जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 25 ऐसी किताबों पर प्रतिबंध लगाया है जो देश विरोधी विचार फैलाने और भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं को बदनाम करने का काम कर रही थीं। यह आदेश गृह विभाग ने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की अगुवाई में जारी किया है। ये प्रतिबंध भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 की धारा 98 और भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धाराओं 152, 196 और 197 के तहत लगाया गया है।
यह कार्रवाई उन कोशिशों के खिलाफ है जो लंबे समय से राजनीतिक लेखन के नाम पर आतंकवाद को सही ठहराने और भारत की सुरक्षा एजेंसियों की छवि खराब करने के लिए की जा रही थीं।
युवाओं को भटकाने वाली खतरनाक किताबें
जिन किताबों पर प्रतिबंध लगाया गया है, उनमें से कई वामपंथी और अलगाववादी सोच वाले लेखकों की लिखी हुई हैं। प्रशासन का कहना है कि ये किताबें युवाओं के मन में गलत सोच भरती हैं, आतंकवादियों को हीरो की तरह दिखाती हैं और भारतीय सेना की छवि खराब करती हैं।
अरुंधति रॉय की किताब Azadi भी इस सूची में शामिल है। वे पहले भी अपने विवादास्पद बयानों की वजह से सुर्खियों में रह चुकी हैं।
संविधान विशेषज्ञ ए. जी. नूरानी की किताब The Kashmir Dispute 1947–2012 पर भी रोक लगाई गई है। यह किताब अक्सर अलगाववादी सोच वाले लोग अपने तर्क के समर्थन में इस्तेमाल करते हैं।
जिन अन्य किताबों पर प्रतिबंध लगाया गया है, उनमें शामिल हैं:
- Kashmir in Conflict – विक्टोरिया शोफील्ड
- Contested Lands और Kashmir At The Crossroads – सुमंत्र बोस
- The Dismantled State – अनुराधा भसीन
- Independent Kashmir – क्रिस्टोफर स्नेडन
- Colonizing Kashmir – हाफ़सा कंजवाल
- Resisting Occupation in Kashmir – हेले डुशिंस्की
प्रशासन के मुताबिक ये किताबें आतंकवाद को “प्रतिरोध” के रूप में पेश करती हैं और युवाओं को समाज से दूर कर कट्टर विचारों की ओर ले जाती हैं।
कट्टरपंथी इस्लामी साहित्य भी निशाने पर
सिर्फ राजनीतिक किताबें ही नहीं, बल्कि धार्मिक कट्टरता फैलाने वाले इस्लामी साहित्य पर भी कार्रवाई की गई है। इन किताबों में शामिल हैं:
- Al Jihad fil Islam – मौलाना अबुल आला मौदूदी
- Mujahid ki Azan – हसन अल-बन्ना (मुस्लिम ब्रदरहुड के संस्थापक)
ये किताबें जिहाद और धार्मिक असहिष्णुता को बढ़ावा देती हैं।
प्रशासन का यह रुख साफ़ दर्शाता है कि वह न तो विदेशी प्रोपेगैंडा को बर्दाश्त करेगा और न ही देश के भीतर पनप रही चरमपंथी सोच को।
विशेषज्ञों और आम लोगों ने फैसले की सराहना की
कुछ लोग इसे “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” पर हमला कह रहे हैं, लेकिन ज़्यादातर लोग, पूर्व सैनिक और सुरक्षा विशेषज्ञ इस फैसले की पूरी तरह तारीफ़ कर रहे हैं।
गृह विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “भारत किसी का प्रोपेगैंडा फैलाने का मैदान नहीं है। अगर कोई अकादमिक स्वतंत्रता की आड़ में देशद्रोही बातें फैलाएगा, तो उसे परिणाम भुगतने होंगे।” यह संदेश साफ है कि भारत अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था के भीतर रहकर किसी को भी राष्ट्र की अखंडता पर चोट नहीं करने देगा।
अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं, बल्कि विचारों के ज़हरीले खेल पर रोक
कई सालों से कुछ लेखक और विचारक साहित्य और “अभिव्यक्ति की आज़ादी” की आड़ में अलगाववादी एजेंडा चला रहे थे। जम्मू-कश्मीर सरकार का यह कदम इस खेल को रोकने की दिशा में बड़ा कदम है।
यह पुस्तकों पर नहीं, बल्कि खतरनाक विचारधाराओं पर रोक है, जो देश की एकता और शांति को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
एक ज़रूरी और साहसिक कदम
इन 25 किताबों पर प्रतिबंध लगाना भारत की सुरक्षा और सामाजिक एकता बनाए रखने के लिए एक जरूरी और साहसिक कदम है। यह दिखाता है कि भारत में अभिव्यक्ति की आज़ादी है, लेकिन इसे देश विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
आज जब भारत विकास कर रहा है और विश्व में नेतृत्व का पद पा रहा है, तब ऐसे विचारों पर कड़ी कार्रवाई करना बहुत ज़रूरी है। जम्मू-कश्मीर प्रशासन की इस पहल की सभी को तारीफ़ करनी चाहिए क्योंकि उसने बिना किसी दबाव के देश की एकता की रक्षा की है।