जस्टिस यशवंत वर्मा की होगी विदाई?: राहुल गांधी समेत 200 से अधिक सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव पर किए हस्ताक्षर

लोकसभा के 145 और राज्यसभा के 63 सांसदों ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने के प्रस्ताव पर साइन किए हैं

लोकसभा के 145 और राज्यसभा के 63 सांसदों ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने के प्रस्ताव पर साइन किए हैं

दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से नकदी मिलने के मामले में अब उनके खिलाफ बड़ी कार्रवाई की शुरुआत हो गई है। देश की न्यायपालिका में हलचल मचाने वाले इस गंभीर घटनाक्रम के बाद अब लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी समेत 145 सांसदों और राज्यसभा के 63 सांसदों ने मिलकर जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की संयुक्त याचिका दी है। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने पिछले सप्ताह कहा था कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने के लिए 100 से अधिक सांसदों ने नोटिस पर हस्ताक्षर किए हैं। उन्होंने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग को लेकर सभी राजनीतिक दलों में सहमति है।

गौरतलब है कि किसी न्यायाधीश को हटाने के प्रस्ताव पर लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर होने चाहिए। अगर यह प्रक्रिया पूरी होती है और जस्टिस वर्मा को पद से हटा दिया जाता है तो वे भारतीय इतिहास में महाभियोग के तहत पद से हटाए जाने वाले पहले जज हो जाएंगे।

क्या है मामला?

14 मार्च 2025 को जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लगने के समय आधा जले हुए कई हजार रुपये के नोट बरामद होने से विवाद शुरु हुआ। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना के निर्देश पर गठित तीन-न्यायाधीशों की सुप्रीम कोर्ट की इन‑हाउस जांच समिति ने पाया कि ये नोट उसी स्टोर-रूम में रखे गए थे, जिसका ‘गुप्त या सक्रिय नियंत्रण’ वर्मा और उनके परिवार के पास था। इस रिपोर्ट में इस तथ्य को गंभीर कदाचार बताया गया और उनकी हटाने की सिफारिश की गईवर्मा ने इन आरोपों का खंडन करते हुए यह कदम ‘साजिश’ करार दिया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इन-हाउस जांच प्रक्रिया की वैधता चुनौती दी, यह दावा करते हुए कि उन्हें निष्पक्ष सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया और जांच समिति के पास हटाने की अनुचित क्षमता थी

क्या है महाभियोग के संवैधानिक प्रावधान?

महाभियोग प्रस्ताव का उल्लेख भारत के संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4) और (5), 217 तथा 218 में किया गया है। संविधान की धारा 124 में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया बताई गई है, जिसमें भाग 4 यह स्पष्ट करता है कि देश के मुख्य न्यायाधीश को केवल संसद में महाभियोग की प्रक्रिया के जरिए ही हटाया जा सकता है। जज (इंक्वायरी) अधिनियम, 1968 के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश या अन्य किसी जज को केवल भ्रष्टाचार या अक्षमता के आधार पर ही हटाया जा सकता है, हालांकि इन शब्दों की परिभाषा स्पष्ट रूप से निर्धारित नहीं है। इसमें आपराधिक कृत्य या अन्य न्यायिक अनैतिकताएं शामिल हैं

जजों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया

भारत में किसी भी उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने की प्रक्रिया काफी गंभीर और तय नियमों के तहत होती है। इसे महाभियोग (Impeachment) कहते हैं। आइए जानें, यह प्रक्रिया कैसे चलती है:

1. प्रस्ताव लाने की शुरुआत

  • महाभियोग प्रस्ताव को लोकसभा के कम से कम 100 सांसद या राज्यसभा के 50 सांसद साइन करते हैं।

  • इसके बाद यह प्रस्ताव लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति को सौंपा जाता है।

2. प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है

  • अध्यक्ष या सभापति इस प्रस्ताव को पढ़कर यह तय करते हैं कि इसे स्वीकार करना है या खारिज

3. तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन

अगर प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो एक 3 सदस्यीय जांच समिति बनाई जाती है, जिसमें शामिल होते हैं:

  • एक सुप्रीम कोर्ट के जज,

  • एक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश,

  • और एक प्रसिद्ध न्यायविद (ज्यूरिस्ट)।

4. जांच और रिपोर्ट

  • यह समिति लगाए गए आरोपों की गहराई से जांच करती है।

  • अगर जांच में जज को दोषी पाया जाता है, तो प्रस्ताव संसद में पेश किया जाता है।

5. संसद की मंज़ूरी

  • महाभियोग प्रस्ताव को दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में पारित करना होता है।

  • पारित होने के लिए दो शर्तें ज़रूरी हैं:

    • उपस्थित सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत,

    • और सदन की कुल सदस्य संख्या का बहुमत

6. राष्ट्रपति की अंतिम मुहर

  • जब दोनों सदनों से प्रस्ताव पास हो जाता है, तब यह राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है

  • राष्ट्रपति इसकी पुष्टि करते हैं और फिर जज को पद से हटा दिया जाता है

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