Exclusive : पूर्व गृह मंत्रालय अधिकारी का दावा: ‘हिंदू आतंकवाद’ का नैरेटिव कांग्रेस की देन

मालेगांव विस्फोट मामले के मुख्य आरोपियों के बरी होने के बाद, 'हिंदू आतंकवाद' की कहानी की उत्पत्ति को लेकर गंभीर सवाल फिर से उठ खड़े हुए हैं।

पूर्व गृह मंत्रालय अधिकारी का दावा: ‘हिंदू आतंकवाद’ का नैरेटिव कांग्रेस की देन

हिन्दू आतंकवाद पर आरवीएस मणि ने किया बड़ा खुलासा।

गुरुवार को मालेगांव विस्फोट मामले में कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा जैसे प्रमुख आरोपियों को बरी किए जाने के साथ, एक बार फिर से चर्चा का विषय विवादास्पद ‘हिंदू आतंकवाद’ की कहानी पर आ गया है, जो यूपीए काल में सुर्खियों में रही थी। टीएफआई के साथ एक महत्वपूर्ण साक्षात्कार में, गृह मंत्रालय (एमएचए) के पूर्व अधिकारी आरवीएस मणि ने कई ऐसे आरोप लगाए हैं, जो यूपीए शासन के दौरान उभरे बहुचर्चित ‘हिंदू आतंकवाद’ की कहानी की नींव हिला देते हैं।

मणि, जिन्होंने उन वर्षों में एक महत्वपूर्ण पद संभाला था, जब भारत में कई हाई-प्रोफाइल आतंकवादी हमले हुए थे। उनके अनुसार, ‘हिंदू आतंक’ का विचार एक जानबूझकर राजनीतिक मनगढ़ंत कहानी थी, जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा की कीमत पर शीर्ष राजनीतिक हस्तियों और जांच एजेंसियों की जानकारी और भागीदारी से रचा गया था।

यहां से हुई कहानी गढ़ने की शुरूआत

मणि ने बताया कि मालेगांव विस्फोट (2008) की प्रारंभिक जांच में कट्टरपंथी इस्लामी संगठन अहले हदीस से जुड़े लोगों की पहचान हुई थी। इसी तरह, 8 सितंबर 2006 के हैदराबाद विस्फोट में, मोहम्मद बिलाल और शरीफ उद्दीन जैसे बांग्लादेशी नागरिकों के नाम जुड़े थे। हालांकि मणि का कहना है कि यह स्पष्ट नहीं है कि उनका अहले हदीस से कोई संबंध था या नहीं। फिर भी, जैसे ही महाराष्ट्र एटीएस ने कार्यभार संभाला, जांच की दिशा नाटकीय रूप से बदल गई। मणि ने कहा, ‘जैसे ही एटीएस ने कार्यभार संभाला, सब कुछ बदल गया। अचानक, ध्यान ‘हिंदू चरमपंथियों’ पर केंद्रित हो गया। यहीं से कहानी गढ़ने की शुरुआत हुई।’

जल्दबाजी में हुई कर्नल पुरोहित की गिरफ्तारी

सबसे विवादास्पद घटनाक्रमों में से एक सैन्य खुफिया अधिकारी, लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित की साध्वी प्रज्ञा, मेजर उपाध्याय और रमेश कुलकर्णी के साथ गिरफ्तारी थी। मणि ने पूछा, ‘कर्नल पुरोहित संवेदनशील राष्ट्रीय सुरक्षा कार्यों पर काम कर रहे थे। उनकी गिरफ्तारी न केवल गलत समय पर हुई, बल्कि इससे कई सक्रिय अभियान भी खतरे में पड़ गए। इतनी जल्दी क्यों?’

अभिनव भारत को किसने फंड किया

उन्होंने यह भी खुलासा किया कि कर्नल हनी बख्शी, जो प्रमुख खुफिया अभियानों के दौरान पुरोहित के साथ थे, ने उनकी बेगुनाही का समर्थन किया था। मणि ने गिरफ्तारियों के समय और जल्दबाजी पर सवाल उठाते हुए संकेत दिया कि ये गिरफ्तारियां एक बड़ी साजिश का हिस्सा थीं, जिसमें संभवतः अभिनव भारत का पुनरुत्थान शामिल था। एक ऐसा संगठन जो मूल रूप से 1953 में बंद हो गया था, लेकिन 2005 में एनसीपी-कांग्रेस शासन के तहत मुंबई में ‘सामाजिक कल्याण’ के लिए पुनर्जीवित किया गया था। मणि सवाल करते हैं कि फंडिंग और समर्थन किसने मुहैया कराया।’शिवराज पाटिल से पूछिए कि इस नए अभिनव भारत को किसने फंड किया। सब कुछ एक बड़े खेल के लिए तैयार किया गया था।’

पूर्व अधिकारी ने राजनीतिक दबाव में किया हस्ताक्षर

मणि ने मार्च 2023 में पूर्व अधिकारी चितकला जोशी द्वारा दी गई अदालती गवाही का हवाला दिया, जिन्होंने शपथ लेकर स्वीकार किया था कि उन्होंने बिना किसी योग्यता की जांच किए यूएपीए, आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम और धारा 489 (नकली मुद्रा मामले) के तहत अभियोजन स्वीकृति पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। ‘उन्होंने कबूल किया कि उन्होंने उन दस्तावेजों पर तब हस्ताक्षर किए थे, जब जयंत पाटिल गृह मंत्री (महाराष्ट्र) थे। यह सब राजनीति से प्रेरित था। योग्यता पर कभी सवाल नहीं उठाया गया।’ ये स्वीकृति पत्र जनवरी 2009 से पहले जारी किए गए थे, जब जांच चल ही रही थी।

