तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और DMK के प्रमुख एम.के. स्टालिन को सोमवार सुबह अचानक चक्कर आने के कारण चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने बताया कि उनकी हालत स्थिर है और ज़रूरी जांच की जा रही है। हालांकि यह एक सामान्य स्वास्थ्य मामला लग सकता है लेकिन इसके साथ ही डीएमके के अंदर संभावित उत्तराधिकार की लड़ाई को लेकर चर्चाएं तेज़ हो गई हैं।
अचानक अस्पताल में भर्ती, सियासी हलचल शुरू
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एम.के. स्टालिन (72) को सोमवार सुबह वॉक के दौरान अचानक चक्कर आने के बाद चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया। अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. अनिल बी.जी. के अनुसार, मुख्यमंत्री की सभी जरूरी जांचें की जा रही हैं और उनकी स्थिति फिलहाल स्थिर है। स्टालिन की तबीयत बिगड़ने की खबर मिलते ही परिवार और पार्टी के वरिष्ठ नेता अस्पताल पहुंचे। उपमुख्यमंत्री और उनके बेटे उदयनिधि स्टालिन, पत्नी दुर्गा, बेटी सेंथमारई के साथ मंत्री दुरईमुरुगन और मा. सुब्रमण्यम भी अपोलो अस्पताल पहुंचे।
DMK में कौन होगा अगला नेता?
हालांकि, स्टालिन की हालत फिलहाल स्थिर है लेकिन इस घटनाक्रम ने पार्टी के भविष्य को लेकर कयासों को हवा दे दी है। करुणानिधि के जीवनकाल में अपने बड़े भाई एम.के. अलागिरी को राजनीतिक रूप से दरकिनार कर स्टालिन ने वर्षों की मेहनत से पार्टी की कमान संभाली थी। अब सवाल उठता है कि क्या उनका बेटा उदयनिधि स्वाभाविक रूप से अगला नेता बनेंगे या फिर पार्टी में कोई और ताकतवर चेहरा चुनौती देगा?
मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन की तबीयत अब भले ही स्थिर बताई जा रही हो लेकिन उनकी अस्थायी गैर-मौजूदगी ने डीएमके के भविष्य को लेकर नई राजनीतिक चर्चा को जन्म दे दिया है। पार्टी नेतृत्व को लेकर अटकलें इसलिए भी तेज़ हैं क्योंकि स्टालिन ने अपने पिता और DMK संस्थापक करुणानिधि के कार्यकाल में ही अपने बड़े भाई एम.के. अलागिरी को सधे हुए राजनीतिक कदमों के ज़रिए किनारे कर संगठन पर मजबूत पकड़ बनाई थी। अब जब उम्र और स्वास्थ्य दोनों फैक्टर एक बार फिर चर्चा में हैं, तो यह सवाल लाजिमी है कि क्या स्टालिन के बेटे और मौजूदा मंत्री उदयनिधि स्टालिन पार्टी के स्वाभाविक उत्तराधिकारी होंगे? या फिर डीएमके के भीतर कोई और ताकतवर नेता नेतृत्व की दौड़ में उतर सकते हैं?
सबरिसन का बढ़ता प्रभाव और सेंथमारई की भूमिका
हालांकि एमके स्टालिन की बेटी सेंथमारई ने अब तक सक्रिय राजनीति से दूरी बनाए रखी है लेकिन उनके पति वी. सबरिसन पार्टी के भीतर एक प्रभावशाली रणनीतिकार के रूप में तेजी से उभरे हैं। 2021 के विधानसभा चुनावों में सबरिसन की भूमिका निर्णायक रही, जब उन्होंने राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर की संस्था I-PAC को डीएमके के साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस गठजोड़ ने न सिर्फ पार्टी की रणनीति को धार दी बल्कि उसे भारी बहुमत के साथ सत्ता में भी वापस पहुंचाया।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि सबरिसन अब सिर्फ ‘परिवार के सदस्य’ नहीं बल्कि संगठन के अंदर एक मजबूत लॉबी के केंद्र में हैं। ऐसे में यह सवाल तेजी से उभर रहा है कि क्या वह उदयनिधि स्टालिन के राजनीतिक उभार को समर्थन देंगे, या फिर चुपचाप अपनी एक अलग शक्ति-केंद्र तैयार कर रहे हैं?
कनिमोई– करुणानिधि की बेटी और दिल्ली में DMK की आवाज़
DMK की वरिष्ठ सांसद और करुणानिधि की बेटी कनिमोई करुणानिधि परिवार की एक ऐसी कड़ी हैं, जो न सिर्फ पार्टी के भीतर वरिष्ठ नेताओं के बीच सम्मानित हैं, बल्कि दिल्ली की राजनीति में भी DMK की मज़बूत आवाज़ रही हैं। संसद में उनके भाषण, सामाजिक मुद्दों पर स्पष्ट राय और महिला अधिकारों पर मुखरता ने उन्हें तमिल राजनीति में एक सशक्त चेहरा बनाया है।
हालांकि पार्टी में धीरे-धीरे युवा नेतृत्व को प्राथमिकता दी जा रही है, जिसका उदाहरण उदयनिधि स्टालिन का तेजी से बढ़ता राजनीतिक कद है लेकिन कनिमोई की राजनीतिक समझ और करुणानिधि की विरासत में उनकी वैध हिस्सेदारी को नज़रअंदाज़ करना डीएमके के लिए जोखिम भरा हो सकता है। विश्लेषकों का मानना है कि अगर पार्टी नेतृत्व में उन्हें हाशिये पर रखा गया या सीमित भूमिका दी गई, तो वे खुद को एक परिपक्व वैकल्पिक नेतृत्व के तौर पर पेश कर सकती हैं। उनके पीछे पार्टी के कुछ पुराने और विचारधारा-निष्ठ नेता भी खड़े हो सकते हैं, जिससे DMK में अनुभव बनाम युवा नेतृत्व की एक नई ध्रुवीयता आकार ले सकती है।
क्या आने वाला है DMK में तूफ़ान?
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन की सेहत में सुधार की खबर राहत ज़रूर है लेकिन उनकी अस्थायी गैर-मौजूदगी ने डीएमके के भीतर नेतृत्व को लेकर दबे हुए सवालों को सतह पर ला दिया है। बेटे उदयनिधि स्टालिन का तेजी से बढ़ता राजनीतिक ग्राफ, दामाद वी. सबरिसन की रणनीतिक शक्ति और अनुभवी सांसद कनिमोई की मजबूत स्वीकार्यता- ये तीनों चेहरे पार्टी के भीतर अपने-अपने ध्रुव बनाते नज़र आ रहे हैं।
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है: क्या स्टालिन उत्तराधिकार की दिशा में समय रहते स्पष्ट संकेत देंगे या पार्टी को एक असहज शक्ति संघर्ष के दौर से गुजरना पड़ेगा? डीएमके की परंपरा परिवार-केंद्रित नेतृत्व की रही है, लेकिन अब हालात बदलते दिख रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि नेतृत्व को लेकर अनिश्चितता लंबा खिंचती है, तो पार्टी की आंतरिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है और यह 2026 के विधानसभा चुनावों की दिशा तय करने में अहम साबित होगी।