झारखंड के धनबाद में बाघमारा थाना क्षेत्र के अंतर्गत अवैध कोयला खनन कार्य के दौरान खदान ढहने से नौ मज़दूरों की दर्दनाक मौत हो गई। यह दुर्घटना ब्लॉक 2 में हुई, जहां अनधिकृत खदान का मलबा धंस गया, जिससे खनिक तुरंत दब गए। प्रत्यक्षदर्शियों और विधायक सरयू रॉय के एक ट्वीट के अनुसार, मौतें जमुनिया में हुईं और स्थानीय माफिया अब कथित तौर पर घटना को दबाने के लिए शवों को ठिकाने लगाने की कोशिश कर रहे हैं। कथित तौर पर रॉय के सोशल मीडिया पोस्ट के बाद ही धनबाद पुलिस को सतर्क किया गया था, और उस पर शुरू में मामले को दबाने की कोशिश करने का आरोप लगाया गया था। घटनास्थल खदान पर मीडिया को पहुंचने से रोक दिया गया है। मृतकों की अभी तक आधिकारिक तौर पर पहचान भी नहीं हो पाई है। इस घटना ने हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली झारखंड सरकार के खिलाफ व्यापक रोष पैदा कर दिया है।
बीजेपी ने कहा “संस्थागत हत्या”, सीबीआई जांच की मांग
यह कोई अकेली त्रासदी नहीं है। कुछ ही दिन पहले, इसी तरह की एक अवैध खनन दुर्घटना में चार मज़दूरों की मौत हो गई थी। भाजपा प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव के अनुसार, मौजूदा सरकार में अवैध खनन संस्थागत हो गया है, जिसमें बार-बार मौतें हो रही हैं और कोई जवाबदेही तय नहीं हो रही है। उन्होंने इस घटना को “संस्थागत हत्या” करार देते हुए सीबीआई जांच की मांग की है। सवाल उठता है कि राज्य अवैध खनन के घातक परिणामों के बावजूद उसे रोकने में लगातार विफल क्यों रहा है?
जानकारी हो कि झारखंड के धनबाद को भारत में अक्सर कोयला राजधानी कहा जाता है। यह जिला कोयला माफियाओं की गतिविधियों का भी कुख्यात पर्याय है, जो राजनीतिक मिलीभगत, कमज़ोर प्रवर्तन और नौकरशाही की उदासीनता पर फलते-फूलते हैं। झरिया और बाघमारा जैसे क्षेत्रों में पूरी खनन अर्थव्यवस्था अवैध नेटवर्क के साये में है, जो धमकी और रिश्वत के ज़रिए खनन, परिवहन और यहां तक कि ई-नीलामी को भी नियंत्रित करते हैं।
दशकों से माफिया राज और ध्वस्त शासन
धनबाद में अवैध कोयला खनन कोई नई समस्या नहीं है। इस छाया उद्योग की जड़ें 1970 के दशक में कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण तक जाती हैं। इस कदम ने जहां भारत कुकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) जैसी पीएसयू दिग्गज कंपनियों को जन्म दिया, वहीं इसने खनन के हर पहलू पर स्थानीय ताकतवरों के प्रभुत्व का द्वार भी खोल दिया। इन माफिया सरदारों ने यूनियनें बनाईं, निविदाओं में हेराफेरी की और शासन की समानांतर प्रणालियां स्थापित कीं।
झारखंड में माफिया खनन प्रक्रिया पर और गड्ढे से बंदरगाह तक पूरा नियंत्रण रखता है। यहां बता दें कि खनिक अक्सर गरीब स्थानीय या प्रवासी, असुरक्षित, अनियमित वातावरण में काम करते हैं। माफिया सरगनाओं को 1,200 रुपये प्रति टन तक का “गुंडा टैक्स” चुकाने के बाद ही ट्रकों में माल भरा जाता है। इनमें से कई काम सार्वजनिक उपक्रमों और स्थानीय प्रशासन के भ्रष्ट अधिकारियों की जानकारी में और कभी-कभी उनके समर्थन से चलाए जाते हैं। इधर, खान सुरक्षा महानिदेशालय (DGMS) ने भी माना है कि यह आपराधिक संस्कृति धनबाद जैसे खनिज-समृद्ध क्षेत्रों में गहराई से जड़ें जमा चुकी है और व्यापक रूप से प्रचलित है।
विकल्प के अभाव में करते हैं अवैध खनन
कोयला माफिया फल-फूल रहा है, लेकिन इसकी कीमत कमज़ोर लोगों को चुकानी पड़ रही है। आधिकारिक और अनौपचारिक खनन से विस्थापित परिवारों को न तो पर्याप्त मुआवज़ा मिलता है और न ही नौकरी। विकल्पों के अभाव में कई लोग परित्यक्त खदानों से कोयला उठाकर, उसे मॉडिफाइड साइकिलों या स्कूटरों पर कालाबाज़ार में ले जाते हैं। उनके लिए अवैध खनन कोई विकल्प नहीं है, यह जीवनयापन का साधन है।
मरने वालों को नहीं मानते मजदूर
हालांकि, इस खतरनाक काम की एक घातक कीमत चुकानी पड़ती है। जमुनिया में नौ लोगों की जान लेने वाली खदानों जैसी घटनाएं आम हैं। पीड़ितों को शायद ही कभी मज़दूर माना जाता है। इसके बजाय उन्हें चोर या अतिक्रमणकारी करार दिया जाता है और उनके परिवारों को कोई मुआवज़ा नहीं मिलता। 2023 में इसी तरह की एक दुर्घटना में तीन मज़दूरों की मौत हो गई थी। 2022 में, सामाजिक कार्यकर्ता और धनबाद निवासी बिजय कुमार झा ने उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि बीसीसीएल द्वारा सालाना उत्पादित 3.2 करोड़ टन कोयले में से 1 करोड़ टन चोरी में नष्ट हो जाता है।
बंद हो चुकी खदानों में अवैध गतिविधियां
जानकारी हो कि राज्य में बंद हो चुकी खदानों के खंडहरों में भी अवैध गतिविधियां फल-फूल रही हैं। अप्रैल 2022 में हुई ज़िला मजिस्ट्रेट की बैठक में पाया गया कि असुरक्षित और परित्यक्त खदानें कोयला चोरी, राजस्व हानि और असामाजिक गतिविधियों के वित्तपोषण का केंद्र बन गई हैं। हालांकि, चेतावनियों के बावजूद इसके खिलाफ अब तक कोई सार्थक कार्रवाई नहीं की गई है।
गैंग्स ऑफ वासेपुर जैसा ही नजारा
शहर का आपराधिक तंत्र, जैसा कि फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर में नाटकीय रूप से दिखाया गया है, केवल एक कहानी नहीं है। दोषी गैंगस्टर फहीम खान के भतीजे प्रिंस खान जैसे वास्तविक जीवन के लोग जबरन वसूली और हिंसा के ज़रिए शहर को बंधक बनाए हुए हैं। उसके खिलाफ रेड नोटिस जारी हो चुके हैं, लेकिन धनबाद में उसका नेटवर्क सक्रिय है। धमकियां, हड़तालें और फिर से एफआईआर।