तमिलनाडु सरकार का हिन्दू धार्मिक और धर्मार्थ न्यास (HR&CE) विभाग फिलहाल 45,000 से ज्यादा हिन्दू मंदिरों का नियंत्रण संभाले हुए है। बताया जा रहा है कि सरकार और मंदिरों पर कब्जा करने की तैयारी में है। राज्य में लगभग 1 लाख मंदिर हैं, जिनमें से लगभग आधे पहले से ही राज्य के नियंत्रण में हैं। यह दिखाता है कि सरकार सभी पवित्र हिन्दू संस्थानों पर पूरा नियंत्रण चाहती है।
यह नियंत्रण सिर्फ प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक एजेंडा भी
यह मामला केवल प्रशासन तक सीमित नहीं है। कई रिपोर्टों में कहा गया है कि यह “द्रविड़ मॉडल राजनीति” के तहत चलाया जा रहा एक गहरा राजनीतिक प्रोजेक्ट है। आलोचक जिनमें AIADMK और कई धार्मिक नेता शामिल है। इसे हिन्दू सांस्कृतिक विरासत पर सीधा हमला मानते हैं। DMK सरकार की नीयत पर सवाल उठ रहे हैं, खासकर यह कि मंदिरों का पैसा कहां जा रहा है और क्या सरकार का हस्तक्षेप संविधान का उल्लंघन नहीं है।
मंदिर का पैसा शिक्षा में खर्च: भक्तों के चढ़ावे से स्कूल-कॉलेज
जुलाई 2025 में, AIADMK महासचिव एडप्पाडी के. पलानीस्वामी ने कोयंबटूर में चुनावी सभा के दौरान आरोप लगाया कि DMK सरकार ने HR&CE विभाग से मंदिरों के फंड को निकालकर कॉलेज बनवाने में इस्तेमाल किया है। उन्होंने सवाल उठाया, “भक्त मंदिरों की देखभाल के लिए दान देते हैं, तो कॉलेज बनाने का खर्च सरकार अपने बजट से क्यों नहीं उठाती?”
उन्होंने यह भी कहा कि वह शिक्षा के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन शिक्षा का खर्च मंदिरों के चढ़ावे से नहीं बल्कि सरकार के पैसों से होना चाहिए। उन्होंने इसे मंदिरों के खिलाफ एक “सोची-समझी साजिश” बताया और कहा कि DMK को धार्मिक संस्थानों से असहजता है।
कई बार सरकार 10-15 मंदिरों में कुम्भाभिषेकम जैसे कार्यक्रम करके दिखावा करती है, जबकि हजारों मंदिर बिना मरम्मत और बिना दैनिक पूजा के खंडहर हो रहे हैं। आलोचक कहते हैं कि DMK सिर्फ दिखावा करती है, जबकि असल में हजारों मंदिर आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और संरचनात्मक रूप से नष्ट हो रहे हैं।
कानूनी विवाद और संवैधानिक उल्लंघन
इंडिक कलेक्टिव ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है, जिसमें HR&CE के नियंत्रण को संविधान के अनुच्छेद 25, 26 और 29 का उल्लंघन बताया गया है। ये अनुच्छेद धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा की गारंटी देते हैं।
दिसंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से जवाब मांगा कि मंदिरों में कार्यकारी अधिकारियों (EOs) की नियुक्ति बिना उचित प्रक्रिया के क्यों की गई। 2015 के नियमों के अनुसार EO की नियुक्ति 5 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए और हर नियुक्ति का कारण स्पष्ट होना चाहिए। लेकिन कई मंदिरों में EO को अनिश्चित काल के लिए नियुक्त कर दिया गया यहां तक की उन मंदिरों में भी जहां आय बहुत कम है। इससे यह अंदेशा और गहराता है कि सरकार बिना कानून के ही कब्जा कर रही है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछले 70 सालों में कोई भी मंदिर उसके मूल ट्रस्टियों या समुदाय को वापस नहीं किया गया, जो इस नियंत्रण की स्थायित्वता को दर्शाता है।
मंदिरों की फंडिंग का दुरुपयोग: दिखावटी विकास?
