HC ने मुस्तफा, अलीसाहेब, सुलेमान पर धर्मांतरण की कोशिश की FIR की रद्द; इस्लाम अपनाने के लिए दुबई में नौकरी का दे रहे थे लालच

हाई कोर्ट के जस्टिस वेंकटेश नाइक ने माना कि तीनों आरोपियों ने धर्मांतरण की कोई कोशिश नहीं की थी

कर्नाटक हाई कोर्ट ने हाल ही में धर्मांतरण की कोशिश से जुड़े एक मामले में मुस्तफा मुर्तुसाहेब मोमिन, अलीसाहेब शब्बीर अलागुंडी और सुलेमान रियाज अहमद के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने का आदेश दिया है। मुस्तफा, अलीसाहेब, सुलेमान पर कर्नाटक के जामखंडी में प्रसिद्ध रामतीर्थ मंदिर के पास इस्लामी शिक्षाओं का प्रचार करने और धर्मांतरण के लिए लोगों को लालच देने का आरोप था। हालांकि, हाई कोर्ट के जस्टिस वेंकटेश नाइक ने माना कि तीनों आरोपियों ने धर्मांतरण की कोई कोशिश नहीं की थी।

क्या था पूरा मामला?

मई 2025 की शाम को शिकायतकर्ता मंदिर पहुंचे थे। वहां पहुंचने पर उन्हें पता चला कि कुछ लोग वहां इस्लाम की शिक्षाओं का प्रचार करने वाले पर्चे बांट रहे हैं और अपनी धार्मिक मान्यताओं की जानकारी दे रहे हैं। इसकी जानकारी मिलने के बाद शिकायतकर्ता कुछ अन्य लोगों के साथ उन लोगों के पास पहुंचे और उनसे बात करने की कोशिश की तो आरोपियों ने हिंदू धर्म के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया। शिकायतकर्ता का कहना है, “आरोपियों ने हिंदू धर्म को लेकर अपमानजनक टिप्पणियां करते हुए कहा ‘अगर तुम हिंदू बने रहोगे, तो तुम ईश्वर को नहीं पा सकोगे। अल्लाह के अलावा कोई ईश्वर नहीं है और बाकी सभी ईश्वर काफिर हैं’।

साथ ही, इन आरोपियों ने दावा किया कि वे पूरी दुनिया को इस्लाम की ओर मोड़ना चाहते हैं। शिकायतकर्ता ने कहा, “वे लोग लोगों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए लुभाने के लिए वाहन और दुबई में नौकरी के अवसर जैसे भौतिक प्रलोभन दे रहे थे।” शिकायतकर्ता के मुताबिक, आरोपियों द्वारा जान से मारने की धमकी भी दी गई थी। शिकायतकर्ताओं ने इस मामले में शिकायत दी जिसके बाद पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ FIR दर्ज की थी। आरोपियों ने इस FIR के खिलाफ ही यह याचिका दायर की थी

आरोपियों के क्या थे तर्क?

याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि केवल अल्लाह या पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं का प्रचार करने के आधार पर किसी व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने के प्रयास के किसी भी आरोप के अभाव में दंडनीय अपराधों की श्रेणी में नहीं आते हैं। साथ ही, उन्होंने तर्क दिया कि कर्नाटक धार्मिक स्वतंत्रता अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2022 (KPRFR) की धारा 4 केवल उन व्यक्तियों को शिकायत दर्ज करने का अधिकार देती है जिनका उल्लेख इसमें किया गया है और प्रतिवादी एक तृतीय पक्ष होने के कारण अधिनियम के तहत शिकायतकर्ता के रूप में योग्य नहीं है।

कर्नाटक हाई कोर्ट ने क्या कहा?

हाई कोर्ट के जस्टिस वेंकटेश नाइक ने माना कि इस मामले में आरोपियों के खिलाफ ऐसा कोई आरोप नहीं कि उन्होंने किसा का धर्म परिवर्तन किया हो या इसकी कोशिश भी की हो। कोर्ट ने माना कि अगर आरोपों को उनके मूल स्वरूप में स्वीकार भी कर लिया जाए, तो भी वे KPRFR की धारा 3 के अंतर्गत अपराध के आवश्यक तत्वों को पूरा नहीं करते हैं। कोर्ट ने माना की इस मामले में FIR दर्ज किया जाना गलत था। कोर्ट ने आदेश दिया कि इस मामले में BNS की धारा 299, 351(2) और 3(5) तथा KPRFR Act की धारा 5 के तहत दर्ज FIR को रद्द कर दिया जाए।

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