पार्टी से पहले देश: ट्रंप टैक्स विवाद में मनीष तिवारी ने मोदी सरकार का समर्थन किया

विदेश नीति पर मनीष तिवारी ने दिखाई पार्टी से ऊपर राष्ट्रीयता

पार्टी से पहले देश: ट्रंप टैक्स विवाद में मनीष तिवारी ने मोदी सरकार का समर्थन किया

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी एक बार फिर अपनी पार्टी की आधिकारिक सोच से हटकर देश के साथ खड़े नजर आए हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय सामानों पर 25% टैक्स लगाने की पृष्ठभूमि में तिवारी ने इस कदम को आर्थिक झटका नहीं, बल्कि भारत की बढ़ती रणनीतिक स्वतंत्रता की एक प्रतीकात्मक मान्यता बताया। उन्होंने कहा, “ट्रंप की धमकी ने भारत की रणनीतिक विशेषता को और अधिक मान्यता दी है और इससे नई दिल्ली की रणनीतिक स्वायत्तता पर कोई असर नहीं पड़ेगा।”

जब कांग्रेस मोदी सरकार की हर अंतरराष्ट्रीय नीति की आलोचना करती दिखती है, वहीं तिवारी का यह स्पष्ट रुख पार्टी के अंदर एक बदलाव की ओर इशारा करता है,  खासकर उन नेताओं के बीच, जो अब पार्टी की टकराव की राजनीति से असहज महसूस करने लगे हैं।

रणनीतिक स्वायत्तता: नेहरू से मोदी तक की विरासत

मनीष तिवारी ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक विस्तार से पोस्ट में भारत की विदेश नीति का इतिहास बताया, जो पंडित नेहरू की गुटनिरपेक्ष नीति से शुरू होती है। उन्होंने समझाया कि यह नीति आज ‘मल्टी-अलाइनमेंट’ और ‘आत्मनिर्भरता’ में बदल चुकी है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “आत्मनिर्भर भारत” पहल ने औपचारिक रूप दिया है। तिवारी के अनुसार, 1947 से भारत की कूटनीति का मुख्य आधार रहा है कि वह रक्षा, व्यापार या ऊर्जा जैसे मामलों में स्वतंत्र निर्णय ले सके। उन्होंने लिखा, “गुटनिरपेक्षता की नीति, जो अब बहु-सम्बंध और आत्मनिर्भरता बन चुकी है, एक रणनीतिक निरंतरता है, जो भारत को अपनी शर्तों पर दुनिया से जुड़ने की आज़ादी देती है।”

ट्रंप के टैक्स को भारत की मजबूती के रूप में देखा

तिवारी की सोच केवल सैद्धांतिक नहीं थी। उन्होंने ट्रंप के टैक्स वाले फैसले को भारत की वैश्विक स्थिति और आत्मनिर्भरता के नजरिए से देखा। उन्होंने कहा कि ऐसे व्यापारिक फैसले भारत-अमेरिका संबंधों की “बड़ी तस्वीर” को नुकसान पहुँचा सकते हैं, लेकिन इससे भारत की संप्रभुता पर असर नहीं पड़ेगा।

कांग्रेस में राष्ट्रहित की बात करने वालों को किया जा रहा है नजरअंदाज

यह पहला मौका नहीं है जब मनीष तिवारी ने राष्ट्रहित को पार्टी राजनीति से ऊपर रखा है। हाल ही में उन्हें लोकसभा में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर बोलने का मौका नहीं दिया गया, जबकि वे रक्षा और सुरक्षा मामलों के जाने-माने जानकार हैं। पार्टी के भीतर से खबरें हैं कि तिवारी द्वारा मोदी सरकार की विदेश और सुरक्षा नीति को कई बार समर्थन देने से शीर्ष नेतृत्व नाराज़ है। ट्रंप के टैक्स पर तिवारी की प्रतिक्रिया इस अंतर को और गहरा करती है।

कांग्रेस अगर राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दों को भी पार्टी लाइन के आधार पर देखती रहेगी और संतुलित व देशभक्त आवाज़ों को दबाएगी, तो यह उसके आंतरिक लोकतंत्र और प्राथमिकताओं पर सवाल खड़ा करता है।

विपक्ष में बैठे सांसद से NDA को अप्रत्याशित समर्थन

जहां कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्रंप के टैक्स फैसले को लेकर मोदी सरकार का मज़ाक उड़ाया, वहीं मनीष तिवारी की प्रतिक्रिया एकदम अलग रही। उन्होंने अमेरिका के इस कदम को भारत की “रणनीतिक विशिष्टता को श्रद्धांजलि” बताया। इससे साफ होता है कि विपक्ष के अंदर भी कुछ नेता भारत की विदेश नीति को राष्ट्रहित की नजर से देखते हैं, न कि केवल विरोध की भावना से।

एनडीए सरकार ने बीते वर्षों में अमेरिका, रूस और मध्य पूर्व जैसे देशों के साथ संतुलन बनाते हुए भारत की आवाज़ को वैश्विक मंच पर स्वतंत्र बनाया है। वहीं कांग्रेस केवल मोदी-विरोध में फंसी नजर आती है।

कांग्रेस को तय करना होगा: राजनीति या राष्ट्रहित?

मनीष तिवारी का हालिया बयान केवल एक विचार नहीं, बल्कि कांग्रेस के लिए एक चेतावनी है। जब भारत वैश्विक ताकत के रूप में उभर रहा है, तब विदेश नीति पर सर्वदलीय समर्थन जरूरी है। लेकिन कांग्रेस अपने उन नेताओं को ही किनारे कर रही है जो समझदारी, परिपक्वता और देशभक्ति दिखा रहे हैं।

अगर कांग्रेस हर अंतरराष्ट्रीय मुद्दे को सिर्फ मोदी सरकार पर हमला करने का मौका समझती रहेगी, तो न केवल चुनावी ज़मीन खोएगी, बल्कि वह अपनी पहचान भी खो देगी।  एक ऐसी पार्टी की पहचान जो कभी भारत की संप्रभुता की रक्षक मानी जाती थी। मनीष तिवारी की आवाज़ दिखाती है कि कांग्रेस में सब कुछ अभी भी खत्म नहीं हुआ है। असली सवाल यह है। क्या पार्टी अब भी समय रहते सुधरेगी, या फिर सरकार का विरोध करते-करते देश का भी विरोध करने लगेगी?

 

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