जनवरी 2025 में मद्रास हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि मंदिरों के अतिरिक्त फंड का इस्तेमाल सिर्फ HR&CE एक्ट के अनुसार ही होना चाहिए। इसके कुछ ही दिनों बाद, विभाग ने श्री रंगनाथस्वामी मंदिर में सजावटी लाइटिंग के लिए ₹8.40 करोड़ का टेंडर जारी कर दिया। आलोचकों ने इसे “धोखे का पर्दा” कहा, क्योंकि इसका धार्मिक उपयोग शून्य है और सैकड़ों मंदिरों में दैनिक पूजा के लिए भी पैसे नहीं हैं।
और भी चिंताजनक बात यह है कि ऐसे मंदिरों में कार्यकारी अधिकारियों की कोई कानूनी नियुक्ति रिकॉर्ड में नहीं है। कार्यकर्ताओं का आरोप है कि HR&CE का नियंत्रण ही अवैध है। उन्होंने सरकार से दस्तावेज दिखाने को कहा है, जो अब तक सामने नहीं आए हैं।
सांस्कृतिक क्षरण और धरोहर की उपेक्षा
मंदिर केवल पूजा की जगह नहीं होते, बल्कि वे सांस्कृतिक और वास्तुकला की धरोहर भी होते हैं। तमिलनाडु को “टेम्पल नाडु” कहा जाता है क्योंकि यहां हजारों प्राचीन मंदिर हैं। फिर भी, कार्यकर्ताओं के अनुसार 5,000 से अधिक मंदिर खंडहर हो गए हैं और HR&CE विभाग ने इनकी देखरेख में लापरवाही बरती है।
चोरी हुए मूर्तियों, गायब मंदिर गहनों और अज्ञात संपत्तियों की रिपोर्ट इस चिंता को और बढ़ा देती है कि HR&CE एक देखभाल संस्था नहीं बल्कि लूट की व्यवस्था बन गई है। मंदिरों की संपत्तियों की सुरक्षा में सरकार असफल रही है और मंदिर की जमीनों को बेचना या पट्टे पर देना भी आरोपों में शामिल है।
हिन्दू मंदिरों का नियंत्रण किसके पास हो?
यह पूरा मामला एक अहम सवाल खड़ा करता है, एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र में हिन्दू मंदिरों का नियंत्रण किसके पास होना चाहिए? चर्च और मस्जिदें अपने धार्मिक संगठनों द्वारा संचालित होती हैं, लेकिन सिर्फ हिन्दू मंदिर ही सरकार के नियंत्रण में आते हैं।
यह स्थिति सभी धर्मों के समान व्यवहार के सिद्धांत का उल्लंघन करती है और धार्मिक स्वतंत्रता पर सवाल उठाती है। प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने भी HR&CE एक्ट की समीक्षा की मांग की है। उनका कहना है कि यह एक्ट अब अपने मूल उद्देश्य की सेवा नहीं करता, बल्कि एक राजनीतिक औजार बन गया है।
देश के नागरिकों, धार्मिक प्रमुखों और कार्यकर्ताओं की मांग है कि मंदिरों को हिन्दू समुदाय को सौंपा जाए, जो धार्मिक ट्रस्टों, धार्मिक संस्थाओं या सांस्कृतिक संगठनों के माध्यम से इनका संचालन करें, जैसे चर्च और मस्जिदें करती हैं।
न्याय और पुनर्स्थापन की माँग
DMK सरकार का HR&CE विभाग के जरिए मंदिरों पर कड़ा नियंत्रण और मंदिरों के पैसों को गैर-धार्मिक कार्यों में लगाना राज्य की सांस्कृतिक, धार्मिक और संवैधानिक आत्मा को नुकसान पहुंचा रहा है। 45,000 से ज्यादा मंदिर पहले से ही सरकार के नियंत्रण में हैं और हजारों उपेक्षित हैं। HR&CE की गैर-पारदर्शिता और गलत प्रबंधन की कड़ी आलोचना हो रही है।
अगर तमिलनाडु सच में “मंदिरों की भूमि” कहलाना चाहता है, तो उसे इन मंदिरों की पवित्रता को लौटाना होगा, पारदर्शिता सुनिश्चित करनी होगी और सबसे जरूरी हिन्दू समुदाय को उनके पूजा स्थलों का अधिकार वापस देना होगा। मंदिर सरकार की योजनाओं या राजनीतिक लाभ के लिए ATM नहीं हैं। वे जीवित परंपराएं हैं और उन्हें सम्मान मिलना चाहिए।
अब समय आ गया है कि HR&CE की भूमिका पर फिर से विचार किया जाए, भ्रष्ट अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया जाए और मंदिरों का प्रबंधन उनके असली संरक्षकों भक्तों और धार्मिक आचार्यों को सौंपा जाए।