अमेरिकी दूतावास की चेतावनी: भारतीय नागरिकों द्वारा शॉपलिफ्टिंग की बढ़ती घटनाएं, क्या भारत को अब सख्त कदम उठाने चाहिए?

विदेशों में भारतीयों की छवि को बचाने के लिए ज़िम्मेदारी और जवाबदेही जरूरी

अमेरिकी दूतावास की चेतावनी: भारतीय नागरिकों द्वारा शॉपलिफ्टिंग की बढ़ती घटनाएं, क्या भारत को अब सख्त कदम उठाने चाहिए?

भारत में अमेरिकी दूतावास ने हाल ही में एक अहम एडवाइजरी जारी की है, जिसमें एक चिंताजनक प्रवृत्ति की ओर इशारा किया गया है, अमेरिका में भारतीय नागरिकों, विशेष रूप से छात्रों और हाल ही में प्रवास कर चुके लोगों द्वारा चोरी, सेंधमारी और शॉपलिफ्टिंग जैसी आपराधिक गतिविधियों में बढ़ोतरी। इस चेतावनी ने व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी, सामूहिक प्रतिष्ठा और विदेशों में भारतीय पासपोर्ट धारकों द्वारा किए गए अपराधों के दीर्घकालिक प्रभावों पर एक व्यापक बहस को फिर से जन्म दिया है।

इस पूरी समस्या की जड़ में एक गहरी विडंबना है। किसी एक व्यक्ति द्वारा की गई एक बेईमानी की घटना, उन लाखों ईमानदार प्रवासी भारतीयों (NRI) की मेहनत और छवि को धूमिल कर देती है, जिन्होंने वर्षों, बल्कि दशकों तक विदेशों में अपनी पहचान मेहनत, ईमानदारी और सम्मान से बनाई है।

एक चेतावनी जिसके दूरगामी संकेत हैं

अमेरिकी दूतावास की यह एडवाइजरी केवल औपचारिक चेतावनी नहीं है,  यह एक कूटनीतिक संदेश है, जो यह स्पष्ट करता है कि अमेरिका की कानून व्यवस्था चोरी जैसी ‘छोटी’ घटनाओं को भी बेहद गंभीरता से लेती है। इन अपराधों की सजा गिरफ्तारी और निर्वासन (डिपोर्टेशन) से लेकर वीजा पर स्थायी प्रतिबंध तक हो सकती है, जिससे भविष्य में अमेरिका की यात्रा लगभग असंभव हो जाती है। लांकि दूतावास ने किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिया, लेकिन जिस प्रवृत्ति का उल्लेख किया गया है, वह न केवल चिंताजनक है बल्कि भारतीय समुदाय की प्रतिष्ठा के लिए हानिकारक भी है।

एक का अपराध, सभी पर दाग

इस तरह की घटनाओं में सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि पूरे समुदाय को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। जब भी किसी भारतीय नागरिक के द्वारा चोरी या धोखाधड़ी की खबर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में आती है, तो इससे भारतीय समुदाय पर संदेह और नकारात्मक धारणाएं गहराती हैं। कई बार तो तथ्यों से अधिक प्रभाव ‘धारणाएं’ डालती हैं। दूतावासों की नीतियां बदलती हैं, नियोक्ता (Employers) हिचकिचाते हैं, और विश्वविद्यालय भारतीय छात्रों को लेकर सतर्क हो जाते हैं, न केवल एक व्यक्ति को लेकर, बल्कि पूरे देश की छवि को लेकर।

यह कोई अपवाद नहीं है। सिलिकॉन वैली के भारतीय टेक वर्कर्स और अमेरिका में F-1 वीजा पर पढ़ने वाले छात्रों ने ऐसे मामलों के सामने आने के बाद अतिरिक्त जांच और संदेह का सामना करने की बात कही है।

क्या भारत को विदेशों में अपराध करने वालों के पासपोर्ट रद्द करने चाहिए?

बार-बार सामने आ रहे ऐसे मामलों के बाद यह मांग तेज़ हो रही है कि भारत सरकार को विदेशों में अपराध कर चुके या देश की छवि खराब करने वाले भारतीयों के पासपोर्ट रद्द करने चाहिए। ऐसा करने से यह होगा कि यह स्पष्ट संदेश जाएगा कि भारतीय नागरिकता, गैरकानूनी गतिविधियों के लिए कवच नहीं है। यह भविष्य के अपराधों को हतोत्साहित करेगा, क्योंकि इससे केवल विदेशी कानून नहीं बल्कि भारत की ओर से भी सजा मिलेगी। उन लाखों भारतीयों की प्रतिष्ठा को बचाएगा जो विदेशों में ईमानदारी से रहते और काम करते हैं।

यूके और कनाडा जैसे देश पहले ही कुछ विशेष मामलों में नागरिकता या पासपोर्ट रद्द करने की नीति अपना चुके हैं। भारत भी कम से कम गंभीर मामलों या बार-बार अपराध करने वालों के लिए ऐसा कदम उठा सकता है।

शिक्षा और सख्ती दोनों जरूरी

हालांकि कठोर कदम उठाना कभी-कभी जरूरी हो सकता है, लेकिन रोकथाम सबसे बेहतर उपाय है। भारत सरकार को, शैक्षणिक संस्थानों और विदेशों में नौकरी दिलवाने वाली एजेंसियों के साथ मिलकर, विदेश जाने वाले नागरिकों के लिए “प्री-डिपार्चर” ओरिएंटेशन प्रोग्राम को सुदृढ़ करना चाहिए, जिसमें उन्हें स्थानीय कानून, संस्कृति और गलत आचरण के दुष्परिणामों के बारे में विस्तार से बताया जाए। इसके अलावा, भारतीय दूतावासों को भी सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। जहां ज़रूरत हो वहां कानूनी सहायता देना और जहां दोष सिद्ध हो, वहां विदेशी प्रशासन के साथ सहयोग करना।

प्रवासी सम्मान की रक्षा ज़रूरी

जिस शॉपलिफ्टिंग की घटना ने अमेरिकी दूतावास को चेतावनी जारी करने पर मजबूर किया, वह भले ही छोटी लगे, लेकिन उसका प्रतीकात्मक नुकसान बहुत बड़ा है। यह हमें एक गहरे संकट की ओर इशारा करता है। जवाबदेही के अभाव का, और यह कि कुछ लोगों की गलतियों से करोड़ों की साख खतरे में पड़ जाती है।

भारत को अब निर्णायक कदम उठाने होंगे, न सिर्फ कानून-व्यवस्था के लिए, बल्कि अपने वैश्विक नागरिकों की गरिमा बनाए रखने के लिए। नागरिकता केवल एक कानूनी दर्जा नहीं है। यह एक जिम्मेदारी भी है। और जो लोग इस जिम्मेदारी को विदेशों में ठुकराते हैं, उन्हें तिरंगे का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार भी नहीं होना चाहिए।

 

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