बिहार बनाम तमिलनाडु? चिदंबरम के बयान से गरमाई क्षेत्रीय राजनीति

आलोचकों ने कांग्रेस के इस दिग्गज नेता पर प्रवासी मज़दूरों के साथ अमानवीय व्यवहार करने और 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले विभाजनकारी बयानबाज़ी को हवा देने का आरोप लगाया है।

बिहार बनाम तमिलनाडु? चिदंबरम के बयान से गरमाई क्षेत्रीय राजनीति

चिंदंबरम के पोस्ट से खड़ा हुआ राजनीतिक तूफान।

वरिष्ठ कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद पी. चिदंबरम के एक ट्वीट ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है और भारत में प्रवासी मज़दूरों के मताधिकार पर नए सिरे से जांच शुरू कर दी है। चिदंबरम ने तमिलनाडु की मतदाता सूची में 6.5 लाख से ज़्यादा प्रवासी मतदाताओं, जिनमें ज़्यादातर बिहार के हैं के नाम जोड़ने की वैधता पर सवाल उठाया है। उन्होंने इस प्रक्रिया को ‘खतरनाक और अवैध’ बताया है।

पी चिंदरबरम की इस टिप्पणी ने न केवल क़ानूनी और नैतिक बहस छेड़ दी है, बल्कि प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों, नागरिक समाज और संवैधानिक विशेषज्ञों की तीखी प्रतिक्रियाएं भी आई हैं, जिनमें से कई ने कांग्रेस पर क्षेत्रीय भेदभाव को बढ़ावा देने और भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कमज़ोर करने का आरोप लगाया है।

चिदंबरम का विवादास्पद दावा

3 अगस्त, 2025 को चिदंबरम ने ट्वीट किया कि ‘चुनाव आयोग कथित तौर पर तमिलनाडु की मतदाता सूची में 6.5 लाख प्रवासी कामगारों को जोड़ रहा है। यह चुनावी प्रक्रिया की अखंडता के लिए एक गंभीर खतरा है। ये लोग स्थायी निवासी नहीं हैं, कई लोग छठ पूजा के लिए बिहार लौटते हैं। उनका मतदाता सूची शामिल होना न केवल अवैध है, बल्कि यह तमिलनाडु के चुनावी चरित्र को भी बदल देता है।’ पूर्व वित्त मंत्री ने अपनी चिंता को एक कानूनी और प्रक्रियात्मक मुद्दे के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन आलोचकों का तर्क है कि उनकी टिप्पणी क्षेत्रीय पूर्वाग्रह और अब निरस्त हो चुके अनुच्छेद 370 की याद दिलाने वाली मानसिकता को दर्शाती है, जिसने कभी गैर-निवासियों को जम्मू और कश्मीर में बसने से रोक दिया था।

क्या कहता है कानून

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के अनुसार, कोई भी भारतीय नागरिक जो किसी विशेष निर्वाचन क्षेत्र में सामान्य रूप से निवास करता है, वह वहां मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने का हकदार है, चाहे उसका मूल स्थान या संपत्ति का स्वामित्व कहीं भी हो। नाम न छापने की शर्त पर चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने कहा कि अगर कोई किरायेदार या दिहाड़ी मज़दूर लगातार उस इलाके में रह रहा हो, तो वह भी वोट देने के लिए पंजीकरण करा सकता है। अगर प्रवासी मूल निवास मानदंड पूरा करते हैं, तो उन्हें मतदाता बनने से रोकने वाला कोई कानून नहीं है।

दोहरे मानदंड?

चिदंबरम के आलोचकों ने तुरंत इस कथित दोहरे मानदंड की ओर इशारा किया। दिल्ली के स्थायी निवासी राहुल गांधी, वायनाड (केरल) और अमेठी (उत्तर प्रदेश) से सांसद रह चुके हैं। अगर राजनेता किसी भी राज्य से चुनाव लड़ सकते हैं, तो प्रवासी मज़दूरों को उसी राज्य में वोट देने के लोकतांत्रिक अधिकार से क्यों वंचित रखा जाता है, जहां वे रहते और काम करते हैं? एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, “जो बात राजनेताओं पर लागू होती है, वही नागरिकों पर भी लागू होनी चाहिए। संविधान में अभिजात वर्ग के लिए एक नियम और मज़दूर वर्ग के लिए दूसरा नियम नहीं है।”

बिहार से प्रतिक्रिया: ‘प्रवासियों का अपमान’

जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने कांग्रेस पर ‘क्षेत्रीय अभिजात्यवाद’ का आरोप लगाया और चिदंबरम की टिप्पणी को बिहारी सम्मान और संवैधानिक अधिकारों का अपमान बताया। उन्होंने कहा, ‘बिहारवासी देश भर में काम करते हैं, बुनियादी ढांचे का निर्माण करते हैं, अर्थव्यवस्था को गति देते हैं। अब उनके साथ दोयम दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार किया जा रहा है। यह अस्वीकार्य है।’ उन्होंने बिहार में कांग्रेस के प्रमुख सहयोगी, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की चुप्पी पर भी सवाल उठाया, जो सामाजिक न्याय के मुद्दे पर मुखर है। नीरज कुमार ने पूछा, ‘तेजस्वी यादव कहां हैं? वह बिहार के लोगों की रक्षा क्यों नहीं कर रहे हैं? क्या वह अपने राज्य से ज़्यादा राहुल गांधी के प्रति वफ़ादार हैं?’

