मालेगांव ब्लास्ट केस: पूर्व ATS अधिकारी ने किया बड़ा खुलासा- ‘मोहन भागवत की गिरफ्तारी का था आदेश’

एनआईए कोर्ट ने सभी आरोपियों को किया बरी, अब सच सामने आया

मालेगांव ब्लास्ट केस: पूर्व ATS अधिकारी ने किया बड़ा खुलासा- ‘मोहन भागवत की गिरफ्तारी का था आदेश’

एक चौंकाने वाले दावे में, महाराष्ट्र एटीएस के रिटायर्ड इंस्पेक्टर मेहबूब मुझावर ने आरोप लगाया है कि उन्हें 2008 के मालेगांव ब्लास्ट केस में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का आदेश दिया गया था। उनका कहना है कि यह सब एक बड़ी साजिश का हिस्सा था, जिसके तहत “भगवा आतंकवाद” की झूठी कहानी रची गई थी। यह सनसनीखेज दावा उस समय सामने आया है जब विशेष एनआईए अदालत ने इस 17 साल पुराने मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया है।

राजनीतिक मकसद और झूठी जांच: अफसर ने तोड़ी चुप्पी

रिटायर्ड इंस्पेक्टर मेहबूब मुझावर, 2008 मालेगांव धमाके की जांच कर रही महाराष्ट्र एटीएस टीम का हिस्सा थे, और उन्होनेंं सोलापुर में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बताया कि उन्हें हिंदू संगठनों के बड़े नेताओं, विशेष रूप से मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का निर्देश दिया गया था। उन्होंने कहा, “मुझे कहा गया था कि जाकर मोहन भागवत को पकड़ो।”

उनका कहना है कि यह आदेश पूरी तरह से एक राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा था, जिससे हिंदू संगठनों को आतंकवादी के रूप में दिखाने की कोशिश की गई। उन्होंने इन आदेशों को “भयावह” और “बेवजह” बताया और कहा कि उन्होंने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद, उनके खिलाफ झूठा केस दर्ज किया गया जिससे उनकी 40 साल की पुलिस सेवा पर पानी फिर गया। मुझावर का दावा है कि उनके पास अपने आरोपों को साबित करने के लिए दस्तावेजी सबूत भी हैं।

एनआईए कोर्ट ने दी क्लीन चिट, कहा – सबूत नहीं थे पक्के

31 जुलाई 2025 को एक विशेष एनआईए अदालत ने मालेगांव धमाके में लगे सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। इसमें बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित भी थे। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को पूरी तरह साबित नहीं कर पाया और केवल संदेह के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

कोर्ट ने यह भी कहा कि यह साबित नहीं हो सका कि धमाके में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा की थी, और यह भी नहीं कि पुरोहित ने बम बनाया था।

‘भगवा आतंकवाद’ की कहानी धराशायी

मालेगांव केस को कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने हिंदू आतंकवाद के सबूत के तौर पर बार-बार पेश किया था। उस समय सोनिया गांधी, पी. चिदंबरम और सुशील कुमार शिंदे जैसे नेताओं ने इस पर जोर दिया था। इससे हिंदू समाज में भारी गुस्सा और नाराजगी फैल गई थी।

अब जब सभी आरोपियों को कोर्ट से बरी कर दिया गया है, तो यह सिद्ध हो गया है कि “भगवा आतंकवाद” की कहानी झूठ पर आधारित थी। एनआईए ने भी 2016 में दाखिल पूरक चार्जशीट में महाराष्ट्र एटीएस की जांच पर सवाल उठाए थे और मकोका (MCOCA) जैसे गंभीर आरोप हटा दिए थे। साथ ही यह बताया गया था कि कथित मोटरसाइकिल काफी पहले से एक फरार आरोपी के पास थी।

आरोपियों को न्याय मिला, अब जिम्मेदारों पर कार्रवाई की मांग

लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित ने हमेशा कहा था कि उन्हें गैरकानूनी हिरासत में टॉर्चर किया गया और उनसे जबरन कुछ हिंदू नेताओं जैसे योगी आदित्यनाथ के नाम लेने को कहा गया। उन्होंने आरोप लगाया था कि उनके खिलाफ फर्जी सबूत लगाए गए और गवाहों पर दबाव डालकर झूठ बुलवाया गया।

अब जब कोर्ट ने सभी को बरी कर दिया है और एनआईए ने भी ATS की जांच को गलत ठहराया है, तो पुरोहित के दावे मजबूत हो गए हैं। आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने कांग्रेस पर तीखा हमला किया है। वीएचपी के प्रवक्ता विनोद बंसल ने संसद में प्रस्ताव लाकर कांग्रेस की निंदा करने की मांग की और कहा, “यह सिर्फ एक केस नहीं था, बल्कि सनातन धर्म को बदनाम करने की साजिश थी।”

सच सामने आने पर गिरते हैं झूठे नैरेटिव

मालेगांव ब्लास्ट केस में सभी आरोपियों की रिहाई सिर्फ एक कानूनी निर्णय नहीं है, बल्कि यह ऐतिहासिक सच को उजागर करने वाला फैसला है। मुझावर के खुलासे ने इस पहले से विवादित जांच में एक और गंभीर पहलू जोड़ दिया है।

अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि एक समय पर देश की जांच एजेंसियों का राजनीतिक फायदा उठाने के लिए इस्तेमाल किया गया था। इससे कई निर्दोष लोगों की ज़िंदगी और करियर बर्बाद हो गए। हालांकि न्याय देर से मिला, लेकिन मिला। अब देश की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि आगे ऐसे राजनीतिक साजिशों को कभी न दोहराया जाए और दोषियों को कानून के कटघरे में लाया जाए।

 

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