भारत जैसे विविधतापूर्ण और लोकतांत्रिक देश में किसी भी धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता है। लेकिन, इसके साथ यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि यह स्वतंत्रता राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक सुरक्षा या सामाजिक जवाबदेही को कम करने का लाइसेंस नहीं है, और न ही होनी चाहिए। लेकिन, इन दिनों कुछ मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला नकाब (पूरा चेहरा ढकने वाला घूंघट) शालीनता के प्रतीक से कहीं अधिक हो गया है। अब इसका दुरूपयोग छिपाने, धोखे और कुछ मामलों में आपराधिक गतिविधियों के लिए होने लगा है। इसे देखते हुए अब इस पर देशव्यापी प्रतिबंध लगाने की मांग भी उठने लगी है।
हालांकि, यह धार्मिक पहचान पुलिसिंग को लेकर नहीं है। यह सार्वजनिक जीवन में स्पष्टता और जवाबदेही बहाल करने के बारे में है। यह सुनिश्चित करना है कि कपड़े का कोई भी टुकड़ा, चाहे वह कितना भी धार्मिक रूप से प्रतीकात्मक क्यों न हो, कानून तोड़ने वालों को बचाने या सार्वजनिक सुरक्षा में बाधा डालने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
अपराध के लिए हो रहा दुरुपयोग
पिछले दिनों समय—समय पर नकाब के दुरुपयोग के मामले भी सामने आते रहे हैं। गंभीर आपराधिक मामलों में नकाब का बार-बार दुरुपयोग किया गया है। नकाब के दुरुपोग पर डालते हैं एक नजर
कोर्ट से भागा रेप का आरोपी
बिहारा की राजधानी पटना में (अगस्त 2024) में एक 11 वर्षीय लड़की के अपहरण और रेप का आरोपी मोहम्मद आसिफ बुर्का पहनकर अदालत से भाग निकला। आखिरकार उसे पकड़ लिया गया, लेकिन इससे पहले उसने यह उजागर कर दिया कि किस तरह से चेहरा ढकने वाले कपड़ों का इस्तेमाल हमारी न्यायिक प्रणाली को कमजोर करने के लिए किया जा सकता है।
कश्मीर में पुलिस अधिकारी की हत्या
इसी तरह साल 2015 में बुर्का पहने एक आतंकवादी ने कश्मीर के पंपोर में दिनदहाड़े एक पुलिस अधिकारी की गोली मारकर हत्या कर दी। हालांकि, इस घटना के गवाह हमलावर की पहचान नहीं कर सके, जिससे साबित होता है कि कैसे पूरे चेहरे को ढकने वाले नकाब का इस्तेमाल घातक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। इतना ही नहीं, मुंबई, पुणे और दिल्ली जैसे शहरों में बुर्का या नकाब पहन कर बैंक लूटने, ज्वेलरी स्टोर लूटने और भीड़भाड़ वाले बाजारों से बिना पहचाने भागने वाले व्यक्तियों की कई रिपोर्टें सामने आई हैं। ये घटनाएं यह साबित करती हैं कि अपराध के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि, ये दुर्लभ मामले नहीं हैं। ये हमारी कानूनगत कमजोरियों की ओर इशारा करते हैं! किसी भी जिम्मेदार राज्य को तुरंत और दृढ़ता से संबोधित करना चाहिए।
सार्वजनिक सुरक्षा के लिए बड़ा जोखिम
हालांकि, सार्वजनिक सुरक्षा के नाम पर यह स्पष्ट है कि नकाब न केवल चेहरे को बल्कि पहचान, चेहरे के भाव और इरादे को भी अस्पष्ट करता है। ऐसे समय में जब भारत हवाई अड्डों, मेट्रो स्टेशनों और सार्वजनिक निगरानी ग्रिडों में चेहरे की पहचान करने वाली तकनीक पर तेजी से निर्भर हो रहा है, ऐसे में पूरे चेहरे को ढकने की अनुमति देना असुरक्षा को खुला निमंत्रण है। इधर, दिल्ली में हाल ही में एक नकाब पहने ड्राइवर के साथ हुई दुर्घटना ने एक और चिंता को उजागर किया है। कपड़े ने न केवल चेहरे को पहचान से बचाया बल्कि स्पष्ट रूप से ड्राइविंग करते समय देखने का जोखिम भी पैदा किया। नकाब या कपड़े के कारण ऐसे घातक परिणाम हम कब तक भुगतते रहेंगे?
