्माण कार्य के लिए गठित विशेष सलाहकार समिति के सदस्यों और स्थानीय नागरिकों ने भी हिस्सा लिया। हालांकि, भारत ने अभी तक इस परियोजना की शुरुआत पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन पूर्व में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ताओं ने और स्वंय विदेश मंत्री ने संसद को ब्रह्मपुत्र नदी के स्त्रोत स्थल के पास विशालकाय बिजली परियोजना के लिए बांध निर्माण कार्य पर अपनी चिंताएं प्रकट की हैं।
पानी का प्रवाह बाधित होने की चिंता
कई विशेषज्ञ पहले ही इस बात पर चिंता जता चुके हैं कि चीन की तरफ से निर्मित यह बांध परियोजना भारत व बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र नदी व जमुना नदी में पानी के प्रवाह को काफी प्रभावित कर सकता है। जानकारी हो कि ब्रह्मपुत्र नदी यानी यार्लंग जांगबो तिब्बत से निकलती है, जो अरूणाचल प्रदेश के रास्ते भारत में प्रवेश करती है। अरूणाचल प्रदेश और असम में कुछ और जल स्त्रोत इसमें मिल कर इसे विशाल रूप देते हैं। यह बांग्लादेश में जमुना नदी के नाम से जानी जाती है। जानकारी हो की चीन सरकार ने जिस बांध का निर्माण कार्य शुरू किया है, उससे कितनी बिजली पैदा होगी, यह तो नहीं बताया गया है। लेकिन, पूर्व में वहां की सरकारी मीडिया में यह बात कही जा रही है कि इस परियाजना की बिजली उत्पादन क्षमता लगभग एक लाख मेगावाट तक हो सकती है।
‘भारत के हितों पर ना पड़े कोई असर’
इस परियोजना के लिए बहुत बड़े भू-भाग को खाली कराने का काम चीन ने पांच वर्ष पहले ही पूरा कर लिया था। विदेश मंत्रालय की तरफ से जनवरी, 2025 में इस परियोजना के बारे में कहा गया था कि, चीन से यह कहा गया है कि वह भारत में आने वाली नदियों के अपस्ट्रीम क्षेत्र में किसी भी गतिविधि को लेकर इस बात का ख्याल रखे कि भारत के हितों पर कोई असर नहीं हो। इस पर चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि उसकी गतिविधियों से नीचे क्षेत्र के हिस्सों (भारत या बांग्लादेश) पर कोई विपरीत असर नहीं होगा। इसके बाद फरवरी, 2025 में इस संबंध में पूछे गये एक सवाल के जवाब में विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्द्धन सिंह ने कहा था कि सरकार चीन की तरफ से पनबिजली परियोजना बनाने पर नजर रखे हुए है और अपने हितों को देखते हुए आवश्यक कदम उठा रही है ताकि नदी के नीचले बहाव वाले क्षेत्र में लोगों के जीवन व जीवकोपार्जन को सुरक्षित किया जा सके। जानकारी हो कि दोनों देशों के बीच साझा नदियों की स्थिति को लेकर चीन के साथ वर्ष 2006 में गठित विशेष व्यवस्था के तहत व कूटनीतिक स्तर पर बातचीत हुई थी।
क्या बोले असम के सीएम
चीन की ओर से ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने के संबंध में असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने इसी साल दो जून को सोशल मीडिया के जरिए एक महत्वपूर्ण बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि ब्रह्मपुत्र नदी भारत में और विस्तारित होती है, छोटी नहीं होती। ब्रह्मपुत्र के जलप्रवाह में चीन का हिस्सा सिर्फ 30-35 फीसद ही होता है। बाकी जल का जल स्त्रोत भारत में ही होता है। भारत ब्रह्मपुत्र नदी पर निर्भर नहीं रहता।
पूर्व विदेश सचिव ने किया पोस्ट
इसको लेकर भारत सरकार के पूर्व विदेश सचिव और पूर्व राजनयिक कंवल सिब्बल ने एक्स पर पोस्ट किया है। उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा है कि चीन न केवल भारत के साथ, बल्कि अन्य देशों के साथ भी निचले तटवर्ती अधिकारों को मान्यता नहीं देता है।उन्होंने कहा कि चीन ने मेकांग और इरावदी नदियों पर कई बांध बनाए हैं, जिससे नीचे की ओर जल प्रवाह और पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो रहे हैं। इससे पड़ोसी देशों में जल सुरक्षा, मत्स्य पालन और कृषि पद्धतियों को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं। हालांकि, चीन ने ब्रह्मपुत्र पर बनाए गए बांधों के बारे में भारत को कभी सूचित नहीं किया और न ही नीचे की ओर पड़ने वाले प्रभावों पर भारत के साथ कोई चर्चा की। उन्होंने कहा है कि केवल बाढ़ के आँकड़े हमारे अनुरोध पर साझा किए जाते हैं, जिसके लिए हम भुगतान करते हैं। यह भी बंद हो गया है। उन्होंने कहा कि साल 2022 से चीन ने ब्रह्मपुत्र और सतलुज जैसी सीमा पार की नदियों पर महत्वपूर्ण जल विज्ञान संबंधी आंकड़े साझा करना भी बंद कर दिया है। उन्होंने अपने पोस्ट में बताया है कि चीन के साथ आंकड़ा सांझा करने के लिए समझौता ज्ञापनों सकी समय सीमा समाप्त हो चुकी है। हालांकि, अब तक उनका नवीनीकरण नहीं किया गया है, जबकि चीन तिब्बत में तेज़ी से बड़े बांध बना रहा है। उन्होंने कहा है कि गलत तुलनाएं क्यों करें और पाकिस्तान का पक्ष क्यों लें?