केरल की रहने वाली 37 वर्षीय नर्स निंमिषा प्रिया पर यमन में एक यमनी व्यक्ति की हत्या का मामला चल रहा है, और अब 16 जुलाई को उसकी फाँसी निश्चिंत हो चुकी है। निंमिषा पर आरोप है कि उसने अपने संरक्षक की मांगी हुई जिंदगी बचाने की लड़ाई में ऐसी राह पकड़ ली जिसे मौत तक पहुंचाने का मामला बना दिया गया। लेकिन परिवार और उसके वकीलों का कहना है कि उसे महीनों के यौन, शारीरिक और आर्थिक उत्पीड़न से बचने के लिए यह कदम उठाना पड़ा था।
एक उम्मीद की शुरुआत और दर्दपूर्ण पतन
मजदूर परिवार में जन्मी निंमिषा ने चिकित्सा की पढ़ाई पूरी की और 2008 में बेहतर ज़िंदगी की तलाश में यमन चली गईं। वहाँ उन्होंने शादी की और एक बेटी को जन्म दिया। 2014 में उन्होंने सना में एक क्लिनिक खोला, लेकिन स्थानीय कानून के अनुसार उन्हे यमनी नागरिक तल्लाल अब्दो महदी को सहमालिक बनाना पड़ा। यहीं से उनके लिए बुरा समय शुरू हुआ। उनके अधिकार छीन लिए गए, दस्तावेज़ ले लिए गऐ, और शिकायत करने पर उन्हें धमकाया गया और बुरा व्यवहार किया गया।
घबराहट में, निंमिषा ने महदी को नींद की गोली देकर बेहोश कर अपने पासपोर्ट को उनके कब्ज़े से छुड़ाया, लेकिन गोली जानलेवा साबित हुई। भय और अफ़रातफ़री में, एक साथी नर्स की मदद से उसने महदी का शव छुपाया। उनका पकड़ में आना फ़ैसला बन गया, विद्रोही हौथी आबादी वाले उत्तर यमन की अदालत ने उन्हें 2020 में मौत की सज़ा सुनाई।
न्याय की असफलता बनी, मानवाधिकार संकट
यह हत्या सोच समझकर नही की गई थी, बल्कि डर और दबाव से हुई थी। कई देशों में ऐसे मामलों में महिलाओं को सुरक्षा या न्याय-संवेदनशीलता मिलती है, लेकिन निंमिषा को ये सहानुभूति नहीं मिली। उसके साथ एक न्याय प्रक्रिया भी नहीं निभी। यमन के विद्रोही इलाक़े में चल रहे अदालती कदम बिना अंतरराष्ट्रीय मान्यता के हो रहे हैं, और भारत का वहाँ कोई राजनयिक दफ़्तर भी नहीं, जो इस दी लाश को और भी विचित्र बना देता है।
“दिया”- एक उम्मीद भरा रास्ता
इस्लामी कानून में “दिया” यानी पीड़ित परिवार को दिया गया मुआवज़ा, सज़ा टलाने का मौका होता है। बचाव के लिए ₹8.5 करोड़ या 1 मिलियन डॉलर तक की पेशकश की गई, लेकिन अभी तक पीड़ित परिवार से कोई सकारात्मक उत्तर नहीं मिला। यह लड़ाई अब समय के खिलाफ है।
निंमिषा की माँ, प्रेमा कुमारी, पिछले एक साल से सना में रोज़ फरियाद करती हुई खड़ी हैं, जिनकी हिम्मत देश के लिए सम्मान की बात बन गई है। इसके बावजूद उम्मीद की वह कड़ी जो देश की ओर से आनी चाहिए थी, राजनयिक पहल की वो अब तक स्पष्ट नहीं दिखी है।
क्या भारत दे पाएगा न्याय और सम्मान?
MEA का कहना है कि सभी तरह की मदद की जा रही है, लेकिन वक्त और शब्द अब पर्याप्त नहीं लगते। उच्च स्तर की पहल, सरकार की कूटनीतिक सक्रियता, और अंतरराष्ट्रीय दवाब ज़रूरी है। क्योंकि अगर भारत अपनी कमजोर या पीड़ित नागरिकों को विदेश में सहायता नहीं दे सकता, तो फिर कौन करेगा?
निंमिषा सिर्फ एक नाम नहीं, एक माँ है, एक संघर्षक, और हमारी विदेश नीति की परीक्षा भी है। 7 जुलाई तक की यह लड़ाई भारत की संवेदनशीलता, निर्णय क्षमता और राजनयिक मान्यता का असली परीक्षण है।