हाईकोर्ट भी सुना चुका है फैसला
भारत पहले से ही सीमित सेटिंग्स में चेहरे को ढंकने को नियंत्रित करता रहा है। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 2022 में फैसला सुनाया था कि हिजाब पहनना आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है और इसे उन शैक्षणिक संस्थानों में प्रतिबंधित किया जा सकता है, जहां यूनिफॉर्म अनिवार्य है। केरल स्थित मुस्लिम एजुकेशनल सोसाइटी (MES) ने भी अपने संस्थानों में नकाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके बाद भी अदालतों, मेट्रो स्टेशनों, हवाई अड्डों और सार्वजनिक विरोध प्रदर्शनों में नकाब पहनने की अनुमति क्यों है? अगर बैंकों या सार्वजनिक भवनों के भीतर हेलमेट पहनने की अनुमति नहीं है। इन जगहों पर तो पहचान सत्यापन के लिए मेडिकल मास्क भी हटाना पड़ता है। ऐसे में यह कैसे हो सकता है कि एक धार्मिक परिधान, जिसका बेधड़क इस्तेमाल और दुरुपयोग हो रहा हो, उसे खुली छूट दे दी जाए।
यह इस्लामोफोबिया नहीं, नीतिगत स्पष्टता
चलिए पहले इस पर चर्चा करते हैं कि यह इस्लाम पर हमला नहीं है। वास्तव में तुर्की, ट्यूनीशिया और यहां तक कि मिस्र के कुछ हिस्सों सहित कई इस्लामी विद्वानों और मुस्लिम बाहुल देशों ने सार्वजनिक जीवन में चेहरे को ढंकने को गैरजरूरी या प्रतिबंधित कर दिया है। उनका मानना है कि ऐसी प्रथाएं सांस्कृतिक हैं, न कि मूल धार्मिक दायित्व। कजाकिस्तान भी सार्वजनिक स्थानों पर नकाब पर प्रतिबंध लगाकर इसमें शामिल हो गया है।
भारत में भी हमें धर्मनिरपेक्षता के विचार के पीछे छिपना बंद करना चाहिए, जो हमें अपनी चिंताओं के सामने चुप्पी साधने की बात करता है। धर्मनिरपेक्षता का मतलब तटस्थता है, न कि पक्षपात। इसका मतलब है सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना, जिसमें भीड़ में सुरक्षित महसूस करने का अधिकार भी शामिल है, जहां हर कोई स्पष्ट रूप से जवाबदेह है।
भारत को अब क्या करना चाहिए
सार्वजनिक स्थानों पर नकाब पर राष्ट्रीय प्रतिबंध न केवल उचित है, बल्कि यह बहुत समय से लंबित है। इसके लिए भारत सरकार को कुछ इस प्रकार का कानून बनाना चाहिए:
लिंग-तटस्थ: यह कानून मास्क, हेलमेट या चेहरे को ढकने वाले किसी भी कपड़े सहित सभी फेस कवरिंग पर लागू हो, जब तक कि चिकित्सा या मौसम संबंधी कारणों से ऐसा न किया गया हो।
क्षेत्र में सीमित: पूजा स्थल या निजी संपत्ति को छोड़कर स्कूल, कोर्ट, सार्वजनिक परिवहन, बैंक और सरकारी इमारतों को भी इस कानून के तहत शामिल किया जाए।
संवेदनशील लेकिन स्पष्ट : यह कानून हमें स्पष्ट दिशा-निर्देश, संक्रमणकालीन जागरूकता अभियान और सम्मानजनक प्रवर्तन प्रदान करें, लेकिन धार्मिक आदेशों की व्यक्तिगत व्याख्या के आधार पर कोई छूट न दे।
स्वतंत्रता और भय के बीच चुनाव
यह स्वतंत्रता की रक्षा के बारे में है। बिना किसी डर के सार्वजनिक रूप से घूमने की स्वतंत्रता, कानून लागू करने वालों को अपना काम करने की स्वतंत्रता और पीड़ितों को बिना किसी परदे के पीछे छिपे अपने हमलावरों के न्याय की मांग करने की स्वतंत्रता। सच्चा लोकतंत्र सहिष्णुता के नाम पर खामियों को बढ़ावा नहीं देता, यह न्याय के नाम पर उन्हें बंद कर देता है।
भेदभाव नहीं, समझदारी है नकाब पर प्रतिबंध
नकाब पर प्रतिबंध भेदभाव नहीं है, यह समझदारी है। यह एक ऐसी नीति है जो तर्क पर आधारित है, न कि कट्टरता पर। भारत को अपनी विविधता और कानून के प्रति अपने गहरे सम्मान के साथ प्रतीकात्मकता की बजाय सुरक्षा को चुनने में अग्रणी होना चाहिए।