जानवरों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए अहम कदम- कोल्हापुर से हथिनी माधुरी को वंतारा स्थानांतरित किया गया

जानवरों के बेहतर जीवन के लिए उठाया गया महत्वपूर्ण कदम

मंदिर की हथिनी माधुरी को वंतारा पशु बचाव केंद्र भेजे जाने का फैसला- जानवरों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए अहम कदम

महाराष्ट्र और कर्नाटक के जैन समुदाय ने मंदिर की हथिनी माधुरी (जिसे महादेवी भी कहते हैं) को कोल्हापुर के नंदनी मठ से गुजरात के अनंत अंबानी के वंतारा पशु बचाव केंद्र में भेजा जा रहा है। यह स्थानांतरण पेटा इंडिया की याचिका पर न्यायालय के आदेश से हुआ है। वंतारा पशु बचाव केंद्र में माधुरी की अच्छी देखभाल की जा रही है। वहां प्रशिक्षित डॉक्टर उसकी सेहत पर लगातार नजर रख रहे हैं और उसे उचित पोषणयुक्त भोजन दिया जा रहा है, ताकि उसका जीवन आरामदायक और स्वस्थ बना रहे।

पशु अधिकार: पेटा की मांग और हथिनी की देखभाल

पेटा इंडिया ने हथिनी महादेवी की खराब स्वास्थ्य स्थिति और आक्रामक व्यवहार को लेकर बॉम्बे उच्च न्यायालय में आवेदन दिया था। 35 साल की महादेवी ने हाल के वर्षों में खतरनाक व्यवहार किया है, जिसमें एक जैन स्वामीजी की मौत भी शामिल है। पेटा का कहना है कि वंतारा पशु कल्याण केंद्र में हथिनी को जरूरी विशेषज्ञ देखभाल मिलेगी, जो उसके भले के लिए जरूरी है।

न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और नीला गोखले की अदालत ने 16 जुलाई 2025 को फैसला दिया कि हथिनी का अच्छा जीवन जीने का अधिकार धार्मिक नियमों से ज़्यादा महत्वपूर्ण है। जून 2024 में उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) की रिपोर्ट में बताया गया कि महादेवी की हालत गंभीर थी, उसे सही खाना, साफ-सफाई और इलाज नहीं मिल रहा था, जिससे उसके कूल्हे और शरीर के अन्य हिस्सों में घाव हो गए थे। इस शिकायत के आधार पर पेटा इंडिया ने अदालत से हथिनी को स्थानांतरित करने का आदेश मांगा, जिसे अदालत ने मंजूर कर दिया।

धार्मिक भावनाओं और पशु अधिकारों का संवेदनशील संतुलन

यह मामला पशु अधिकारों और धार्मिक भावनाओं के बीच एक मुश्किल संतुलन दिखाता है। जैन समुदाय, जो करुणा और अहिंसा पर विश्वास करता है, इस हथिनी को अपनी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान मानता है। वहीं, पशु कल्याण के विशेषज्ञ और अदालत ने हथिनी के बेहतर स्वास्थ्य के लिए उसे स्थानांतरित करना जरूरी बताया है। ऐसे मामले में दोनों पक्षों की भावनाओं और जानवरों के भले का ध्यान रखना जरूरी होता है, जैसे मुरब्बा-मुहर्रम जैसे धार्मिक अवसरों पर भी अहिंसा और सहिष्णुता की शिक्षा दी जाती है।

जैन धर्म का नजरिया: दया, अहिंसा और संस्कृति

वरुर तीर्थस्थल के प्रमुख गुणदतनंदी महाराज ने कहा कि जैन धर्म करुणा और अहिंसा पर आधारित है, और हथिनी दशकों से उनके आध्यात्मिक जीवन का हिस्सा रही है। यह मामला कई जैन मंदिरों के लिए बहुत खास और संवेदनशील है। कनकगिरि मठ के भुवनकीर्ति बत्तरक स्वामीजी ने सवाल किया कि अगर सरकार जानवरों की देखभाल करना चाहती है, तो क्या वह मठ के साथ मिलकर स्थानीय स्तर पर बेहतर इंतजाम नहीं कर सकती थी? मठ ने बताया कि वे 1992 से हथिनी के मालिक हैं और इसे अपनी धार्मिक परंपरा का अहम हिस्सा मानते हैं।

प्रदर्शन और याचिका: धार्मिक भावनाएं और सार्वजनिक आक्रोश

कर्नाटक के हुबली और बेलगावी में विरोध प्रदर्शन की तैयारी हो रही है, और देश के बड़े जैन संत इस मामले को आगे बढ़ाने का फैसला कर रहे हैं। जैन समुदाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई से इस फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए याचिका दायर करने वाला है। नंदनी मठ के संत का हाथी के जाने के वक्त रोने वाला वीडियो वायरल होने के बाद यह विरोध और भी बढ़ गया है। जैन समुदाय ने अनंत अंबानी के नेतृत्व वाले जियो ब्रांड के उत्पादों का बहिष्कार भी शुरू कर दिया है क्योंकि वे इसे अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं के खिलाफ मानते हैं।

 

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