आसमान बना अखाड़ा: चीन का J-20 और अमेरिका का F-35 आए आमने-सामने; कौन जीता?

J-20 चीन का पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान है जिसे 'माइटी ड्रैगन' कहा जाता है

चीन का J-20 और अमेरिका का F-35 (FILE PHOTO)

चीन का J-20 और अमेरिका का F-35 (FILE PHOTO)

चीन और अमेरिका के दो एडवांस लड़ाकू विमानों (चीन का J-20 और अमेरिका का F-35) के बीच ईस्ट चाइना सी (पूर्वी चीन सागर) में दूसरी बार आमने-सामने की मुठभेड़ हुई है। इस घटना ने दुनिया भर के रक्षा विश्लेषकों का ध्यान खींचा है। चीन की सरकारी मीडिया इसे अपनी ताकत और आत्मविश्वास का संकेत बता रही है लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि हकीकत इससे काफी अलग है।

J-20: चीन का ‘माइटी ड्रैगन’

J-20 चीन का पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान है जिसे ‘माइटी ड्रैगन’ कहा जाता है। यह लंबी दूरी से दुश्मन पर हमला करने और एयर डिफेंस को चकमा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है। अब चीन इसे नियमित तौर पर अमेरिकी F-35 और F/A-18 जैसे विमानों को रोकने के लिए तैनात कर रहा है। चीनी सरकारी चैनल CCTV और Sohu की रिपोर्ट के अनुसार, PLAAF के ‘वांग हाई स्क्वाड्रन’ से जुड़े J-20 विमान जून के अंत में ‘कॉम्बैट रेडीनेस पेट्रोल’ पर भेजे गए थे और उन्होंने ईस्ट चाइना सी के एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन ज़ोन (ADIZ) से अमेरिकी F-35A को निकाल दिया

चीन का दावा: हम स्टेल्थ विमानों को पहचान सकते हैं

चीन ने दो बड़ी बातें कही:

  1. स्टेल्थ विमान को पकड़ने की ताकत: चीन का कहना है कि उसके पास ऐसे ग्राउंड रडार, अर्ली वॉर्निंग सिस्टम और कैमरा सिस्टम हैं जो F-35 जैसे अदृश्य दिखने वाले स्टेल्थ विमानों को भी पकड़ सकते हैं। लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि सिर्फ रडार से काम नहीं चलता और इसके लिए कई सिस्टम को एकसाथ जोड़कर काम करना पड़ता है।

  2. तेज़ और प्रभावी रेस्पॉन्स:रिपोर्ट्स के मुताबिक, विदेशी विमान की पहचान होते ही PLAAF ने फौरन J-20 विमानों को इंटरसेप्शन के लिए रवाना कर दिया। इसे चीन ने अपनी नेटवर्क-केंद्रित कमांड क्षमता और हाई रेडीनेस का उदाहरण बताया है। चीन के कुछ एक्सपर्ट तो यहां तक कह रहे हैं कि J-20 की स्पीड और रेंज F-35 से बेहतर है और ये ‘तकनीक की जीत’ है।

J-20 के साथ हैं कई दिक्कतें?

भले ही चीन इस घटना को अपनी जीत बता रहा हो लेकिन J-20 में अब भी कई कुछ बड़ी कमजोरियां अब भी सामने आती हैं:

  1. इंजन की दिक्कत: कुछ नए J-20 वेरिएंट में घरेलू WS-15 इंजन होने की खबरें हैं लेकिन अधिकतर J-20 में अब भी पुराने रूसी इंजन (AL-31F) या चीन के कमजोर WS-10C इंजन लगे हैं। इससे सुपरक्रूज़ क्षमता सीमित होती है, ऊंचाई पर प्रदर्शन घटता है। साथ ही, स्टेल्थ में दिक्कत आती है क्योंकि इंजन ज्यादा गर्म होता है।

  2. डॉगफाइट यानी नज़दीकी लड़ाई में कमजोर: J-20 लंबी दूरी की मिसाइलों से हमले के लिए बना है। लेकिन अगर सामने से आमने-सामने की लड़ाई हो, तो F-35 या F-22 जैसे अमेरिकी विमान ज्यादा फुर्तीले और घातक साबित होते हैं।

