पश्चिम बंगाल के पूर्वी मेदिनीपुर जिले के दीघा में अप्रैल 2024 में बने ‘जगन्नाथ मंदिर’ को लेकर धार्मिक और राजनीतिक विवाद गहराता जा रहा है। राज्य सरकार ने इस धार्मिक स्थल के निर्माण पर करीब ₹250 करोड़ खर्च किए और इसका उद्घाटन स्वयं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने किया। उद्घाटन के समय उन्होंने घोषणा की थी कि इस मंदिर का ‘प्रसाद’ राज्य के प्रत्येक घर तक पहुँचाया जाएगा, जिसे कुछ लोगों ने अयोध्या के राम मंदिर की तर्ज पर एक रणनीतिक कदम माना। उल्लेखनीय है कि ‘जगन्नाथ मंदिर’ नाम को लेकर ओडिशा सरकार ने भी अपना विरोध दर्ज कराया था। यह माना जा रहा है कि ममता सरकार का यह कदम राज्य में बढ़ते भाजपा प्रभाव को संतुलित करने और हिंदू मतदाताओं को लुभाने की एक कोशिश है।
प्रसाद निर्माण में ठेकेदारों की भूमिका और धार्मिक विवाद
इस योजना के लागू होने के बाद सामने आया कि ‘जगन्नाथ मंदिर’ के प्रसाद की रसोई मंदिर परिसर में नहीं, बल्कि अलग-अलग मिठाई दुकानों में है, जहां ठेकेदार प्रसाद के नाम पर मिठाई बनाते हैं और उन्हें पैकेट में भरकर ‘दुआरे राशन योजना’ के तहत घर-घर भेजा जाता है। इनमें से कई मिठाई दुकानदार मुसलमान हैं। उदाहरण के तौर पर, मुर्शिदाबाद के इस्लामपुर प्रखंड में प्रसाद निर्माण का ठेका चार लोगों को दिया गया, जिनमें से तीन मुसलमान हैं- सबीरुल्लाह इस्लाम, राजू शेख और रजब अली, जबकि केवल एक दुकानदार रामप्रसाद हिंदू हैं। रजब अली ने बताया कि वह मिठाई तैयार कर बीडीओ कार्यालय में जमा करता है, और फिर वेस्ट बंगाल हाउसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (हिडको) उसे लोगों तक पहुंचाती है। रजब अली को प्रति पैकेट ₹17 दिए जाते हैं। जब उनसे शुद्धता को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने दावा किया कि मिठाई भले उनकी दुकान में बन रही हो, लेकिन कारीगर सभी हिंदू हैं। हालांकि धार्मिक संगठनों ने इसे पर्याप्त नहीं माना। श्री सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा के संरक्षक भूषणलाल पाराशर ने इसे हिंदू परंपरा और शास्त्रीय विधियों के खिलाफ बताते हुए कहा कि प्रसाद की पवित्रता केवल कारीगर के धर्म से नहीं, बल्कि उसकी भावना, मानसिक स्थिति और धार्मिक प्रक्रिया से तय होती है। उनका कहना है कि प्रसाद तब तक प्रसाद नहीं माना जा सकता जब तक उसे भगवान को विधिवत अर्पित न किया जाए।
राजनीतिक और धार्मिक प्रतिक्रिया: ममता सरकार पर निशाना
विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी और विश्व हिंदू परिषद ने इस पूरी योजना की आलोचना करते हुए इसे हिंदू आस्था का अपमान बताया है। शुभेंदु अधिकारी का कहना है कि बिना भगवान को भोग लगाए मिठाई को ‘प्रसाद’ बताना हिंदुओं की श्रद्धा का अपमान है और यह सरकार की ओर से आस्था के साथ सीधा खिलवाड़ है। उन्होंने ममता बनर्जी पर यह आरोप भी लगाया कि राज्य के आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए वह हिंदुओं को लुभाने की रणनीति बना रही हैं। वहीं, विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने इसे भगवान जगन्नाथ का भी अपमान बताया और चेतावनी दी कि अगर सरकार ने मिठाई निर्माण के इन ठेकों को तत्काल निरस्त नहीं किया तो विहिप कानूनी कार्रवाई के रास्ते पर जाएगी। इसके जवाब में हिडको के अध्यक्ष और नगर विकास मंत्री फिरहाद हकीम ने कहा कि प्रसाद के पैकेट मंदिर से संबंधित हैं और सभी धर्मों के लोगों को बांटे जा रहे हैं। लेकिन इस स्पष्टीकरण के बावजूद विवाद थमता नहीं दिख रहा। धार्मिक संगठनों और जनता के एक वर्ग का मानना है कि सरकार ने पवित्र धार्मिक परंपराओं को दरकिनार कर एक राजनीतिक एजेंडे के तहत इस योजना को लागू किया है, जो न केवल धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध है बल्कि सांस्कृतिक मर्यादाओं का भी उल्लंघन करता है।