प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ 1960 में हुई इंद्रा जल संधि को निलंबित कर दिया है। यह निर्णय केवल जल नीति का विषय नहीं, बल्कि एक रणनीतिक और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा साहसिक कदम है। अब सरकार देशभर में वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों को भेजकर जनता को यह समझाएगी कि यह निर्णय भारत के दीर्घकालिक हित में कैसे है। विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, और जम्मू-कश्मीर जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में अभियान चलाया जाएगा, जहां सिंधु जल प्रणाली का सीधा प्रभाव है।
जल, ऊर्जा और सुरक्षा: भारत को होगा व्यापक लाभ
संधि के निलंबन से भारत अब वर्षों से अटकी पड़ी जल परियोजनाओं पर तेजी से काम कर सकेगा। एक बड़ी योजना के तहत चिनाब नदी को रावी, ब्यास और सतलुज से जोड़ने के लिए 160 किलोमीटर लंबी नहर और लगभग 13 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाई जा रही है। इसका उद्देश्य सिंधु जल को भारतीय राज्यों की ओर मोड़ना है, जिससे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर को सीधा लाभ मिलेगा।
सरकार की योजना सभी 13 प्रमुख नहर प्रणालियों को जोड़ने की है, ताकि जल का स्थायी प्रवाह बना रहे। लक्ष्य है कि तीन वर्षों में सिंधु जल को राजस्थान के श्रीगंगानगर तक पहुंचाया जाए। इससे सूखे और अर्ध-रेगिस्तानी इलाके उपजाऊ कृषि भूमि में तब्दील हो सकेंगे।
इसके अलावा, इस जल का उपयोग जलविद्युत उत्पादन में भी होगा। चिनाब और झेलम की सहायक नदियों पर नई और पुरानी जलविद्युत परियोजनाएं अब तेजी से आगे बढ़ाई जा रही हैं।
‘पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते’
पिछले कुछ वर्षों से पाकिस्तान द्वारा जारी सीमापार आतंकवाद के बावजूद भारत ने इंद्रा जल संधि का सम्मान किया। लेकिन अप्रैल 2025 में पहलगाम में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 नागरिक मारे गए, के बाद भारत ने संधि को निलंबित कर दिया। यह स्पष्ट संकेत था कि अब ‘पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते’।
प्रधानमंत्री मोदी पहले ही कह चुके थे कि “आतंक और बातचीत साथ नहीं चल सकते”। अब यह नीति ज़मीनी स्तर पर लागू हो रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी हाल ही में स्पष्ट किया कि संधि की बहाली पर कोई विचार नहीं होगा। जल संसाधन मंत्री सीआर पाटिल ने पाकिस्तान के राजनयिक विरोधों को खारिज करते हुए कहा, “अब यह पानी हमारे अपने लोगों के लिए है।”
एक पुरानी संधि, अब अप्रासंगिक
इंद्रा जल संधि 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता से बनी थी और इसे भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू व पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षरित किया था। इसमें पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर पूर्ण अधिकार मिला और भारत को पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलुज) पर।
हालाँकि भारत ने संधि का हमेशा पालन किया यहां तक की युद्धकाल में पाकिस्तान ने बार-बार भारत की परियोजनाओं पर आपत्ति की और भारत को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में घसीटा। अब भारत ने साफ कर दिया है: जो देश आतंक को बढ़ावा देता है, वह साझा संसाधनों की उम्मीद नहीं कर सकता।
भारत पहले: आत्मनिर्भरता और राष्ट्रहित सर्वोपरि
यह निर्णय केवल पाकिस्तान को जवाब नहीं, बल्कि भारत के किसानों, नागरिकों और आने वाली पीढ़ियों के लिए है। जल संसाधनों का पुनः नियंत्रण भारत को मानसून पर निर्भरता से मुक्त करेगा, कृषि उत्पादन बढ़ाएगा और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।
भाजपा सरकार का जनजागरण अभियान यह दर्शाता है कि अब राष्ट्रहित को कूटनीतिक औपचारिकताओं से ऊपर रखा गया है। यह केवल एक संधि का अंत नहीं, बल्कि एक आत्मनिर्भर और सशक्त भारत की शुरुआत है।