कई नेता कर चुके हैं ऐसी टिप्पणियां

चिदंबरम की टिप्पणी कोई अकेली घटना नहीं है। जानकारी हो कि 2021 के पश्चिम बंगाल चुनावों में, टीएमसी नेता ममता बनर्जी ने हिंदी भाषी प्रवासियों, खासकर बिहारियों को ‘बाहरी’ बताया। महाराष्ट्र में, शिवसेना जैसी पार्टियों का ‘मराठी गौरव’ के नाम पर बिहारी प्रवासियों को निशाना बनाने का लंबा इतिहास रहा है। अब, राजनीतिक विश्लेषकों को डर है कि एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता की ऐसी भाषा क्षेत्रीय तनाव को फिर से भड़का सकती है और पूरे भारत में लाखों प्रवासी श्रमिकों को अलग-थलग कर सकती है।

बचाव की मुद्रा में आयी कांग्रेस

बिहार कांग्रेस प्रवक्ता असित नाथ ने चिदंबरम का बचाव करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने सीधे तौर पर उनके बयान का विरोध नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने दावा किया कि राज्य-सूचित रजिस्टर (एसआईआर) में खामियां हैं और ‘आरएसएस के इशारे पर’ इसमें हेरफेर किया जा रहा है, जिसका अर्थ है कि मतदाता सूची में हेरफेर प्रवासी मतदाताओं के अधिकारों से बड़ी चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि पिछले चुनाव में मतदान करने के बावजूद मेरी अपनी पत्नी का नाम अंतिम सूची से गायब है। हम अदालत जा सकते हैं,’ लेकिन चिदंबरम की आलोचना करने से वे सावधानी से बचते रहे।

कांग्रेस पर उठ रहे सवाल

क्या कांग्रेस प्रक्रियात्मक मुद्दों को प्राथमिकता दे रही है या उन्हें कुछ मतदाता समूहों को बाहर करने के बहाने के रूप में इस्तेमाल कर रही है?

राष्ट्रीय एकता के लिए हो सकते हैं खतरनाक परिणाम

जानकारी हो कि तमिलनाडु में दस लाख से ज़्यादा प्रवासी मज़दूर रहते हैं, जिनमें से ज़्यादातर बिहार से हैं। वे निर्माण, कपड़ा, छोटे व्यवसायों और सेवाओं जैसे क्षेत्रों में कार्यरत हैं। कई लोग वर्षों से वहां रह रहे हैं, कुछ के परिवार और बच्चे स्थानीय स्कूलों में पढ़ते भी हैं। ये लोग सरकार को टैक्स देते हैं, राज्य की अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं और अक्सर कठिन परिस्थितियों में काम करते हैं। क्या उन्हें अपने निवास स्थान पर वोट देने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए?

कई लोगों को डर है कि चिदंबरम की टिप्पणी क्षेत्रीय बहिष्कार को वैध बनाने और अंतर-राज्यीय शत्रुता को भड़काने की एक खतरनाक मिसाल कायम कर सकती है। ‘एक राष्ट्र, एक नागरिकता’ का सिद्धांत तब ख़तरे में पड़ जाता है, जब राजनीतिक नेता अपने मूल राज्य के आधार पर साथी भारतीयों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल करने पर सवाल उठाते हैं।

उठने वाले प्रमुख प्रश्न

क्या भारतीय नागरिकों को उस राज्य में मतदान के अधिकार से वंचित किया जा सकता है, जहां वे रहते और काम करते हैं?

कांग्रेस अपने ही नेताओं के अपने गृह राज्यों से बाहर चुनाव लड़ने पर चुप क्यों है?

क्या राष्ट्रीय एकता और प्रवासी सम्मान पर क्षेत्रीय राजनीतिक लाभ को प्राथमिकता दी जा रही है?

पी चिदंबरम के ट्वीट का उद्देश्य मतदाता सूची की अखंडता के बारे में प्रक्रियागत चिंताएं उठाना हो सकता है। हालांकि, इसकी भाषा और निहितार्थ गहरे क्षेत्रीय पूर्वाग्रहों और संवैधानिक गलतफहमियों को उजागर करते हैं।ऐसे समय में जब भारत प्रवासी कल्याण, आंतरिक गतिशीलता और चुनावी सुधारों से जूझ रहा है, ऐसी टिप्पणियां केवल विभाजन को और गहरा करती हैं। क्योंकि मतदान का अधिकार कोई विशेषाधिकार नहीं है, यह एक संवैधानिक गारंटी है।

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