इसके अलावा, मणि ने एक प्रक्रियात्मक विफलता की ओर इशारा किया: जब मामला एटीएस से एनआईए को स्थानांतरित किया गया था, तो नए अभियोजन स्वीकृति पत्र प्राप्त किए जाने चाहिए थे। हालांकि, न तो एनआईए ने उनका अनुरोध किया, न ही अदालत ने ज़ोर दिया। पुरानी स्वीकृति पत्र को ही आगे बढ़ा दिया गया, जो कानूनी प्रोटोकॉल का उल्लंघन है।

दिग्विजय सिंह और हेमंत करकरे की भूमिका

मणि ने एक घटना का भी ज़िक्र किया जब उन्हें दिग्विजय सिंह और एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे से मिलने के लिए बुलाया गया था। उनका आरोप है कि उन्होंने उनसे सीधे ‘हिंदू आतंकवाद’ के बारे में जानकारी इकट्ठा करने को कहा। ‘उन्होंने मुझसे हिंदू आतंकवाद की घटनाओं की तहकीकात करने को कहा। मैंने मना कर दिया। मैंने उनसे कहा कि वे मेरे वरिष्ठों से संपर्क करें। उन्हें यह पसंद नहीं आया।’ उन्होंने दावा किया कि जब शिवराज पाटिल आधिकारिक तौर पर गृह मंत्री थे, तब दिग्विजय सिंह ही वास्तव में गृह मंत्रालय चला रहे थे और हिंदू आतंकवाद की कहानी को आगे बढ़ा रहे थे।

सरकारी रिकॉर्ड में ‘हिंदू आतंक’ की शुरुआत

मणि ने ज़ोर देकर कहा, ‘जब तक मैं आतंकवाद-रोधी अभियान का प्रभारी था, तब तक किसी भी सरकारी फ़ाइल में हिंदू आतंकवाद का ज़िक्र नहीं था।’ उनके अनुसार, 17 जुलाई, 2010 को ही ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द को आधिकारिक तौर पर सरकारी रिकॉर्ड में शामिल किया गया था, और वह भी बिना किसी खुफिया जानकारी के। उनका यह दावा एक समाचार माध्यम द्वारा 2016 में दायर एक आरटीआई से पुष्ट होता है, जिसमें खुलासा हुआ था कि इस शब्द के इस्तेमाल के पीछे कोई सत्यापित जानकारी नहीं थी, जिससे यह और पुष्ट होता है कि यह कहानी कृत्रिम रूप से गढ़ी गई थी।

संसद और सार्वजनिक रूप में अलग-अलग बयान

आरवीएस मणि ने यूपीए सरकार के विरोधाभासी संदेशों पर ध्यान दिलाया, जहां पी चिदंबरम, शिवराज पाटिल और सुशील कुमार शिंदे जैसे मंत्रियों ने संसद के अंदर आतंकवादी हमलों के लिए खुले तौर पर पाकिस्तान और आईएसआई को दोषी ठहराया। लेकिन, सार्वजनिक भाषणों और मीडिया में उपस्थिति में ‘हिंदू आतंकवाद’ की कहानी को भी आगे बढ़ाया।’संसद में उन्होंने पाकिस्तान की भूमिका स्वीकार की। बाहर, वे हिंदू आतंकवाद की बात करते रहे। यह सब वोटों के लिए था।

बटला हाउस पर समन्वित चुप्पी

मणि ने बटला हाउस मुठभेड़ को समन्वित चुप्पी और चुनिंदा सहानुभूति के एक पैटर्न से जोड़ा। उन्होंने कहा बटला हाउस मुठभेड़ के दौरान, जब इंस्पेक्टर मोहन शर्मा पर आतंकवादियों द्वारा हमला किया जा रहा था, गृह मंत्री शिवराज पाटिल पुलिस मुख्यालय में लाइव अपडेट प्राप्त कर रहे थे, फिर भी उन्होंने इस मामले पर कभी सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं की। मणि ने उन रिपोर्टों को याद किया जिनमें कहा गया था कि सोनिया गांधी मुठभेड़ में मारे गए आतंकवादियों के लिए रोई थीं।

वोट बैंक के लिए चढ़ा दी गई राष्ट्रीय सुरक्षा की बली

मणि ने आगे गुजरात के 14 आतंकवादियों से जुड़ी एक घटना का खुलासा किया, जिनमें से कई आजमगढ़ के गुर्गों से जुड़े थे, जिन्हें दिग्विजय सिंह ने कथित तौर पर दिल्ली भेजने की कोशिश की थी, जिसके बारे में मणि का कहना है कि यह कानूनी प्रक्रिया की आड़ में भागने की एक योजना थी। मणि यह कहने से नहीं हिचकिचाये कि ‘2006 से 2011 तक, सभी आतंकवादी गतिविधियां कांग्रेस और आईएसआईएस का एक संयुक्त उपक्रम थीं। वोट बैंक की राजनीति की बलिवेदी पर राष्ट्रीय सुरक्षा की बलि चढ़ा दी गई।’

आरवीएस मणि के साथ साक्षात्कार इस बात का एक बेहद परेशान करने वाला पहलू खोलता है कि कैसे राजनीतिक शक्ति का दुरुपयोग जांच में हेरफेर करने और बिना किसी साक्ष्य के समर्थन वाले कथानक को आगे बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। मणि की गवाही, जो अदालती दस्तावेजों और आरटीआई के जवाबों द्वारा समर्थित है, एक बुनियादी सवाल उठाती है: क्या भारत को जानबूझकर गुमराह किया गया था, और क्या उसके लोगों के साथ उनकी रक्षा करने की शपथ लेने वालों ने विश्वासघात किया था?

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