बिहार के थे आज हिंदी के नाम पर नफरत फैला रहे राज और उद्धव ठाकरे के पूर्वज, अंग्रेज़ से प्रेरित था सरनेम

बाला साहेब ठाकरे के साथ उद्धव और राज ठाकरे

बाला साहेब ठाकरे के साथ उद्धव और राज ठाकरे

महाराष्ट्र की सियासत में एक बार फिर हिंदी और मराठी भाषा को लेकर विवाद गरमाया हुआ है। इस बार इस विवाद ने ठाकरे परिवार को केंद्र में ला खड़ा किया है। शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के अध्यक्ष राज ठाकरे इस विवाद के चलते 20 साल बाद एक मंच पर साथ आए हैं। दोनों नेताओं ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने का फैसला वापस लेने के बाद एक रैली आयोजित की थी। इन सबके एक बीच ठाकरे परिवार के पूर्वजों के बिहार से होने का दावा भी खूब सुर्खियों में है और सोशल मीडिया पर भी इससे जुड़े पोस्ट खूब वायरल हो रहे हैं।

ठाकरे और बिहार का संबंध

2012 में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने दावा किया था कि शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के पूर्वज मूल रूप से बिहार से महाराष्ट्र आए थे। हालांकि, तब इस बयान पर उद्धव ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी। दिग्विजय सिंह ने इस दावे का आधार बाल ठाकरे के पिता केशव सीताराम ठाकरे (प्रबोधनकर ठाकरे) की आत्मकथा ‘माझी जीवनगाथा’ को बताया था। लेकिन मीडिया से बात करते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा था, “वो आदमी (दिग्विजय सिंह) पागल है।” उद्धव ने यह स्वीकार किया कि प्रबोधनकर की आत्मकथा में बिहार में ठाकरे नामक समुदाय का उल्लेख जरूर है लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उसमें उनके अपने परिवार के बारे में कोई सीधा जिक्र नहीं है। उद्धव ने कहा, “मेरे दादा ने जो लिखा है, वह हमारे परिवार पर नहीं, बल्कि बिहार में मौजूद ठाकरे समुदाय के बारे में था। उसमें हमारे कुल का कोई उल्लेख नहीं है।

प्रबोधनकर  ने क्या लिखा है?

प्रबोधनकर ने अपनी पुस्तक ‘ग्रामन्यांचा सध्यांत इतिहास अर्थात नोकरशाहीचे बंड’ (गांवों के विवादों का इतिहास या नौकरशाही का विद्रोह) में ठाकरे समुदाय की जड़ों का विस्तार से वर्णन किया गया है। प्रबोधनकर के अनुसार, ठाकरे परिवार चंद्रसेनीय कायस्थ प्रभु (CKP) समुदाय से ताल्लुक रखता है, जिसकी उत्पत्ति प्राचीन बिहार के मगध क्षेत्र में हुई थी। उन्होंने लिखा है कि यह समुदाय तीसरी या चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में नंद वंश के अंतिम शासक महापद्म नंद के शासनकाल में सूदखोरी की कठोर नीतियों से परेशान होकर मगध (आधुनिक बिहार) से पलायन कर महाराष्ट्र की ओर चला गया। पुस्तक में बताया गया है कि उस दौर में महापद्म नंद ने अपनी प्रजा पर भारी ब्याज दरों के साथ ऋण लाद दिए थे, जिससे त्रस्त होकर CKP समुदाय को अपने मूल स्थान को छोड़ना पड़ा। आगे चलकर यही समुदाय महाराष्ट्र में योद्धाओं और प्रशासकीय लेखकों (क्लर्कों) के रूप में स्थापित हुआ।

Thakre से Thackeray बनने की कहानी

बाला साहेब के पिता केशव सीताराम ठाकरे ने अपनी आत्मकथा ‘माझी जीवंगाथा’ में परिवार की जड़ों की कहानी साझा की है। उन्होंने लिखा कि उनका मूल उपनाम ‘ठाकरे’ था, जो समय और परिस्थिति के साथ बदला गया। केशव के पूर्वजों में से एक ने मराठा साम्राज्य के दौरान धोडप किले पर किलेदार (किले के रक्षक) की ज़िम्मेदारी निभाई थी। परिवार के बुज़ुर्ग कृष्णाजी माधव (अप्पासाहेब), रायगढ़ ज़िले के पाली गांव में रहते थे। बाद में उनके बेटे सीताराम रोज़गार और जीवन के बेहतर अवसरों की तलाश में पाली से पनवेल आ गए। वहां बसने के बाद उन्होंने अपने नाम के साथ ‘पनवेलकर’ जोड़ लिया, जैसा कि उस दौर में कई लोग अपने गांव या शहर को अपनी पहचान का हिस्सा बना लेते थे। लेकिन जब सीताराम ने अपने बेटे केशव को स्कूल में दाखिला दिलाया, तो उन्होंने ‘पनवेलकर’ हटाकर फिर से अपने पुरखों का नाम ‘ठाकरे’ चुना था। बाद में खुद केशव ने इस उपनाम की अंग्रेज़ी वर्तनी को बदलते हुए ‘Thackeray’ कर दिया। यह बदलाव उन्होंने प्रसिद्ध ब्रिटिश लेखक विलियम मेकपीस ठाकरे (William Makepeace Thackeray) से प्रेरणा लेकर किया था, जो कोलकाता में जन्मे थे। तब से लेकर आज तक ‘Thackeray’ की यही अंग्रेज़ी वर्तनी परिवार की पहचान बनी हुई है।

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