राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपना शताब्दी वर्ष मनाने जा रहा है। निश्चित है चर्चा तो होगी ही। ऐसे में एक प्रश्न उठता है कि संघ का आधार क्या है? आखिर किसके कारण संघ ने अपनी सौ वर्ष की यात्रा पूरी की है। विचार करेंगे तो उत्तर मिलेगा कि संघ का आधार उसका कार्यकर्ता अर्थात् ‘स्वयंसेवक’ है। स्वयंसेवक नहीं तो संघ नहीं, ऐसा कहा जा सकता है। अब यह एक सार्वजनिक तथ्य है कि देशभर में संघ का कार्य प्रतिदिन खुले मैंदान में लगने वाली ‘शाखा’ के माध्यम से चलता है। आखिर शाखा क्यों? उत्तर है ‘स्वयंसेवकों का निर्माण’। यह शाखा ही स्वयंसेवक बनाने की फैक्ट्री है। शाखा तन्त्र के माध्यम से ही नए नए स्वयंसेवक बनाये जाते हैं और उन्हें राष्ट्र सेवा के कार्य में लगाया जाता है।
जैसे जैसे समय बीत रहा है संघ की शाखाओं का दायरा और संख्या भी बढती जा रही है, वर्तमान समय में देशभर में लगभग 80,000 शाखाएं लगती हैं। इनके अलावा मासिक संघ मंडली और साप्ताहिक मिलन भी हैं। शाखा सहित मंडली और मिलन उपक्रमों का एक ही उद्देश्य और प्रयत्न यही होता है कि लोग संघ से जुड़ें अर्थात् नवीन स्वयंसेवकों का निर्माण हो। प्रत्येक संगठन की ताकत उसके कार्यकर्ता ही होते हैं और हर कार्यकर्ता के लिए कुछ न कुछ अपरिहार्य गुण भी होते हैं। राजनीतिक संगठनों के कार्यकर्ताओं और संघ के स्वयंसेवकों में रात दिन का अंतर का होता है। राजनीतिक क्षेत्र में निज स्वार्थ, अनुशासनहीनता, हुल्लड़बाजी, जिंदाबाद मुर्दाबाद आदि सब चलता है लेकिन संघ का स्वयंसेवक परहित, राष्ट्रहित, अनुशासन और चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ का भाव लेकर कार्य करता है।
संघ की कार्यपद्धति इतनी विशिष्ट है कि समान्य नागरिक स्वयंप्रेरणा से कार्य करने वाला राष्ट्रप्रेमी नागरिक बन जाता है। जीव के शरीर में जो स्थान रक्त कोशिकाओं का होता है वही स्थान राष्ट्र रूपी शरीर में उसके नागरिकों का भी होता है। यदि कोशिका खराब है तो शरीर भी खराब अथवा बीमार है। यह बात समझना कोई बड़ा मुश्किल काम नहीं है। इसलिए स्वस्थ शरीर के लिए स्वस्थ कोशिकाओं का होना बहुत जरूरी है। उसी तरह सशक्त, उन्नत और समृद्ध राष्ट्र के लिए नागरिकों का हर प्रकार से ‘सही’ होना भी जरूरी है। संघ की शाखा में राष्ट्र समर्पित नागरिकों का ही निर्माण होता है।
यही स्वयंसेवक अपने समस्त दायित्वों का निर्वहन करते हुए बिना किसी स्वार्थ अथवा अपेक्षा के संघ कार्य को गति देते हैं। संघ की स्थापना से लेकर अब तक स्वयंसेवकों की कई पीढियां इस काम में खप गई है। अपनी इस जीवन यात्रा में संघ ने अनेक उतार चढ़ाव देखे हैं, प्रतिबंधों का सामना किया है। संघ के स्वयंसेवक हर परिस्थिति में अडिग रहे हैं। संघ के स्वयंसेवकों के लिए ‘हम स्वयंसेवक हैं’ यह एक मन्त्र है। यही मन्त्र उन्हें हर परिस्थिति में आगे बढने की शक्ति देता है। संघ ने अपने स्वयंसेवकों के आधार पर ही कई अनुषांगिक संगठन खड़े किये हैं। संघ अकेला संगठन है लेकिन इसके अनुषांगिक संगठनों के कारण अब इसे लोग ‘संघ परिवार’ भी कहने लगे हैं। अपने स्वयंसेवकों के बल पर ही संघ लाखों सेवा कार्यों का संचालन करता है। अंग्रेजी में संघ को लोग आरएसएस (RSS) भी कहते हैं। हर तरह की आपदाओं के समय संघ के स्वयंसेवक सबसे पहले पहुँच जाते हैं इसलिए आरएसएस का मतलब ‘रेडी फॉर सेल्फलेस सर्विस’ भी निकाला जाता है। संघ समाज का, समाज के लिए संगठन है और समाज के लोग अर्थात् ‘स्वयंसेवक’ इसका आधार हैं। स्वयंसेवक ही संघ की नींव, शक्ति और पहचान है। संघ का यह मानना है कि यदि व्यक्ति सशक्त होगा, तो राष्ट्र सशक्त होगा। स्वयंसेवक इसी दिशा में कार्य करता है।