हाल ही में केरल के मशहूर गुरुवायूर मंदिर को साफ-सफाई और शुद्धिकरण के लिए बंद करना पड़ा। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि एक सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर, जैस्मिन जाफर ने मंदिर के पवित्र तालाब में अपने पैर धोकर उसका वीडियो बना लिया और उसे सोशल मीडिया पर डाल दिया। यह काम मंदिर की परंपराओं और आस्था का अपमान माना गया।
यह काम सिर्फ बेपरवाह नहीं था, बल्कि मंदिर की परंपरा और लोगों की आस्था का भी अपमान था। ऐसे मामलों में बार-बार यही सवाल उठता है- क्या कोई ऐसी हरकत किसी चर्च या मस्जिद में करने की हिम्मत कर सकता है?
मंदिरों को रील बनाने की जगह समझने की गलती
हमें समझना चाहिए कि मंदिर फोटो खींचने या वीडियो बनाने की जगह नहीं होते। ये आस्था, परंपरा और संस्कृति के स्थान होते हैं। मंदिर में जाने के कुछ नियम होते हैं, जिनका सभी को पालन करना चाहिए। X (ट्विटर) पर एक यूज़र राकेश कृष्णन सिम्हा ने लिखा कि दिसंबर में जब वो अपनी चचेरी बहन के साथ मंदिर गए थे, तो उनकी बहन गलती से अपनी स्मार्टवॉच पहनकर अंदर चली गईं। उन्हें वापस आकर वह वॉच काउंटर पर जमा करनी पड़ी। उन्होंने सवाल उठाया कि जब पुलिसवाले इतनी छोटी चीज़ पकड़ सकते हैं, तो फिर जैस्मिन जाफर कैमरा या मोबाइल फोन मंदिर के अंदर कैसे ले गईं? क्या उसे किसी ने अंदर से मदद की थी?
क्या उन्हें अंदर से मदद मिली?
जब एक आम श्रद्धालु से छोटी-छोटी चीज़ों पर सख्ती से नियमों का पालन करवाया जाता है, तो यहां एक बड़ा सवाल उठता है, क्या जैस्मिन को अंदर किसी ने मदद की थी? जब सुरक्षा इतनी सख्त होती है कि अपनी स्मार्ट वॉच भी बाहर जमा करनी पड़े, तो फिर जैस्मिन कैमरा या मोबाइल फोन मंदिर में कैसे ले गई? इसका मतलब या तो सुरक्षा में गलती हुई है या फिर किसी ने जानबूझकर नियमों को नजरअंदाज किया है।
इस मामले में गुरुवायूर मंदिर प्रशासन को सिर्फ शुद्धिकरण करके चुप नहीं बैठना चाहिए। उन्हें यह पता लगाना चाहिए कि कैमरा मंदिर के अंदर कैसे पहुंचा? इसकी जिम्मेदारी किसकी थी? अगर किसी ने अंदर से मदद की है, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
क्या समय आ गया है कि सभी को प्रवेश की अनुमति मिले?
इस घटना के बाद एक नई चर्चा शुरू हो गई है, क्या गैर-हिंदुओं को भी मंदिर में जाने की इजाज़त मिलनी चाहिए? कई मुस्लिम और ईसाई लोग हैं जो हिंदू धर्म से प्रभावित हैं और भगवान कृष्ण में आस्था रखते हैं। भगवान कृष्ण तो पूरे ब्रह्मांड के भगवान हैं, सिर्फ एक धर्म के नहीं। तो फिर जो लोग सच्ची श्रद्धा से आना चाहते हैं, उन्हें मंदिर में जाने से रोका क्यों जाए?
हालांकि ये फैसला मंदिर के नियम और धार्मिक परंपराओं के अनुसार होना चाहिए, लेकिन आज के समय में जब सभी धर्मों के लोग एक-दूसरे को समझने की कोशिश कर रहे हैं, तो ऐसे मुद्दों पर बात करना ज़रूरी है।
आखिर मंदिरों को ही क्यों निशाना बनाया जाता है?
यह भी सोचने की बात है कि ऐसे विवाद हमेशा हिंदू मंदिरों से ही क्यों जुड़ते हैं। क्या कोई सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर किसी मस्जिद या चर्च में इस तरह की हरकत करने की सोच सकता है? नहीं, क्योंकि वहां की आस्था और नियमों का पूरा सम्मान होता है।
तो फिर मंदिरों के साथ ऐसा क्यों?
क्या ऐसा हो सकता है कि लोग हिंदू समुदाय की सहनशीलता को उसकी कमजोरी समझने लगे हैं? अब वक्त आ गया है कि हिंदू समाज एक साथ मिलकर अपनी आस्था और परंपराओं की रक्षा करे, चाहे वो सोशल मीडिया पर हो या असली जिंदगी में।
जैस्मिन जाफर की हरकत केवल एक वीडियो नहीं थी, बल्कि यह एक आस्था पर चोट थी। मंदिर प्रशासन को केवल शुद्धिकरण न करके, सुरक्षा चूक की गहराई से जांच करनी चाहिए। वहीं समाज को यह सोचने की ज़रूरत है कि हमारे धार्मिक स्थलों का सम्मान सिर्फ हमारी जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी भी है। और अगर कोई श्रद्धा से मंदिर आना चाहता है – चाहे उसका धर्म कोई भी हो – तो उसपर संवाद होना चाहिए, न कि सिर्फ प्रतिबंध।