देश की सबसे पुरानी पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, पर एक बार फिर विदेशी हस्तक्षेप के गंभीर आरोप लग रहे हैं। दस्तावेज़ों, अमेरिकी संवाद, और भारतीय संसद की कार्यवाही के हवाले से यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या कांग्रेस पार्टी को अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA से चंदा मिला था?
शिमला समझौते के बाद इंदिरा गांधी का अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को पत्र
1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद हुए शिमला समझौते में पाकिस्तान के 90,000 सैनिकों की वापसी और अन्य फैसलों को लेकर इंदिरा गांधी को “आयरन लेडी” कहा गया। हालांकि, उसके बाद उन्होंने अमेरिका से संबंध बेहतर करने की कोशिश की। इसी क्रम में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को एक पत्र लिखकर संबंध सुधारने का आग्रह किया गया।
एक टेलीफोन वार्तालाप में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर के बीच हुई बातचीत में भारत को 300 करोड़ रुपये तक की सहायता देने की बात कही गई। यह बातचीत उस समय की है जब अमेरिका की विदेश नीति में दक्षिण एशिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था।
राज्यसभा में खुलासा: अमेरिका ने कांग्रेस को दो बार चंदा दिया
10 मई 1979 को राज्यसभा में तत्कालीन गृह मंत्री चरण सिंह पटेल (संभवत: मोरारजी देसाई सरकार में) ने अमेरिकी राजदूत डेनियल मोनिहान की किताब का हवाला देते हुए बताया कि अमेरिका ने कांग्रेस पार्टी को दो बार फंडिंग दी थी।
- पहली बार केरल में कम्युनिस्ट पार्टी को हराने के लिए।
- दूसरी बार लोकसभा चुनाव लड़ाने के लिए।
यह सीधा-सीधा FERA (विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम) का उल्लंघन था, जो आज के PMLA कानून के समकक्ष है।
रॉ एजेंट रविंद्र सिंह: CIA का राजदार कैसे अमेरिका पहुंचा?
भारत की खुफिया एजेंसी RAW का अधिकारी रविंद्र सिंह, जो कथित तौर पर CIA के लिए भी काम कर रहा था, अमेरिकी संरक्षण में भारत से भाग गया। हैरानी की बात यह है कि कांग्रेस सरकार ने इस घटना पर गंभीर कदम नहीं उठाया, बल्कि कई सवालों को नजरअंदाज किया।
जब मनमोहन सिंह की अगुवाई में कांग्रेस सत्ता में थी, उस दौरान भारत सरकार ने रविंद्र सिंह को अमेरिका से प्रत्यर्पित करने या वापस लाने का कोई औपचारिक प्रयास क्यों नहीं किया? यह सवाल आज भी अनुत्तरित है और राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील भी।
ऐसा कहा जाता है कि शीत युद्ध के दौर में सोवियत संघ भारतीय नेताओं, पत्रकारों, और नौकरशाहों को फंडिंग करता था। वहीं अमेरिका भी अपने प्रभाव के लिए नेताओं और व्यापारियों तक पहुंच बना रहा था।
क्या कांग्रेस पर देश विश्वास कर सकता है?
इतिहास और दस्तावेज़ों की रोशनी में यह सवाल फिर उठ खड़ा हुआ है: क्या विदेशी पैसे के सहारे सत्ता तक पहुंचने वाली पार्टी पर देश विश्वास कर सकता है?
इन तथ्यों और दस्तावेज़ों को सामने रखकर यह स्पष्ट होता है कि भारत की राजनीति में विदेशी हस्तक्षेप कोई नई बात नहीं है। परन्तु यदि एक राष्ट्रीय पार्टी पर ऐसे आरोप लगते हैं, तो यह सिर्फ राजनीतिक नहीं, राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बन जाता है। अब यह जनता को तय करना है कि वह किन तथ्यों पर भरोसा करती है।