  3. स्टेल्थ क्षमता पूरी नहीं: J-20 को भले ही स्टेल्थ कहा जाए, लेकिन इसके डिजाइन (जैसे कि कैनार्ड्स और खुले इंजन नोजल) से इसका रडार पर दिखना संभव हो जाता है। वहीं, F-35 की स्टेल्थ तकनीक को युद्ध में आज़माया जा चुका है और वो वाकई ‘नजर न आने वाला’ साबित हुआ है।

  4. सिस्टम और ट्रेनिंग में कमी: F-35 की सबसे बड़ी ताकत है उसका सेंसर फ्यूजन (यानि सारे डेटा को एकसाथ दिखाना), AI से मदद लेना और पायलट को हर जरूरी जानकारी आसान भाषा में देना। J-20 अभी इस मामले में पीछे है। F-35 एक कमांड सेंटर के रूप में भी काम करता है, जो PLAAF अब तक नहीं दोहरा पाया है।

चीन की तैयारी तेज़ है लेकिन रास्ता लंबा है

J-20 के अलावा चीन और भी हथियार बना रहा है, वर्ष 2024–25 के दौरान चीन ने जो प्रमुख हथियार प्रणाली विकसित की हैं उनमें शामिल हैं:

इन सबका मकसद है कि अमेरिका और उसके दोस्त देशों की सेनाएं चीन के नजदीक आने से डरें। ये सभी सिस्टम मिलकर चीन की ‘Anti-Access/Area Denial (A2/AD)’ रणनीति का हिस्सा हैं, जिसका उद्देश्य अमेरिकी और सहयोगी वायु सेनाओं को चीन की सीमा के पास सक्रिय होने से रोकना है।

F-35: पूरी दुनिया में आज़माया गया विमान

वहीं दूसरी ओर, F-35A को अब तक यूरोप, मिडिल ईस्ट और इंडो-पैसिफिक में सक्रिय तैनातियों में युद्ध का अनुभव है। इसके प्रमुख फायदे हैं:

J-20 उभर रहा है लेकिन F-35 अब भी आगे

J-20 को अब सिर्फ शोपीस की तरह नहीं रखा गया बल्कि चीन ने इसे इंटरसेप्शन और गश्त जैसे असली मिशनों में उतारना शुरू कर दिया है। ये चीन की तैयारी और आत्मविश्वास दिखाता है। लेकिन तकनीकी खामियां, कमजोर इंजन, अधूरा सॉफ्टवेयर और सीमित ट्रेनिंग अभी भी J-20 को F-35 के सामने बौना साबित करते हैं। चूंकि दोनों पक्ष विवादित हवाई क्षेत्र के पास चुपके से लड़ाकू विमानों का संचालन करना जारी रखते हैं, इसलिए स्पष्ट संचार प्रोटोकॉल के बिना अनजाने में ही तनाव बढ़ने का जोखिम बढ़ जाता है

ये सिर्फ आसमान की जंग नहीं, रणनीति की लड़ाई है

J-20 और F-35 के बीच की टक्कर सिर्फ दो लड़ाकू विमानों की तकनीकी होड़ नहीं है बल्कि यह एक तरह का हवाई शतरंज है, जहां बात ताकत से ज्यादा रणनीति, इलाके पर दबदबा और तकनीक की असली विश्वसनीयता की होती है। चीन की मीडिया भले ही दावा करे कि उनका जे-20 हर मुठभेड़ में जीत रहा है लेकिन जब विशेषज्ञ ध्यान से देखते हैं, तो साफ होता है कि J-20 अभी पूरी तरह से तैयार नहीं हुआ है।

यह सही है कि चीन अपने लड़ाकू विमान को लगातार बेहतर बना रहा है, लेकिन वह अभी भी अमेरिका के F-35 जितना मजबूत और भरोसेमंद नहीं हो पाया है। अमेरिका और उसके दोस्त देशों को जरूर सतर्क रहना चाहिए क्योंकि पूर्वी चीन सागर के ऊपर ऐसी मुठभेड़ें आगे और भी हो सकती हैं। लेकिन आखिर में यह प्रचार या दावा नहीं, बल्कि वास्तविक ताकत और तकनीकी क्षमता ही तय करेगी कि आसमान पर किसका नियंत्रण होगा।

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